कहां है हीर रांझा की कब्र, आज भी लगी रहती है कपल्स की लाइन
Kuldeep Panwar
प्यार की मिसाल देने के लिए रोमियो-जूलियट की तरह ही लैला-मजनू और हीर-रांझा का भी नाम लिया जाता है. अधिकतर लोग इन प्रेम कहानियों को काल्पनिक ही मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है.
किस्सों-कहानियों में अमर हो गए ये प्रेमी जोड़ों कभी धरती पर असलियत में भी मौजूद थे. इसका सबूत हीर-रांझा की वो कब्र है, जिस पर आज भी हजारों प्रेमी जोड़े माथा टेकने आते हैं.
मान्यताओं के मुताबिक, हीर चिनाव नदी किनारे झांग गांव (अब पाकिस्तान पंजाब) के छूछक सियाल और मलकी की बेटी थीं. उनका असली नाम इज्जत बीबी था.
रांझा का असली नाम मियां उमर था और वह करीब के ही गांव तख्त हजारा का था. उसे बांसुरी बजाने का शौक था, जिस पर उसके भाइयों ने पीटकर घर से निकाल दिया था.
रांझा भटककर हीर का गांव पहुंचा, जहां उसकी बांसुरी सुनकर हीर को उससे प्यार हो गया और उसने रांझा को अपने गाय-भैंस के फार्म में काम दे दिया था.
हीर-रांझा की प्रेम कहानी सभी से छिपकर चलती रही, लेकिन एक दिन हीर के चाचा कैदो को इसका पता चल गया. हीर की शादी कहीं और तय कर दी गई, लेकिन उसने मना कर दिया.
रांझा की मौत के बाद गांव वाले डर गए. इसके बाद हीर-रांझा के प्यार को सम्मान दिया गया और दोनों को एक ही कब्र में दफनाकर उनका मकबरा बनवा दिया गया.
मकबरे में लगी पट्टिका पर 876 AH लिखा है, जो 1471 ईस्वी से मेल खाता है. इस लिहाज से माना जाता है कि हीर-रांझा की प्रेम कहानी 15वीं शताब्दी की है.
हीर-रांझा की यह कब्र आज भी झांग में मौजूद है, जो फिलहाल पाकिस्तानी पंजाब के झांग जिले का मुख्यालय है और पाकिस्तान का 18वां सबसे बड़ा शहर भी है.
स्थानीय मान्यताओं के कारण प्रेमी युगलों के अलावा यहां अविवाहित लड़के-लड़कियां भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं और कब्र पर फूल चढ़ाकर मनचाहे जीवनसाथी के लिए प्रार्थना करते हैं.