दुर्योधन क्यों करना चाहता था पांडवों के कारण आत्महत्या
Kuldeep Panwar
महाभारत में दुर्योधन को बेहद वीर होने के साथ ही बहुत क्रूर भी दिखाया गया है, जो अपने ही चचेरे भाइयों यानी पांडवों से राजपाट छीन लेता है.
क्या आप जानते हैं कि महाभारत के युद्ध से पहले एक मौका ऐसा भी आया था, जब दुर्योधन ने आत्महत्या करने की तैयारी कर ली थी?
दुर्योधन ने आत्महत्या की कोशिश भी पांडवों के ही कारण की थी. क्या था इसके पीछे का कारण, चलिए हम आपको बताते हैं.
दुर्योधन ने पांडवों को जुए में हराकर राजपाट छीन लिया था और उन्हें वनवास के लिए भेज दिया था. वनवास में भी वह उन्हें परेशान करता था.
पांडव जब वनवास के दौरान द्वैत वन में जाकर रहने लगे तो दुर्योधन वहां भी अपने साथियों के साथ दल-बल लेकर वहां पहुंच गया.
दुर्योधन ने अपने सेवकों को जिस सरोवर के करीब क्रीड़ा भवन बनाने का आदेश दिया, वो बलशाली गंधर्वों की स्त्रियों के नहाने की जगह थी.
गंधर्वों ने दुर्योधन के सेवकों को रोका तो आपस में बहस शुरू हो गई. दुर्योधन ने अपने सैनिकों को गंधर्वों को पीटकर भगाने का आदेश दिया.
इस पर गंधर्वों के मुखिया चित्रसेन ने मायास्त्र का प्रयोग किया. मायास्त्र के कारण पूरी कौरव सेना भ्रम में पड़ गई और बेसुध हो गई.
गंधर्वों ने इसके बाद दुर्योधन, दुशासन समेत कौरव सेना के सभी योद्धाओं को बंदी बना लिया और उन्हें मृत्युदंड देने की बात कहने लगे.
गंधर्वों के शिकंजे से भागे कुछ कौरव सैनिकों ने इस बात की जानकारी पांडवों की कुटिया पर जाकर युधिष्ठिर को दी, जो बेहद दुखी हुए.
युधिष्ठिर ने भीम और अर्जुन को दुर्योधन व अन्य को छुड़ाने का आदेश दिया. दोनों के विरोध करने पर युधिष्ठिर ने कहा कि दुर्योधन जैसा भी है, लेकिन हमारा भाई है.
युधिष्ठिर के आदेश पर भीम-अर्जुन सरोवर पर पहुंचे और अपने युद्ध कौशल से गंधर्व सेना के छक्के छुड़ाकर सभी को कैद से छुड़ा लिया.
दुर्योधन को होश में आने पर इसकी जानकारी मिली तो वह आत्मग्लानि के कारण बेहद दुखी हुआ और साधु वेश में अन्न-जल त्यागकर वन में चला गया.
दुर्योधन को कुछ लोग समझाने गए, लेकिन उसने कहा कि पांडवों की दी हुई जिंदगी जीने का कोई मतलब नहीं है, इस कारण मैं आत्महत्या कर रहा हूं.
पौरोणिक कथाओं के मुताबिक, दुर्योधन को असुर उसके कर्मों के कारण खुद में से एक मानते थे. इस कारण वे उसके आत्महत्या के फैसले से दुखी हुए.
असुरों ने एक राक्षसी को भेजकर दुर्योधन को पाताल में बुलाया, जहां उसे पांडवों के खिलाफ युद्ध में असुरों के सहायता करने का वादा किया गया.
दुर्योधन जब धरती पर वापस लौटा तो उसे लगा कि उसने सपना देखा है, लेकिन अगले दिन कर्ण ने भी उसके सामने पांडवों के विनाश का प्रण लिया.
इसके बाद दुर्योधन ने आत्महत्या करने का विचार त्याग दिया और पांडवों का अज्ञातवास पूरा होने पर उनके खिलाफ महायुद्ध की तैयारी में जुट गया.
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