इस श्लोक में वेद व्यास कहते हैं,'हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भांति गोलाकार है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चंद्रमंडल में दिखता है. इसके दो अंशों में पिप्पल (पीपल) और दो अंशों में महान शश (खरगोश) दिखाई देता है.'