Dec 2, 2023, 04:14 PM IST

श्रीकृष्ण की पत्नियों की कैसे हुई थी मौत

Kuldeep Panwar

मान्यता है कि मौसुल युद्ध में परिजनों की मौत के बाद श्रीकृष्ण जब प्रभाष क्षेत्र में वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे तो एक भील ने भूलवश उनके पैर में तीर मार दिया था, जिसके बाद उन्होंने परलोक गमन किया था.

यह भी मान्यता है कि श्रीकृष्ण और अन्य परिजनों के परलोक गमन का समाचार सुनने के बाद उनके बड़े भाई बलराम ने भी समुद्र में जाकर समाधि ले ली थी.

श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद उनके परिवार में पुरुषों में पिता वसुदेव और उनके प्रपौत्र वज्रनाभ ही बचे थे. इसके अलावा श्रीकृष्ण की पत्नियों समेत सभी यदुवंशी महिलाएं ही बची रह गई थीं.

भगवान श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां सत्यभामा, जाम्बवंती, रुक्मिणी, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा थीं. उनके परमधाम जाने के बाद इन सबका क्या हुआ था, यह जानकारी महाभारत के मौसुल पर्व में मिलती है.

श्रीकृष्ण के परमधाम चले जाने की जानकारी मिलने पर अर्जुन हस्तिनापुर से द्वारिका पहुंचे. वहां सबको रोता हुआ देखकर वे भी रोने लगे. इसके बाद वे अपने मामा वसुदेव से मिलने गए.

कथाओं के मुताबिक, वसुदेव ने उन्हें श्रीकृष्ण का आदेश सुनाया कि उनकी पत्नियों व अन्य यदुवंश की स्त्रियों के भविष्य के बारे में मेरे निधन के बाद अर्जुन ही फैसला लेंगे. 

वसुदेव ने उन्हें आगे बताया कि श्रीकृष्ण ने यह भी कहा था कि तुम्हारे यहां से जाने के बाद द्वारिका नगरी को समुद्र डुबो देगा. वसुदेव ने अर्जुन से अपना अंतिम संस्कार करने का भी वादा लिया और देह त्याग दी.

अर्जुन अगले दिन वसुदेव का अंतिम संस्कार करने के बाद मौसुल युद्ध की जगह पहुंचे, जहां यदुवंशियों के आपसी संघर्ष के बाद हजारों वीरों के शव पड़े हुए थे.

अर्जुन ने उन सभी का अंतिम संस्कार किया और 7 दिन बाद सभी अंतिम कर्म कर वे भगवान श्रीकृष्ण की आठों पत्नियों समेत सभी द्वारिकावासियों को साथ लेकर हस्तिनापुर के लिए चल दिए.

अर्जुन के साथ लाखों लोगों के द्वारिका से बाहर निकलते ही समुद्र पूरी नगरी को डुबो देता है. अर्जुन श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ को इंद्रप्रस्थ का राजा बनाते हैं और सभी द्वारिकावासियों को वहीं बसा देते हैं.

कथाओं के मुताबिक, श्रीकृष्ण के विछोह में दुखी उनकी पत्नियों में से रुक्मिणी और जाम्बवंती इसे सहन नहीं कर पाती और आखिरकार वे अग्नि में प्रवेश कर प्राण त्याग देती हैं.

मान्यता है कि वज्रनाभ के रोकने के बावजूद सत्यभामा और श्रीकृष्ण की अन्य पत्नियां भी अक्रूरजी की पत्नियों के साथ तपस्या करने के लिए वन में चली जाती हैं और समय आने पर वहीं से परलोक गमन करती हैं.