Sep 29, 2023, 01:35 PM IST

अघोरी श्मशान में क्या करते हैं

Kuldeep Panwar

अघोरी तन पर इंसानी चिता की राख लपेटकर घूमने वाले वे साधु हैं, जिनकी 'मोक्ष' प्राप्ति की प्रथाएं बाकी साधुओं से अलग हैं, जो इतनी डरावनी हैं कि अघोरी शब्द सुनते ही सब घबराने लगते हैं.

अघोरियों के बारे में एक बात सबसे ज्यादा प्रचलित है. यह बात है कि अघोरी इंसानी मांस खाते हैं. क्या यह बात सच है? यह सवाल हर किसी के दिमाग में रहता है. चलिए आपको अघोरियों के बारे में सबकुछ बताते हैं.

पहले जान लीजिए कि अघोर पंथ क्या है? दरअसल भगवान शिव के पांच रूप हैं, जिनमें सबसे शक्तिशाली अघोर रूप है. इसे माता सती के शव की राख को लपेटकर घूमने वाले भगवान शिव से जोड़ा जाता है.

अघोरी श्मशान घाट में ही रहते हैं, जहां वे भगवान शिव और माता काली की पूजा करते हैं. वे रातों को जागकर चिताओं से अधजली लाशों को निकालकर उनके साथ तंत्र क्रिया करते हैं. ये तंत्र क्रिया शिव के अघोर स्वरुप की साधना का ही हिस्सा है.

अघोरी अपनी साधना के दौरान चिता के सामने एक पैर पर खड़े होकर घंटों तक शिव की आराधना करते हैं. इसी दौरान उनकी तंत्र साधना में मांस और मदिरा का भोग लगाया जाता है.

अघोरी तंत्र साधना का एक अहम हिस्सा नरभक्षण भी है यानी इंसानी मांस खाना भी है. हालांकि इसके लिए वे किसी इंसान का वध नहीं करते हैं बल्कि वे चिताओं के अधजले शव या नदियों में बहने वाले शवों को खाते हैं. इंसानी मांस कच्चा ही खाया जाता है.

अधजली लाशों को खाने के साथ ही अघोरी उनकी खोपड़ियों के द्रव्य का भी उपयोग तंत्र साधना में करते हैं. मानव खोपड़ी में खाना खाने-मदिरा पीने के साथ ही वे नरमुंडों की माला भी पहनते हैं.

अघोरियों का मानना है कि इंसानी मांस का भोग तंत्र साधना में लगाने से उनकी तंत्र शक्ति बढ़ती है. इसे वे गंदा नहीं मानते हैं बल्कि उनका कहना है कि जन्म के समय हर बच्चा अघोरी होता है, जो भोजन और गंदगी में फर्क नहीं करता है.

अघोरी तंत्र साधना के दौरान शवों के साथ श्मशान में शारीरिक संबंध भी बनाते हैं. जीवित महिलाओं के साथ वे संबंध उसके मासिक धर्म के दौरान ही बनाते हैं. उनका मानना है कि इससे भी तंत्र शक्ति बढ़ती है.

अघोरी केवल एक लंगोटी का ही वस्त्र धारण करते हैं ताकि सांसारिक वस्तुओं के प्रति उनके लगाव का त्याग हो सके और उनके अंदर तंत्र साधना करने के लिए शर्म की भावना खत्म हो जाए.

अघोरी इंसानी चिता की राख को ही शिव की तरह अपने पूरे शरीर पर भभूत मानकर लपेटते हैं. उनका मानना है कि ये अघोरी को किसी भी तरह की बीमारी से बचाती है.