दुर्योधन की पत्नी भानुमती ने अर्जुन से क्यों की थी शादी?
Kuldeep Panwar
कौरवों और पांडवों के बीच की दुश्मनी के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ था. इस युद्ध का सबसे बड़ा कारण कौरवों में सबसे बड़ा भाई दुर्योधन था.
दुर्योधन ने ही मामा शकुनि के साथ मिलकर पांडवों को जुए में हरा राजपाट छीना था और फिर दुशासन से भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण कराया था.
पांडवों ने इसी का बदला लेने के लिए महाभारत के युद्ध में सभी कौरवों को मार दिया था, जिसमें सबसे ज्यादा योद्धा अर्जुन के तीरों से मरे थे.
आप जानते हैं कि अर्जुन के कौरवों का सर्वनाश करने पर भी महाभारत युद्ध के बाद उनका विवाह दुर्योधन की पत्नी भानुमती से हुआ था?
भानुमती अपने समय की सबसे सुंदर स्त्रियों में से थीं. वे कलिंग (कन्नौज) के राजा चित्रांगद की बेटी थी. उनके अर्जुन से विवाह करने पर एक कहावत भी शुरू हुई थी.
महाभारत कालीन कुछ पुस्तकों में दावा किया गया है कि भानुमती अर्जुन को प्यार करती थीं, लेकिन अर्जुन उनके स्वयंवर में नहीं पहुंच सके थे.
भानुमती के स्वयंवर में पहुंचे दुर्योधन को वे भा गई थी और उसने कर्ण की मदद से भानुमती की मर्जी के खिलाफ उसका अपहरण कर लिया था.
भानुमती के साथ उनकी सहेली सुप्रिया का भी कर्ण ने अपहरण किया था. हस्तिनापुर में दुर्योधन ने भानुमती और कर्ण ने सुप्रिया से एक ही मंडप में विवाह किया था.
भानुमती-दुर्योधन के दो बच्चे थे. लड़के का नाम लक्ष्मण और लड़की का नाम लक्ष्मणा था. भानुमती ने दुर्योधन को महाभारत का युद्ध लड़ने से रोका था.
महाभारत के युद्ध में भीम की गदा से दुर्योधन की मौत होने के बाद कौरवों की अन्य स्त्रियों की तरह भानुमती को भी पांडवों ने पूरा सम्मान दिया था.
हस्तिनापुर में सम्मान से रहने के बावजूद भानुमती भविष्य को लेकर शंका में थीं. इसी कारण उन्होंने कौरवों-पांडवों के परिवार को एक करने वाला निर्णय लिया.
भानुमती ने अर्जुन के सामने अपने साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा ताकि उसके दोनों बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी अर्जुन की हो जाए.
कहते हैं कि यह प्रस्ताव रखने की सलाह भानुमती को श्रीकृष्ण ने दी थी. इसके बाद ही भानुमती ऐसा करने के लिए तैयार हुई थीं.
भानुमती ने अर्जुन से दूसरा विवाह इसलिए किया था ताकि भविष्य में फिर से कौरवों-पांडवों के बीच युद्ध जैसी संभावना ना बने और शांति बनी रहे.
भानुमती के कुनबा जोड़ने के लिए अर्जुन से यह अनूठा विवाह करने पर ही 'कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा' कहावत की शुरुआत मानी जाती है.