Jan 26, 2024, 07:48 PM IST

गणतंत्र दिवस परेड में दिखी वो खास चीज, जो पाक से सिक्का उछालकर जीता था भारत

Kuldeep Panwar

इस बार गणतंत्र दिवस की परेड बेहद खास रही है. दरअसल इसका कारण रहा है महिला सुरक्षा बलों का मार्चपास्ट और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की एंट्री.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि यानी फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों संग 40 साल बाद उस खास बग्घी में बैठकर कर्तव्य पथ पहुंची, जिसका इतिहास आजादी से भी पुराना है.

राष्ट्रपति की यह बग्घी आजादी से पहले अंग्रेज वायसराय (भारत में ब्रिटिश हुकूमत का सर्वोच्च अधिकारी) के लिए बनाई गई थीं, जिसे लेकर 1947 में भारत-पाकिस्तान में तनातनी हो गई थी.

दरअसल 1947 में देश की आजादी के समय भारत और पाकिस्तान के बीच जमीन और सेना के साथ ही ब्रिटिश शासन की अन्य चीजों का भी बंटवारा हो रहा था.

बंटवारे का काम भारत की तरफ से एचएम पटेल और पाकिस्तान की तरफ से चौधरी मुहम्मद अली को सौंपा गया था. इन दोनों को ही सामान के बंटवारे पर आखिरी फैसला लेना था.

ब्रिटिश वायसराय के सामान का बंटवारा होते समय बात तब अटक गई, जब वायसराय की सोने की बग्घी पर दोनों देश दावा ठोकने लगे और मामला तनातनी तक पहुंच गया.

उस समय गवर्नल जनरल बॉडीगार्ड (अब प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड) के कमांडेंट लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और उनके डिप्टी साहबजादा याकूब खान ने विवाद सुलझाने के लिए एक हल बताया.

दोनों ने कहा कि बग्घी भारत या पाकिस्तान में से किसके पास रहेगी, इस बात का फैसला सिक्के से टॉस उछालकर कर लिया जाए. पटेल और मुहम्मद अली भी इस बात पर सहमत हो गए.

इसके बाद टॉस उछाला गया. साहबजादा याकूब खान ने सिक्का उछाला और लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह को कॉल का मौका मिला. कर्नल सिंह टॉस जीत गए और बग्घी भारत की हो गई.

छह खास घोड़ों से खींची जाने वाली काले रंग की बग्घी के पहियों के रिम्स पर सोने की परत चढ़ी हुई है. बग्घी का इंटीरियर रेड वेलवेट कपड़े का है और इस पर अशोक चक्र लगा हुआ है.

पहली बार यह बग्घी भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1950 में देश के पहले गणतंत्र दिवस के मौके पर उपयोग की थी. इसके बाद 1984 तक सभी राष्ट्रपति हर साल इसी में परेड देखने आते थे.

दिल्ली के बीचोबीच 330 एकड़ इलाके में फैले राष्ट्रपति भवन के अंदर भी राष्ट्रपति इसी बग्घी में बैठकर सफर किया करते थे और खास समारोहों में भी इसी से जाते थे.

साल 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके बॉडीगार्ड्स द्वारा करने के बाद खतरे के कारण बग्घी का उपयोग बंद कर दिया गया और राष्ट्रपति बुलेटप्रूफ गाड़ी में चलने लगे.

2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी के लिए दोबारा इस बग्घी का उपयोग करना शुरू किया था. उनके बाद रामनाथ कोविंद भी यही करते रहे.

अब करीब 40 साल बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू गणतंत्र दिवस पर इस बग्घी में बैठकर कर्तव्य पथ पर आने वाली पहली राष्ट्रपति बनी हैं.