महाभारत में अर्जुन, भीम के पराक्रम की कहानी सुनाई जाती है, लेकिन एक योद्धा ऐसा भी था, जो लड़ता तो पल भर में पूरा युद्ध ही खत्म हो जाता.
यह योद्धा युद्ध में लड़ने पहुंचा, लेकिन वह योद्धा भी लड़ने के बजाय दिव्यदृष्टि से धृतराष्ट्र को युद्ध का हाल सुना रहे संजय की तरह दूर से ही दूसरों को लड़ते हुए देखता रह गया.
यह योद्धा थे भीम के पोते और घटोत्कच के बेटे बर्बरिक, जिन्हें उनकी मां अहिलावती ने युद्ध में हमेशा कमजोर का साथ देने की शिक्षा दी दी थी.
मान्यता है कि बर्बरीक भगवान शिव के अवतार थे. उन्होंने मां से ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा ली थी और तपस्या से प्रसन्न कर देवी से 3 खास बाण लिए थे.
बर्बरीक को मिले बाण लक्ष्य भेदकर उनके पास वापस आ जाते थे. इनसे युद्ध क्षेत्र में एक मिनट में करोड़ों लोगों का संहार किया जा सकता था.
इन तीरों की वजह से अजेय बर्बरीक भी कुरुक्षेत्र में युद्ध लड़ने आ रहे थे, लेकिन उन्हें रास्ते में ही भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण के भेष में रोक लिया.
श्रीकृष्ण जानते थे कि कौरवों को हारता देखकर बर्बरीक उनकी तरफ से लड़ेंगे. इससे कौरव जीत जाएंगे और युद्ध का परिणाम पलट जाएगा.
श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण भेष में बर्बरीक से भिक्षा में उनका सिर मांगा तो बर्बरीक ने असली रूप में आने को कहा. तब श्रीकृष्ण असली रूप में आ गए.
श्रीकृष्ण को देखकर बर्बरीक ने तत्काल अपनी तलवार से सिर काटा और उन्हें अर्पित कर दिया, लेकिन इससे पहले उन्होंने एक शर्त रखी.
बर्बरीक ने श्रीकृष्ण से कहा कि वह महाभारत का युद्ध देखना चाहता है. श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के सिर को एक ऊंचे टीले पर टांग दिया, जहां से उन्होंने पूरा युद्ध देखा.
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलयुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान भी दिया. युद्ध के बाद बर्बरीक का सिर नदी में गिर गया और मिट्टी में दब गया.
कलयुग में राजस्थान के सीकर जिले में खाटू नाम स्थान पर बर्बरीक का सिर प्रकट हुआ, जिन्हें आज भगवान खाटू श्यामजी के नाम से पूजा जाता है.