Aug 26, 2024, 03:11 PM IST

कर्ण के कवच-कुंडल से जुड़ी है उनके पूर्वजन्म की कहानी

Anamika Mishra

कर्ण महाभारत के मुख्य पात्र और योद्धा थे. उनके पूर्व जन्म से कवच कुंडल की कहानी जुड़ी हुई है. सतयुग में नर और नारायण ऋषि जो श्री हरि के अंश अंशावतार थे वो तपस्या कर रहे थे. 

इसी दौरान एक दुरदुम्भ नाम का रक्षस था जिसे ये वरदान मिला था कि उसका वध वही कर सकता है जिसे 1000 साल तप किया हो. इसके साथ ही राक्षस को सूर्य देव ने 100 कवचों और दिव्या कुंडल का वरदान भी दिया था. 

कोई भी अगर उस रक्षस का कवच तोड़ने की कोशिश करता था तो उसकी मृत्यु हो जाती थी. दुरदुम्भ के अत्याचार से सभी देवी-देवता परेशान होकर विष्णु जी के पास पहुंच गए. 

विष्णु जी ने सभी देवताओं को नर-नारायण के पास भेज दिया. इसके बाद नर ने युद्ध शुरू किया और कई दिनों तक युद्ध करने के बाद रक्षस का कवच तोड़ दिया इससे उनकी मृत्यु हो गई.

इसके बाद नारायण उठे और तपस्या के फल से नर को जीवित किया. इसके बाद नर ने तपस्या शुरू की और नारायण युद्ध करने लगे. नारायण की भी मृत्यु हो गई. इसके बाद तपस्या के फल से नर ने नारायण को जीवित कर दिया. 

ये सिलसिला ऐसे ही चला रहा था. इसके बाद जब रक्षा के 99 कवच टूट गए तो राक्षस भागा और सूर्य के पीछे जाकर छुप गया.  

इसके बाद नारायण ने कहा कि इसका फल आपको भी भुगतना होगा. यह राक्षस आपके तेज से द्वापर में भी जन्म लेगा और यही कवच-कुंडल तब उसके पास रहेंगे, लेकिन मृत्यु के वक्त काम नहीं आएंगे. 

मान्यताओं के अनुसार कवच-कुंडल के साथ जन्मा वो रक्षस कर्ण था, लेकिन युद्ध से ठीक पहले इंद्र ने दान में उनसे उनका कवच-कुंडल मांग लिया. 

वरदान के अनुसार अगर अर्जुन भी कर्ण का कवच तोड़ देते तो उनकी मृत्यु हो जाती. ये बातें महाभारत के आदिपर्व और भागवत पुराण में कही गई हैं, जहां कृष्ण-अर्जुन के पूर्व जन्म के रहस्य की बातें बताई गई हैं.