Sep 25, 2024, 01:32 AM IST

भारत में कब से साड़ी पहन रही हैं महिलाएं

Kuldeep Panwar

भारत में साड़ी पहनना आम फैशन है. अरबपति महिला हो या झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाली गरीब स्त्री. साड़ी कभी न कभी हर कोई पहनती हैं.

खास समारोहों में साड़ी ही महिला के लिए सबसे उत्कृष्ट परिधान माना जाता है. क्या आप जानते हैं भारत में साड़ी पहनने की शुरुआत कब हुई?

पहले बता दें कि साड़ी भले ही भारत-बांग्लादेश की महिलाएं ही पहनती हैं, फिर भी यह विश्व में 5वां सबसे ज्यादा पहना जाने वाला परिधान है.

आदिम युग में सभ्य होते समय आदिमानव ने जिस तरह पेड़ की छाल या जानवर की खाल लपेटना सीखा था. साड़ी भी वैसे ही पहनी जाती है.

भारत में महिलाओं के साड़ी पहनने की परंपरा 10,000 साल से भी ज्यादा पुरानी मानी जाती है. इसके सबूत भी हमारे धर्मग्रंथों में मौजूद हैं.

चार भारतीय वेदों में से दो में साड़ी का जिक्र किया गया है. ऋग्वेद और यजुर्वेद में साड़ी पहनने की परंपरा को सनातन धर्म से जोड़ा गया है.

साड़ी का सबसे पहला जिक्र जहां यजुर्वेद में किया गया था, वहीं ऋग्वेद में ऋचाओं और यज्ञ-हवन के नियमों में साड़ी पहनने का जिक्र मिलता है.

ऋग्वेद में बताए गए यज्ञ या हवन करने के नियमों में कहा गया है कि किसी भी स्त्री को हवन में साड़ी को ही वस्त्र के तौर पर धारण करना चाहिए.

साड़ी ही महाभारत युद्ध का कारण थी. कौरवों के भरे दरबार में द्रौपदी की साड़ी के चीरहरण का बदला लेना भी पांडवों के युद्ध करने का कारण था.

करीब 5-6 मीटर लंबे कपड़े से बनने वाली साड़ी बिना सिलाई के तैयार हुआ दुनिया का सबसे लंबा परिधान भी है, जिसे संस्कृत में शाटिका कहते हैं.

रामायण में साड़ी का जिक्र है. भगवान राम के साथ 14 साल वनवास पर रही माता सीता को विशेष साड़ी मिली थी, जो इतने साल में ना गंदी हुई और ना फटी थी.

किस्से-कहानियों में मशहूर नल-दमयंती की कहानी में भी साड़ी का जिक्र आता है, जब राजा नल को एक कारणवश साड़ी पहननी पड़ती है.

चाणक्य की मदद से मौर्य साम्राज्य खड़ा करने वाले चंद्रगुप्त मौर्य और उनके वंशज साड़ी को तोहफे में मित्र राजाओं की पत्नियों को देते थे.

कुरुक्षेत्र के राजा हर्षवर्धन के दान के किस्से भी सर्वप्रसिद्ध हैं. कहा जाता है कि कुंभ में उन्होंने पहने हुए कपड़ों समेत सारी संपत्ति दान कर दी थी.

कहते हैं सबकुछ दान करने के कारण हर्षवर्धन के पास पहनने के लिए कपड़े भी नहीं बचे थे, तब वे बहन की साड़ी पहनकर ही घर लौटे थे.

साड़ी ऐसा परिधान थी, जिसे ब्रिटिश गुलामी के दौर में अंग्रेज महिलाओं ने भी पसंद किया था. मौजूदा ब्लाउज को अंग्रेज महिलाओं की ही देन मानते हैं.

भारत में वाराणसी की बनारसी, मध्य प्रदेश की चंदेरी-महेश्वरी, गुजरात की बांधनी, राजस्थान की लहरिया-बंधेज, असम की मूंगा सिल्क, तमिलनाडु की कांजीवरम और महाराष्ट्र की पैठनी साड़ी बेहद प्रसिद्ध हैं.