रेल के डिब्बे के रंग और स्पीड में है ये खास कनेक्शन
Kuldeep Panwar
भारतीय रेलवे में यात्रा के दौरान अलग-अलग ट्रेन के डिब्बों का रंग भी अलग-अलग तरह का देखा होगा. कोई डिब्बा नीला तो कोई नारंगी और कोई लाल देखा होगा.
ट्रेन के डिब्बों को इस तरह अलग-अलग रंग में क्यों रंगा जाता है? कहीं आपको ये तो नहीं लगता कि यह काम ट्रेन को सुंदर बनाने के लिए किया जाता है? ऐसा नहीं है भाई. चलिए हम इसका कारण बताते हैं.
दरअसल ट्रेनों की खासियत के हिसाब से उसके डिब्बों का कलर और डिजाइन तय किया जाता है. ट्रेन के डिब्बों का रंग उस ट्रेन की औसत स्पीड को दिखाते हैं.
शताब्दी और राजधानी एक्सप्रेस ट्रेनों में लाल, आसमानी या सिल्वर कलर के डिब्बे लगते हैं. इन डिब्बों को 160 से 200 किमी प्रति घंटा तक की गति पर दौड़ाया जा सकता है.
ये डिब्बे एल्युमिनियम से बनते हैं और इस कारण हल्के होते हैं. इससे ये हाई स्पीड ट्रेनों पर ओवरलोड नहीं डालते हैं, जिससे उस ट्रेन की गति प्रभावित नहीं होती है.
साल 2000 में पहली बार जर्मनी से आए शताब्दी-राजधानी के लाल डिब्बों में डिस्क ब्रेक भी होता है. इससे ये इमरजेंसी में तत्काल ब्रेक लगाकर रोके जा सकते हैं.
ज्यादातर भारतीय ट्रेन आपको नीले रंग की दिखाई देंगी. लोहे के बने ये डिब्बे एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेनों में लगाए जाते हैं. इन्हें इंटीग्रल कोच कहा जाता है.
इन नीले डिब्बों में एयरब्रेक से होते हैं. लोहे की बनावट के कारण ज्यादा भारी होने से ये डिब्बे 70 से 140 किमी प्रति घंटा तक की गति पर ही चल सकते हैं.
गरीब रथ ट्रेनों के डिब्बे भूरे और हरे रंग के होते हैं. इनका गति से मतलब नहीं होता है बल्कि ये महज इन ट्रेनों की अलग पहचान रखने की भारतीय रेलवे की कोशिश है. इन्हें सुंदर बनाने के लिए चित्रकारी भी की जाती है.