भारत पर हुए विदेशी आक्रमणों में हमेशा घर के भेदियों का हाथ रहा है. मोहम्मद गौरी के जयचंद से अहमशाह अब्दाली के रोहिल्ले सरदारों तक यह लिस्ट बहुत लंबी है.
भारत पर सबसे लंबे समय तक राज करने वाली मुगल सल्तनत भी ऐसे ही एक घर के भेदी के कारण बनी थी, जिसका नाम दौलत खान था.
दौलत खान ने ही अफगानिस्तान के काबुल में राज कर रहे बाबर को भारत आकर दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी को लूटने का न्योता दिया था.
दौलत खान लोदी दिल्ली के लोदी शासकों की तरफ से पंजाब का गवर्नर था, जो 1517 में सिकंदर लोदी की मौत के बाद बादशाह बने इब्राहिम लोदी से नाराज था.
इब्राहिम का चाचा आलम खान भी खुद बादशाह बनना चाहता था. दोनों ने हाथ मिलाया और बाबर को दिल्ली पर हमले का न्योता भेज दिया.
आलम और दौलत को लगा कि बाबर दिल्ली को लूटने के बाद बाकी हमलावरों की तरफ वापस काबुल लौट जाएगा और सत्ता उनकी हो जाएगी.
बाबर भी मध्य एशिया में साम्राज्य नहीं फैला पा रहा था. वह भारत की समृद्धि की कहानियां सुनता था. उसे भारत आने का न्योता बड़ा मौका लगा.
बाबर जब भारत आया तो उसे दौलत खान के साथ मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह का भी साथ मिला, जो इब्राहिम लोधी से दुश्मनी मानते थे.
अप्रैल, 1526 में इब्राहिम लोदी के साथ बाबर की लड़ाई हुई, जिसे पानीपत की पहली लड़ाई कहा जाता है. इसमें इब्राहिम लोदी मारा गया.
सबको लगा कि बाबर दिल्ली लूटकर वापस लौट जाएगा, पर उसे भारत की आबोहवा भा गई. उसने यहीं मुगल सल्तनत बनाने का फैसला कर लिया.
बाबर के इस फैसले ने भारत की राजनीति ही बदल दी, जिसका असर अगले 450 साल तक चली मुगल सल्तनत में ही नहीं आज भी दिखाई देता है.