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One Nation One Election: एक देश एक चुनाव में फायदा या नुकसान? एक ही बार में सब समझिए

What is One Nation One Election: लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले देश में एक देश एक चुनाव पर फिर से चर्चा शुरू हो गई है.

One Nation One Election: एक देश एक चुनाव में फायदा या नुकसान? एक ही बार में सब समझिए

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डीएनए हिंदी: संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के बाद कई तरह के कयास लगने लगे हैं. यूनिफॉर्म सिविल कोड का बिल लाने या फिर एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने का प्रस्ताव लाए जाने की चर्चाएं सबसे ज्यादा चर्चा में हैं. अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव और इसी साल होने जा रहे विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए विपक्ष ने भी आशंका जताई है कि मोदी सरकार एक साथ चुनाव करवाने की दिशा में आगे बढ़ सकती है. खुद पीएम मोदी कई बार इसकी वकालत कर चुके हैं. उनका मानना है कि इससे हमेशा चुनावी मोड में रहने वाली सरकारों को पांच साल तक काम करने का मौका मिलेगा. अब कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या एक साथ चुनाव संभव हैं? इससे क्या फर्क पड़ेगा? क्या कानून इसकी इजाजत देता है?

भारत में राज्यों और केंद्र में लोकतांत्रिक व्यवस्था है यानी दोनों ही सरकारें प्रत्यक्ष चुनाव से चुनकर आती हैं. राज्यों और केंद्र का मिलाकर देखें तो हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते ही रहते हैं. उदाहरण के लिए इस साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मिजोरम और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं. फिर अगले साल लोकसभा चुनाव और हरियाणा, महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में चुनाव होने हैं. ऐसे में लंबे समय से इस पर चर्चा हो रही है कि क्या ये सारे चुनाव एकसाथ करवाए जा सकते हैं? आइए इसे विस्तार से समझते हैं.

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क्या संभव हैं एकसाथ चुनाव?
अगर बात एकसाथ चुनाव कराने की संभावनाओं पर करें तो यह बिल्कुल संभव है. पहले भी कई बार एकसाथ चुनाव हो चुके हैं. हालांकि, समय के साथ सरकारों के गिर जाने के चलते इनके समय में अंतर आ गया. मौजूदा समय में कानून में थोड़े बहुत बदलाव करके फिर से एकसाथ चुनाव कराए जाते हैं. हालांकि, अगर 2024 में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव होते हैं तो उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, गुजरात और गोवा जैसे राज्यों की सरकारें बहुत कम समय में ही बर्खास्त करनी होंगी और इन राज्यों को एक-दो साल में ही फिर से चुनावों का सामना करना पड़ेगा.

4 बार हो चुके हैं एकसाथ चुनाव
साल 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद पहला चुनाव साल 1951-52 में हुआ. तब विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ ही करवाए गए. इसके बाद भी सभी सरकारों ने अपना कार्यकाल पूरा किया इसलिए 1957, 1962 और 1962 में भी विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ ही हुए. हालांकि, 1967 में उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की बगवात के चलते सीपी गुप्ता की सरकार गिर गई और यहीं से एकसाथ चुनाव का गणित भी खराब हो गया. फिर 1971 में इंदिरा गांधी ने एक साल पहले ही लोकसभा चुनाव करवा दिए और एकसाथ चुनाव गुजरा हुआ वक्त हो गए.

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अब क्या कहता है कानून?
साल 2018 में जब पीएम मोदी ने एक देश एक चुनाव का मुद्दा फिर से उछाला तो विधि आयोग ने एक रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी थी. इस मसौदे में कुछ चुनाव कानूनों और संविधान में संशोधनों की सिफारिश की गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक, अलग-अलग चुनावों से देश के संसाधनों और धन की बर्बादी होती है. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में माना था कि मौजूदा नियमों के मुताबिक, एक साथ चुनाव संभव नहीं हैं कि इसलिए संविधान में कुछ संशोधनों की जरूरत है. इसी आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, संविधान में कम से कम 5 संशोधन करने होंगे.

कितना होगा चुनाव पर खर्च?
एक बार लोकसभा का चुनाव कराने पर सरकार के करोड़ों रुपये खर्च होते हैं. इसके अलावा देश की तमाम मशीनरी दो-तीन महीनों तक सिर्फ इसी काम में व्यस्त रह जाती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुए थे. इसमें प्रत्याशियों और राजनीतिक पार्टियों की ओर से किए गए खर्च भी शामिल हैं. केंद्र सरकार को चुनाव करवाने के लिए EVM मशीनों, वोटर लिस्ट की तैयारी, पोलिंग पार्टियों की ट्रेनिंग, पोलिंग पार्टियों के आवागमन, उनके खानपान और केंद्रीय बलों की नियुक्ति पर भी पैसे खर्च करने पड़ते हैं.

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राज्यों के विधानसभा चुनावों के समय भी ये पैसे केंद्रीय चुनाव आयोग ही खर्च करता है. निकाय चुनावों में देखा जाता है कि कई पदों के लिए एकसाथ चुनाव हो जाते हैं, इसमें कई तरह के खर्च बचते हैं. ऐसे में देश के सभी राज्यों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ करवाकर ये पैसे बचाने की भी कोशिश हो रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में ओडिशा में एकसाथ चुनाव ही हुए थे.

बीच में गिर गई सरकार तो क्या होगा?
एकसाथ चुनाव करवाए जाने में सबसे बड़ी समस्या यही है. अगर किसी राज्य में त्रिशंकु विधानसभा होती है या बीच में ही कोई सरकार गिर जाती है तो यह क्रम फिर से टूट सकता है. इसके लिए विधि आयोग ने अपने सुझावों में कहा था कि ऐसी स्थिति में दोबारा चुनाव कराने से पहले सरकार बनाने के अतिरिक्त मौके दिए जाएं. इसके अलावा एक सुझाव यह भी है कि सभी राज्यों में एकसाथ के बजाय दो चरणों में चुनाव हों जिससे मौजूदा समय की तुलना में खर्च को आधा किया जा सके.

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