हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में प्रकृति का ऐसा अजब रहस्य मौजूद है, जो आज तक वैज्ञानिकों को हैरान किए हुए है. यह रहस्य है मां ज्वाला देवी मंदिर का.
माता ज्वाला देवी मंदिर को देवी शक्ति के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. भगवान विष्णु ने जब सुदर्शन चक्र से भगवती सती के पार्थिव शरीर के टुकड़े किए तो उनकी महाजिह्वा यानी जीभ यहां गिरी थी.
ज्वाला माई नाम से मशहूर इस मंदिर में देवी की मूर्ति नहीं बल्कि जमीन से निकल रही नौ अग्नि ज्योतियों के रूप में पूजा होती है, जो हजारों साल से बिना तेल-बत्ती के खुद जल रही हैं.
इन नौ ज्योति रूपों को महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, हिंगलाज भवानी, विंध्यवासिनी,अन्नपूर्णा, चण्डी देवी, अंजना देवी और अम्बिका देवी के तौर पर पूजा जाता है.
यहां जमीन से निकल रही अग्नि ज्योति ही चमत्कारिक रहस्य है, जिसे आज तक वैज्ञानिक भी सुलझाने में नाकाम रहे हैं. यहां भूगर्भ में कोई ज्वालामुखी या गैस भंडार भी नहीं पाया गया है यानी यह दैवीय चमत्कार ही है.
ज्वाला माता मंदिर का निर्माण सतयुग में राजा भूमिचंद ने कराया, जिसे द्वापर युग में पांडवों ने खोजा. बाद में गुरु गोरखनाथ ने यहां पूजा-पाठ का असली चलन शुरू किया. मौजूदा मंदिर का निर्माण महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने कराया था.
मुगल बादशाह अकबर को इस मंदिर के बारे में हिमाचल के नादौन निवासी भक्त ध्यानू से पता लगा, तब उसने परीक्षा लेने के लिए ध्यानू के घोड़े की गर्दन काट दी.
ध्यानू ने घोड़े की गर्दन जुड़वाने को एक महीने का समय मांगा और ज्वाला माता मंदिर आ गया. नहा-धोकर माता के हाथ जोड़कर भक्त की लाज रखने की विनती की. दिल्ली में घोड़े की गर्दन जुड़ने का चमत्कार हो गया.
हैरान बादशाह अकबर भारी सेना लेकर माता मंदिर आ गया और सैनिकों से नहर खोदकर ज्योतियों के ऊपर पानी छोड़ने को कहा. इससे भी ज्योति नहीं बुझी तो उसे माता के चमत्कार पर यकीन हो गया.
अकबर ने सवा मन (करीब 50 किलो) सोने का छत्र बनवाया और घुटनों के बल चलकर माता के दरबार में पहुंचा. अकबर ने सोने का छत्र माता को अर्पित किया, लेकिन अभिमान भरे शब्द भी कहे.
दावा है कि अकबर के चढ़ावे को माता ने अस्वीकार कर दिया और सोने के छत्र को किसी अलग ही धातु में बदल दिया. यह छत्र आज भी मंदिर में सुरक्षित है, जिसकी धातु का पता वैज्ञानिक नहीं लगा सके हैं.
अंग्रेजों ने भी माता की इन ज्वालाओं का रहस्य जानने के लिए यहां खूब खुदाई की, लेकिन कुछ पता नहीं लगा सके. अंग्रेज जमीन के अंदर की इस ऊर्जा का इस्तेमाल अपने लिए करना चाहते थे.
आजादी के बाद भी बहुत सारे भूगर्भ विज्ञानी पिछले सात दशक के दौरान यहां खुदाई करके और अन्य तरीकों से अखंड ज्योतियां जलने का रहस्य जानने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन सभी विफल रहे हैं.