Jan 5, 2024, 03:24 PM IST

राम की मूर्ति नहीं पूजते पर पूरे शरीर पर राम-राम लिखवाते हैं रामनामी

Kuldeep Panwar

अयोध्या में रामलला की अपने घर में वापसी में अब कुछ ही दिन बचे हैं. 22 जनवरी को राम मंदिर में प्रभु राम की प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी.

भगवान राम के लिए श्रद्धा आपको देश के हर हिस्से में देखने को मिलेगी, लेकिन छत्तीसगढ़ के एक आदिवासी समुदाय की भक्ति के सामने शायद आपको सबकुछ फीका लगेगा.

हम बात कर रहे हैं रामनामी जनजाति की, जिनके रोम-रोम में भगवान राम बसे हुए हैं और जिनके लिए प्रकृति के कण-कण में बस राम ही मौजूद हैं. 

रामनामी समुदाय के लोग माथे से लेकर पैर के पंजे तक अपने शरीर के हर हिस्से पर राम का नाम लिखवाते हैं, जो आखिरी सांस तक इनके साथ रहता है. कई लोग जीभ पर भी राम नाम गुदवाते हैं.

इतना ही नहीं ये सिर पर राम नाम लिखा मोरपंख का मुकुट, शरीर ढकने के लिए राम नाम लिखी हुई ही सफेद चादर और पैरों में घुंघरू पहने रहते हैं.

रामनामी समुदाय के ऐसा करने का मकसद हर पल प्रभु राम को सुमिरन करना है. ये हर समय राम के भजन कीर्तन में ही लीन दिखाई देते हैं.

खास बात ये है कि रामनामी ना तो मंदिर जाते हैं और ना ही राम की मूर्ति की पूजा करते हैं. रामचरित मानस या रामायण का पाठ इनकी दिनचर्या का खास हिस्सा है.

आपस में 'राम-राम' कहकर अभिवादन करने वाले रामनामी ना झूठ बोलते हैं और ना ही शराब व मांस खाते हैं. हालांकि इनकी संख्या लगातार घट रही है. अब ये करीब 5,000 ही रह गए हैं.

शरीर पर राम के कितने नाम गुदे हैं, इसका भी रामनामी समुदाय में खास महत्व है. शरीर के किसी हिस्से में राम नाम लिखवाने वाला रामनामी कहलाता है.

माथे पर दो राम नाम गुदवाने वाले को शिरोमणि, पूरे माथे पर रामनाम लिखवाने वाले को सर्वांग रामनामी और पूरे शरीर पर राम नाम लिखवाने वाले को नख शिखा राम नामी कहा जाता है.

रामनामी समुदाय की शुरुआत जांजगीर-चापा जिले के चारपारा गांव से मानी जाती है. गांव के परसराम भारद्वाज ने 1890 में दलित समुदाय को मंदिर में प्रवेश नहीं मिलने के खिलाफ आवाज उठाई.

परसराम ने 1904 में राम के निराकार स्वरूप की भक्ति का आंदोलन शुरू कराया और अपने तन को ही मंदिर बना लिया. उन्होंने सबसे पहले अपने माथे पर रामनाम अंकित कराया था.

परसराम की पहल पर बरार के जिला सेशन कोर्ट ने फैसला दिया- ये लोग जिस राम के नाम को भजते हैं वे राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम नहीं हैं बल्कि निराकार ब्रह्म के प्रतीक राम हैं.

रामनामी समुदाय के सारे संस्कार बिना ब्राह्मणों के पूरे होते हैं. इनके झगड़ों का निपटारा भी कोर्ट में नहीं अपनी पंचायत में होता है. पंचायत का हर साल चुनाव होता है, जिसमें 100 पंच निर्वाचित होते हैं.

रामनामी समुदाय के लोग महानदी के किनारे छत्तीसगढ़ के पांच जिलों रायपुर, बिलासपुर, जांजगीर- चांपा, महासमुंद और रायगढ़ में करीब 300 गांव में रहते हैं.