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कैसे गिने गए 3167 बाघ? समझिए Tiger Census का तरीका, रोमांच से भर जाएगा मन

Tiger Census in India: इस साल बाघों की गिनती के आंकड़े जारी कर दिए गए हैं. इससे पहले साल 2018 में बाघों की गिनती कई गई थी.

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Tiger Census 2023

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डीएनए हिंदी: हाल ही में प्रधानमंत्री ने देश में बाघों की जनगणना के आंकड़े जारी किए. आंकड़े सकारात्मक हैं. पिछली गणना की तुलना में 200 बाघों का इजाफा हुआ है. देश में अब बाघों की संख्या 3,167 हो गई है. देश के लगभग 20 राज्यों में बाघ पाए जाते हैं. अलग-अलग टाइगर रिजर्व या नेशनल पार्क में इनकी संख्या अलग-अलग है. इनकी गिनती भले ही बहुत कम लग रही हो लेकिन जानवरों की गिनती, खासकर बाघ जैसे शक्तिशाली और खतरनाक जानवर की गिनती बेहद चुनौतियों भरी होती है.

नेशनल पार्क या टाइगर रिजर्व में बाघ या शेर जैसे जानवरों को पिंजड़े या बाड़े में नहीं रखा जाता है. ये सैकड़ों किलोमीटर के इलाके में रहते हैं. बस इन इलाकों को संरक्षित रखा जाता है. बाघों की गिनती का काम यहीं से चुनौतियों भरा हो जाता है. न तो ये बाघ किसी एक जगह पर मिलते हैं और न ही एक समय पर एक साथ इन्हें गिना जा सकता है. फिर आखिर इनकी गिनती होती कैसे है? आइए समझते हैं...

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कैसे होती है अलग-अलग बाघों की पहचान?
बाघ की पहचान उनके शरीर पर बनी धारियों से होती है. जैसे हर इंसान का फिंगर प्रिंट बिल्कुल अलग होता है, ठीक वैसे ही बाघों के शरीर पर बनी धारियां किसी दूसरे बाघ के शरीर पर बनी धारी से मिलती नहीं हैं. यानी इनकी धारियों के आधार पर इनकी पहचान की जा सकती है. यही वजह है कि गिनती का सबसे कामयाब तरीका फोटोग्राफी होता है. हालांकि, हजारों की संख्या में बाघों की गिनती के लिए करोड़ों फोटो खींचने पड़ते हैं.

इस साल भी बाघों की गिनती के लिए 32 हजार से ज्यादा कैमरों का इस्तेमाल हुआ और 4.70 करोड़ फोटो खींचे गए. इतने फोटो खींचने और बाघों की गिनती के लिए सर्वे टीम को लगभग 6 लाख 40 हजार किलोमीटर दूरी तय करनी पड़ी. गिने गए कुल 3167 बाघों में से 3080 को कैमरों से खींचे गए फोटो से पहचाना गया. बाकी के 87 की पहचान के लिए अन्य तरीके अपनाए गए.

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फोटो के अलावा क्या है पहचान का तरीका?
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की रिपोर्ट के मुताबिक, कुल 4,70,81,881 फोटो खींची गई जिसमें से 97,399 फोटो में 3,080 बाघ पूरी तरह से दिखाई दिए. जो बाघ फोटो में नहीं दिखे उनकी पहचान के लिए उनके मल, मूत्र या पेड़ों पर बाघों के बनाए निशान से हुई. दरअसल, बाघ पेड़ों पर निशान लगार अपना इलाका तय करते हैं. वन विभाग की टीम इन्हीं के हिसाब से ट्रैप कैमरा लगा देती हैं जो समय-समय पर अपने आप फोटो खींचते रहते हैं.

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