अर्जुन को महाभारत युद्ध में अजेय बनाने वाला गांडीव किसने दिया था
Kuldeep Panwar
महाभारत के युद्ध में लाखों लोग 18 दिन के अंदर मारे गए थे. इस युद्ध में पांडवों ने कौरवों की सेना को हराकर हस्तिनापुर की राजगद्दी हासिल की थी.
इस युद्ध में कौरवों और पांडवों की सेना के बीच सबसे बड़ा अंतर अर्जुन साबित हुए थे, जो पांडव भाइयों में तीसरे नंबर पर थे और उस समय दुनिया के सबसे बड़े धनुर्धर कहलाते थे.
अर्जुन की धनुष विद्या की सबसे बड़ी खासियत मछली की आंख को भी भेदने जैसा सटीक निशाना लगाने की योग्यता थी, जिसे उनके धनुष गांडीव ने और ज्यादा बड़ा दिया था.
अर्जुन के धनुष गांडीव को इतिहास में आज तक का सबसे सटीक और बेहतर धनुष माना जाता है. यह धनुष आखिर अर्जुन को कैसे मिला था? यह बात हम आपको बताते हैं.
महाभारत के मुताबिक, ब्रह्माजी ने कण्व ऋषि के शरीर पर कठोर तप के दौरान उगे बांसों से गांडीव, पिनाक और शार्ङग धनुष का निर्माण भगवान विश्वकर्मा की मदद से किया था. निर्माण का उद्देश्य धर्म की रक्षा करना था.
ब्रह्माजी ने ये तीनों धनुष शिवजी को दिए थे, जिन्होंने इन्हें बाद में इंद्रदेव को दे दिया था. इंद्रदेव ने पिनाक धनुष भगवान परशुराम को दिया था, जिनसे यह राजा जनक को मिल गया था, जिसे प्रभु श्रीराम ने माता जानकी के स्वंयवर में तोड़ा था.
गांडीव धनुष शिवजी से प्रजापति को मिला था. इसके बाद यह धनुष इंद्र के पास चला गया था. इंद्र से सोमदेव को और आखिर में वरुणदेव को यह धनुष मिला था.
अर्जुन को गांडीव धनुष वरुण देव (जल के देवता) से मिला था, जो अर्जुन के दैविक पिता इंद्र के भाई हैं. वरुण देव ने अग्नि देव के आग्रह पर अर्जुन को गांडीव दिया था. महाभारत के विराट पर्व में अर्जुन खुद उत्तर कुमार को गांडीव मिलने की कथा सुनाते हैं.
गांडीव धनुष इतना सटीक था कि इसे धारण करने वाले को अपराजेय माना जाता था यानी उसे कोई भी दुनिया में युद्ध में नहीं हरा सकता था. इस कारण अर्जुन महाभारत युद्ध में अजेय साबित हुए थे.
गांडीव धनुष अर्जुन के बाद कहां चला गया था? इस सवाल का जवाब ये है कि अर्जुन जब अंत समय में स्वर्ग के लिए जा रहे थे तो उन्होंने यह धनुष वरुण देव का आह्वान कर उन्हें ही लौटा दिया था.