यहां रावण के पेशाब से बने तालाब में नहीं नहाता कोई
Kuldeep Panwar
रावण को भले ही आप माता सीता का अपहरण करने वाले विलेन के तौर पर जानते हैं, लेकिन असल में रावण सबसे बड़े शिवभक्तों में से एक था.
रावण ने भगवान शिव की तपस्या करने के साथ तांडवस्रोत की रचना की थी. इससे खुश होकर शिव उनके साथ लंका आने को तैयार हुए थे.
भगवान शिव ने शर्त रखी थी कि उनके शिवलिंग को लंका के रास्ते में कहीं पर नहीं रखेगा. यदि ऐसा हुआ तो शिवलिंग वहीं स्थापित हो जाएगा.
रावण के इसी शिवलिंग से उस तालाब की भी कहानी जुड़ी हुई है, जिसे आज की दुनिया 'रावण के पेशाब से बना तालाब' कहकर पुकारती है.
प्राचीन मान्यता के मुताबिक, रावण शिवलिंग लेकर लंका जा रहा था तो उसकी ताकत से घबराए देवताओं ने ये बात भगवान विष्णु से जाकर कही.
देवताओं ने कहा कि यदि रावण के साथ शिव लंका में जाकर वास करने लगे तो सृष्टि का सर्वनाश हो जाएगा और रावण अपराजेय बन जाएगा.
देवताओं की गुहार पर विष्णु ने बालक का रूप बनाया और रावण के रास्ते में वहां बैठ गए, जहां मौजूदा झारखंड का देवघर शहर मौजूद है.
भगवान विष्णु की माया से रावण के वहां पहुंचते ही उसे पेशाब करने का प्रेशर लग गया, लेकिन वहां बालक रूपी विष्णु के अलावा कोई नहीं था.
रावण ने उसके लघुशंका से निवृत्त होने तक बालक से शिवलिंग को अपने हाथों में पकड़कर खड़े रहने का अनुरोध किया, जो बालक ने मान लिया.
रावण ने बालक के हाथों में शिवलिंग पकड़ाया और थोड़ा दूर चला गया. उसके जाते ही बालक बने भगवान विष्णु ने शिवलिंग को नीचे रख दिया.
रावण का यह शिवलिंग हमेशा के लिए देवघर में ही स्थापित हो गया, जिसे आज वैद्यनाथ धाम कहते हैं. कहा जाता है यहां शिव खुद विराजमान हैं.
उधर, भगवान विष्णु की माया के चलते रावण पेशाब करता ही चला गया. रावण ने इतना पेशाब किया कि वहां एक बड़ा तालाब बन गया.
यह तालाब आज भी वैद्यनाथ धाम के करीब मौजूद है, जिसे रावण के पेशाब का तालाब या रावण पोखर कहा जाता है. इसका पानी कोई भी इस्तेमाल नहीं करता है और जानवर भी इससे दूर रहते हैं.
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