Jan 16, 2024, 06:20 PM IST

रामायण का पाताल लोक, जहां हनुमान ने बचाए थे श्रीराम

Kuldeep Panwar

रामायण में प्रभु राम से जुड़े जितने अध्यायों का जिक्र मिलता है, उनमें सबसे ज्यादा रोचक हनुमान के कारनामों वाले अध्याय हैं. इन अध्यायों में अनूठी बातों की जानकारी मिलती है.

ऐसी ही अनूठी बातों में से एक पाताल लोक का जिक्र है. पाताल लोक के बारे में आपने रामायण ही नहीं कई अन्य पौरोणिक ग्रंथों में पढ़ा होगा और किस्सों में भी सुना होगा.

मान्यता है कि तीन लोक हैं. पृथ्वी लोक, आकाश में मौजूद देवलोक और धरती के अंदर बेहद गहराइयों में बसा पाताल लोक. माना जाता है कि देवलोक में नाग, गंधर्व, यक्ष और दानव रहते हैं. 

धरती और समुद्र के नीचे अनंत गहराइयों में पाताल लोक की मौजूदगी मानी जाती है, लेकिन क्या आपके मन में भी यह सवाल है कि क्या सही में रामायण का पाताल लोक मौजूद है?

पहले रामायण में पाताल लोक का जिक्र जान लें. लंका युद्ध में रावण के आदेश पर मायावी अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण का अपहरण कर उन्हें पातालपुरी ले जाता है.

हनुमान एक सुरंग के रास्ते पातालपुरी जाते हैं, जहां उनका सामना अपने पुत्र मकरध्वज से होता है. मकरध्वज हूबहू हनुमान जैसा था. हनुमान अहिरावण का वध कर देते हैं.

श्रीराम लौटने से पहले मत्स्यकन्या के हनुमान का पसीना पीने से पैदा हुए मकरध्वज को पातालपुरी का राजा बना देते हैं. इसके बाद पातालपुरी में हनुमान की पूजा होने लगती है. 

अब बात करें कि आज कहां है ये पातालपुरी या पाताल लोक, तो बता दें कि रामायण में इसे धरती के 70 हजार योजन नीचे बताया गया है. इतना खोदने पर हम गोल पृथ्वी के दूसरे हिस्से में पार निकल जाएंगे.

फिर इस हिसाब से पाताल लोक पृथ्वी के अंदर नहीं बल्कि कहीं पृथ्वी के ऊपर ही ग्लोब के दूसरे हिस्से में होना चाहिए, जो श्रीलंका के उलट देखें तो लैटिन अमेरिकी देशों का इलाका है.

1940 में अमेरिकी खोजी थियोडोर मोर्डे ने होंडुरास में जमीन के नीचे दफन 'सियूदाद ब्लांका' नाम के पुराने शहर की खोज की थी, जिसके लोग हनुमान जैसे वानरदेव की पूजा करते थे.

इस शहर का नक्शा LIDAR के नाम से जानी जाने वाली तकनीक से वैज्ञानिकों ने जमीन के नीचे की 3-D मैपिंग करके तैयार किया है, जो पाताल लोक के जिक्र जैसा ही लगता है.

सियूदाद ब्लांका में घुटने के बल बैठे वानरदेव की पूजा होती थी, जिनके हाथ में गदा जैसा ही हथियार होता था. इस आधार पर ही माना जाता है कि यही रामायण का विलुप्त पाताल लोक है.

हालांकि होंडुरास सरकार के पर्यावरण के प्रति बेहद संवेदनशील होने के कारण इस जंगल की खुदाई की इजाजत नहीं मिलती, जिससे इस स्थान की वास्तविक स्थिति का पता लग पाना मुश्किल है.