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Ashok Stambh Controversy: अशोक स्तंभ को लेकर क्यों छिड़ा है विवाद, अपमान पर क्या कहता है कानून?

Ashok Stambh Controversy: विपक्षी दलों ने संसद की नई इमारत पर लगने वाले अशोक स्तंभ के डिजाइन में बदलाव करने का आरोप लगाया है.

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Ashok Stambh Controversy: अशोक स्तंभ को लेकर क्यों छिड़ा है विवाद, अपमान पर क्या कहता है कानून?
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डीएनए हिंदीः संसद भवन की नई बिल्डिंग (Parliament New Building) की छत पर लगने वाले राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न अशोक स्तंभ (Ashok Stambh Controversy) के अनावरण को लेकर विवाद लगातार गहराता जा रहा है. विपक्ष ने इसे लेकर कई आरोप लगाए हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) ने इस अशोक स्तंभ का अनावरण सोमवार को किया है. विपक्ष का आरोप है कि इस राष्ट्रीय प्रतीक की डिजाइन में फेरबदल किया गया है. सारनाथ में रखा मूल अशोक स्तंभ संसद की नई इमारत पर लगने वाले विशालकाय अशोक स्तंभ से भिन्न है. हालांकि सरकार और मूर्तिकार दोनों की ओर से विपक्ष के आरोप को सिरे से खारिज किया गया है. 

कैसा है संसद की नई इमारत पर लगने वाला अशोक स्तंभ
संसद की नई बिल्डिंग पर लगने वाला अशोक स्तंभ यानी राष्ट्रीय प्रतीक ब्रॉन्ज से बना है, जिसका वजन 9500 किलो है और उसकी लंबाई 6.5 मीटर है. इसके चारों ओर स्टील का एक सपोर्टिंग स्ट्रक्चर बनाया गया है, जिसका वजन करीब 6500 किलोग्राम है. यह अशोक स्तंभ जमीन से 108 फीट ऊंचा है. 100 से ज्यादा कारीगरों ने इसे करीब 9 महीने में तैयार किया है. केंद्रीय लोक निर्माण विभाग की सलाह पर ब्रॉन्ज मेटल से बने राष्ट्रीय प्रतीक का शुरुआती कॉन्सेप्ट डिजाइन अहमदाबाद के हसमुख सी पटेल ने तैयार किया. इसके बाद टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड और औरंगाबाद के सुनील देवरे ने क्ले और थर्मोकोल मॉडल तैयार किए. बाद में जयपुर और दिल्ली में लक्ष्मण व्यास की अगुआई में विशेषज्ञ कारीगरों ने पूरा इसे मूर्त रूप दिया.  

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क्यों मची है रार? 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस अशोक स्तंभ का विधिवत पूजा-पाठ के साथ उद्घाटन किया. एआईएमआईएस चीफ असदुद्दीन ओवैसी का आरोप है कि पीएम मोदी के साथ लोकसभा अध्यक्ष भी मौजूद थे. चूंकि संसद भवन के नए परिसर का निर्माण हो रहा है ऐसे में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को इसका उद्घाटन करना चाहिए था. वहीं सरकार का तर्क है कि अभी संसद की इमारत का नहीं बल्कि सिर्फ अशोक स्तंभ का अनावरण हो रहा है. इसका निर्माण सीपीडब्लूडी करा रहा है. यह सरकारी कार्यक्रम था. चूंकि प्रधानमंत्री सभी मंत्रियों से ऊपर होते हैं ऐसे में उन्होंने इसका उद्घाटन किया है. वहीं विपक्ष की ओर से यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि राष्ट्रीय प्रतीक में फेरबदल किया गया है. इसमें बने हुए शेर सारनाथ में स्थित स्तंभ से अलग हैं. कई विपक्षी नेताओं ने तो आरोप लगाया है कि संसद की नई इमारत की छत पर स्थापित राष्ट्रीय प्रतीक के शेर आक्रामक मुद्रा में नजर आते हैं जबकि ओरिजिनल स्तंभ के शेर शांत मुद्रा में हैं.  

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राष्ट्रीय प्रतीक को लेकर क्या है भारत में कानून?
इस मामले को लेकर जानकारों की राय काफी अलग है. उनका साफ कहना है कि राष्ट्रीय प्रतीक को लेकर भारत में कानून मौजूद है. राष्ट्रीय प्रतीक का इस्तेमाल कौन कर सकता है इसे लेकर नियम बने हुए हैं. इस प्रतीक का इस्तेमाल संवैधानिक पद बैठे लोग ही कर सकते हैं. यह भारत के राष्ट्रपति की आधिकारिक मुहर होती है. वहीं आईपीएस अधिकारी भी इसे अपने टोपी में लगाते हैं. राष्ट्रीय चिह्नों का दुरुपयोग रोकने के लिए भारतीय राष्ट्रीय चिह्न (दुरुपयोग रोकथाम) कानून 2000 बनाया गया. इसे 2007 में संशोधित किया गया. इस कानून के मुताबिक अगर कोई आम नागरिक अशोक स्तंभ का उपयोग करता है तो उसको दो साल की कैद या 5 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. हालांकि कानून में यह भी स्पष्ट है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है. 

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