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क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन? भारत में इसे लागू करने से कितना फायदा और नुकसान, 10 पॉइंट में समझें पूरा मॉडल

वन नेशन-वन इलेक्शन व्यवस्था लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि संविधान और कानून बदलना पड़ेगा. एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा.

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क्या है वन नेशन-वन इलेक्शन? भारत में इसे लागू करने से कितना फायदा और नुकसान, 10 पॉइंट �में समझें पूरा मॉडल

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वन नेशन-वन इलेक्शन (One Nation, One Election) को मोदी कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में मंगलवार को एक देश-एक चुनाव पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी की रिपोर्ट पेश की गई, जहां चर्चा के बाद सरकार ने इसे मंजूरी दे दी. अब यह बिल आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा.  समिति ने मार्च के महीने में ही अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. रिपोर्ट में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराए जाने के सुझाव दिए गए हैं.

रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराए जाने चाहिए. इसके 100 दिन के अंदर स्थानीय निकाय चुनाव भी संपन्न हो जाने चाहिए. मतलब एक निश्चित समय में देश के सभी चुनाव निपट जाने चाहिए. इससे पैसा और समय दोनों की बर्बादी बचेगी. वर्तमान में राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग समय पर आयोजित किए जाते हैं.

आइये जानते हैं कि वन नेशन-वन इलेक्शन होता क्या है? इससे क्या फायदे और नुकसान हैं? किन-किन देशों में यह लागू है? भारत में इसे लागू करने में क्या-क्या चुनौतियां आ सकती हैं. 

What is One Nation, One Election?
वन नेशन-वन इलेक्शन का मतलब है कि संसद के निचले सदन यानी लोकसभा चुनाव के साथ राज्य विधानसभाओं के चुनाव भी एकसाथ कराए जाएं. भारत के लोकसभा चुनाव दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव माना जाता है. इसमें लाखों की संख्या में कर्मचारी काम करते हैं और करोड़ों मतदाता वोट डालते हैं. देश में हर 6 महीने में किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं. ऐसे में एक देश-एक चुनाव कराने पर जोर दिया जा रहा है.

आजादी के बाद एकसाथ होते थे चुनाव
आजादी के बाद शुरुआती सालों में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ होते थे. साल 1952, 1957, 1962 और 1967 तक एकसाथ ही चुनाव हुए थे. इसके बाद कुछ राज्यों का पुनर्गठन हुआ और कुछ नए राज्य बनाए गए. इसके अलावा कुछ राज्यों में विधानसभाएं जल्द ही भंग होती गईं, जिससे चुनावी व्यवस्था बिगड़ती चली गई.

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वन नेशन-वन इलेक्शन के फायेद-नुकसान
एक देश एक चुनाव का सबसे बड़ा फायदा यह बताया जा रहा है कि चुनाव क खर्च घट जाएगा. अलग-अलग चुनाव कराने पर भारी-भरकम रकम खर्च करनी पड़ती है और यह रकम किसी और की नहीं होती बल्कि जनता द्वारा दिया गया टैक्स का पैसा होता है. बार-बार चुनाव कराने पर प्रशासन, सुरक्षाबलों, कर्मचारियों पर पड़ता है जिन्हें बार-बार ड्यूटी करनी पड़ती है. एक ही दिन चुनाव कराने से वोटरों की संख्या भी बढ़ेगी. क्योंकि अभी तो कुछ लोग वोट डालने के लिए घरों से इसलिए नहीं निकल पाते कि हर साल उन्हें कोई न कोई चुनाव सामने दिखता है.

वहीं कुछ पार्टियों ने इस प्रस्ताव का जोरदार विरोध किया है. उन्होंने दलील दी है कि वन नेशन-वन इलेक्शन से क्षेत्रीय दलों को नुकसान होगा. इससे पूरे देश में अविश्वास प्रस्ताव लाने के प्रावधान को खत्म करना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि वर्तमान संघीय शासन प्रणाली को नष्ट करके राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू करने और देश को बहुदलीय लोकतंत्र से सिंगल पार्टी स्टेट में बदलने की कोशिश की जा रही है.

एक देश एक चुनाव की सबसे बड़ी चुनौतियां
वन नेशन-वन इलेक्शन व्यवस्था लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि संविधान और कानून बदलना पड़ेगा. एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा. राज्य विधानसभाओं से पास कराना होगा. जिन राज्य विधानसभाओं को कार्यकाल बचा हुआ है, उन्हें भंग करना होगा. इसके अलावा ईवीएम और वीवीपैट की बड़ी चुनौती होगी. लगभग 140 करोड़ देश की जनसंख्या है. अगर इनमें आधे भी मतदाता हैं तो एकसाथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव के लिए मशीनों की जरूरत पड़ेगी.

अगली बार 750 सीटों पर होगा चुनाव?
एक देश एक चुनाव के साथ यह भी संभावना जताई जा रही है कि 2029 में लोकसभा की 543 की बजाय 750 लोकसभा सीटों पर चुनाव हो. दरअसल 2002 के एक परिसीमन के तहत 2026 तक लोकसभा की सीटें बढ़ाने पर रोक लगी है.  2027 में जनगणना होनी है. ऐसे में परिसीमन भी हो सकता है. परिसीमन का आशय जनसंख्‍या के आधार पर लोकसभा सीटों के निर्धारण से है. अगर ऐसा हुआ तो जनसंख्या के आधार पर लोकसभा की सीटें बढ़ना तय है.

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