Oct 14, 2023, 01:44 PM IST

7 गुण जो केवल अर्जुन में थे 

Abhay Sharma

 महाभारत में अर्जुन का चरित्र ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्णित है जिसका मन सभी अशुद्धियों से बेदाग और बहुत ही स्वच्छ है. इसके अलावा अर्जुन को अनघ माना जाता है, जिसका अर्थ है निष्पाप, बिल्कुल सही या शुद्ध. 

अर्जुन महाभारत के सभी पात्रों में से एकमात्र ऐसे योद्धा थे, जो किसी भी चुनौती या परेशानी का सामना करने में समर्थ थे और अर्जुन भगवान श्री कृष्ण के परम मित्र थे. इसलिए अर्जुन श्री कृष्ण के बेहद करीब थे.   

भगवान श्री कृष्ण समय-समय पर उनकी गलतियां बताते रहे. श्री कृष्ण ने अर्जुन के उन 7 गुणों के बारे में भी बताया, जो अर्जुन के अलावा महाभारत के किसी और पात्र में नहीं थे. 

धैर्यवान- जिस व्यक्ति में धैर्य होता है, वह अपने आप ही महान बन जाता है और धैर्य एक ऐसा गुण है, जो हर किसी में नहीं होता. महाभारत के किसी और पात्र में ये गुण नहीं था.  

 विषादहीनता- अर्जुन के अंदर विषादहीनता यानि किसी भी बात से दुखी न होने का गुण था. किसी भी परिस्थिति में अर्जुन का मन एक पल के लिए भी विचलित नहीं हुआ और यही उनकी जीत का कारण बना. 

तेज- अर्जुन के व्यक्तित्व में एक ऐसा तेज था, जिसे देखकर हर कोई उनकी ओर आकर्षित हो जाता था. जितना तेज और प्रभाव अर्जुन के व्यक्तित्व में था, उतना महाभारत के किसी और पात्र में नहीं था. 

पराक्रम- अर्जुन में पराक्रम यानि हर काम को करने की क्षमता का गुण था,  उनके सामने चाहे जो भी परिस्थिति आई, अर्जुन ने अपने पराक्रम से उसका सामना बड़ी ही आसानी से किया. 

बल- महाभारत की कथा में ऐसे कई किस्से हैं, जिसमें   अर्जुन के बल और बुद्धि का वर्णन मिलता है. अर्जुन में शारीरिक बल के साथ-साथ मानसिक बल भी था, जिससे उन्हें जीत मिली.  

हाथों की स्फूर्ति- अर्जुन के हाथों में जो स्फूर्ति थी, वो महाभारत के किसी और पात्र में नहीं था. अर्जुन का ये गुण उन्हें सर्वश्रेष्ठ धर्नुधारी बनाता था.  

 शीघ्रकारिता- अर्जुन किसी भी काम को करने में इतनी देर नहीं लगाते थे कि इसका महत्व ही खत्म हो जाए. जब श्रीकृष्ण अपनी नीतियां पांडवों को बातते थे, तब उन नीतियों को समझ कर, सबसे पहले अर्जुन ही अमल करते थे.