डीएनए एक्सप्लेनर
जब से देश में नरेंद्र मोदी युग की शुरुआत हुई है, नीतीश कुमार की विचारधारा डगमगा गई है. कभी उन्हें बीजेपी काटने दौड़ती है, कभी RJD. वे हर बार मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हो जाते हैं.
डीएनए हिंदी: नीतीश कुमार नौवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं. 2020 से शुरू हुए बिहार विधानसभा के इस कार्यकाल में ही वे तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. मुख्यमंत्री वही रहते हैं, पूरे का पूरा विपक्ष बदल जाता है. दो दिन पहले, बीजेपी मुख्य विपक्षी पार्टी थी, अब राष्ट्रीय जनता दल है. यह करिश्मा दिखाने के महारथी नीतीश कुमार ही माने जाते हैं. चाहे बीजेपी को जमकर सीटें मिलें, चाहे लालू यादव परिवार के दबदबे वाले राष्ट्रीय जनता दल को, मुख्यमंत्री तो नीतीश कुमार ही बनेंगे.
नीतीश कुमार ने कुर्सी को साध लिया है. उनकी छवि हमेशा से ऐसी नहीं थी. वे बिहार के सुशासन बाबू थे. जिस बिहार पर जंगलराज का आरोप लगता था, उसकी तस्वीर 2000 के दशक के बाद से बदलने में नतीश कुमार काफी हद तक कामयाब रहे हैं. साल 2013 में नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय राजनीति में उदय के बाद से ही नीतीश कुमार इतने बदले कि अब उन्हें कांग्रेस आया राम गया राम, पलटूराम, गिरगिट, पलटू बाबू और न जाने कितने टैग देती है.
नीतीश कुमार पर टैग लगना नया नहीं है. बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके नीतीश कुमार जब राजनीति में आए तो उनके नाम की आंधी चल पड़ी. वे समाजवादी राजनीति करते हैं, बीजेपी के साथ दशकों के रिश्ते के बाद भी उन पर कभी सांप्रदायिक होने का टैग नहीं लगा. वह लालू यादव के खिलाफ खड़े हुए तो उनकी सरकार को उखाड़ फेंका. वह सोशल इंजीनियरिंग भी करते हैं, पॉलिटिकल इंजीनियरिंग भी.
गिरगिट, पलटूराम, कुर्सी कुमार नीतीश एक, नाम मिले अनेक
जिस लालू के विरोध की राजनीति शुरू कर वह सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे, उन्हीं की पार्टी में वे कई दफे जा चुके हैं. जब बीजेपी से रूठते हैं तो उन्हें लालू परिवार नजर आता है, जब लालू परिवार से बात बिगड़ती है तो वे पुराने सहयोगी बीजेपी का हाथ थामते हैं. कांग्रेस उन्हें पलटूराम कहती है, वहीं आरजेडी के नेता उन्हें गिरगिट बुलाते हैं. इन सब टैग के बीच, उन्हें करीब डेढ़ दशक से मुख्यमंत्री की कुर्सी यथावत बचाकर रखी है. नीतीश के विरोधी उन्हें 'कुर्सी कुमार' भी बुलाते हैं.
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कैसे राजनीति में आए नीतीश कुमार
साल 1951 में पटना के बाहरी इलाके बख्तियारपुर में जन्मे नीतीश कुमार सत्तर के दशक की शुरुआत में कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे. भारत एक बड़े राजनीतिक आंदोलन की आहट महसूस कर रहा था. यह वही वक्त था जब इंदिरा गांधी और आपातकाल के खिलाफ जयप्रकाश नारायण का आंदोलन जोर पकड़ रहा था.वह छात्र राजनीति की उस पीढ़ी से आए थे जिसने लालू प्रसाद और सुशील मोदी दोनों को जन्म दिया था. उन्होंने जेपी से राजनीति सीखी. साल 1985 में उन्होंने लोकदल के टिकट पर लड़ते हुए हरनौत से अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता. पांच साल बाद वह सांसद बनकर दिल्ली चले गए.
90 के दशक की शुरुआत में मंडल कमीशन ने बिहार की राजनीति बदल दी. बिहार में नई पीढ़ी के नेता पैदा हुए, जिनमें नीतीश बड़े नाम थे. जनता दल की बागडोर लालू प्रसाद के हाथ में थी, नीतीश कुमार ने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर 1994 में समता पार्टी बनाई. यही पार्टी अब जनता दल (यूनाइटेड) है. नीतीश कुमार जेडीयू को मजबूत करते गए. साल 2000 में सात दिनों के लिए वे पहली बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन 2005 में बीजेपी के साथ गठबंधन में राज्य के प्रमुख के रूप में अपना पहला पूर्ण कार्यकाल संभाला.
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कैसे सुशासन बाबू बने नीतीश कुमार
नीतीश कुमार पहले कार्यकाल में क्रांतिकारी नेता साबित हुए. उन्होंने लालू यादव के शासन के कथित जंगलराज को खत्म किया. दो दशकों तक वे खुद को मजबूत स्थिति में बनाए रखा. नीतीश कुमार के राज में कानून व्यवस्था बेहतर हुई. उनहें सुशासन बाबू लोग कहने लगे. जहां दूसरे बड़े नेता अपने परिवार के लोगों को राजनीति में खींचकर लाने में व्यस्त थे, नीतीश कुमार का परिवार कभी सामने ही नहीं आया. वे बेहतर प्रशासन पर ध्यान देते थे.
लालू यादव वंशवादी नेता की टैग से बाहर नहीं आए. उनका पूरा परिवार राजनीति में था. वे भ्रष्टाचार के आरोपों में बुरी तरह डूबे थे. नीतीश कुमार अपने साफ-सुथरे नेता के तौर पर उभरते गए. कुर्मी समुदाय से आने वाले नीतीश कुमार ओबीसी राजनीति साधने में भी सफल रहे. उन्हें मुसलमान भी पसंद करते थे और हिंदू भी. उप दलित भी उनके साथ रहे.
नीतीश कुमार ने स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए मुफ्त साइकिल और स्कूल यूनिफॉर्म जैसे सोशल हिट फॉर्मूले गढ़े. जब वे 2010 में सत्ता में लौटे, JDU-बीजेपी गठबंधन को 2010 में भारी जीत मिली लेकिन नरेंद्र मोदी के उदय ने उनकी राजनीति बदलकर रख दी.
नरेंद्र मोदी का उदय और पलटने लगे 'कुर्सी कुमार'
साल था 2013. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए ने तय किया कि चुनाव लड़ेंगे. नीतीश कुमार, नरेंद्र मोदी की उग्र हिंदुत्व की राजनीति से खुद को दूर रखना चाहते थे. उन्हें मोदी के साथ गठबंधन पर ऐतराज था. नीतीश नहीं चाहते थे बड़े मंचों पर मोदी उनके करीब भी आएं. वे अपने मुस्लिम वोट बैंक को हर्ट नहीं करना चाहते थे. बीजेपी में आडवाणी और अटल युग समाप्त हो गया था. नरेंद्र मोदी युग में नीतीश डगमगा गए.
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नीतीश कुमार ने यह कहा कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सांप्रदायिकता और संप्रदायवाद के पक्षधर हैं. ऐसा लगा कि वे बीजेपी के सबसे बड़े विरोधी बनकर राष्ट्रीय पलट पर छाने वाले हैं लेकिन नीतीश कुमार बिहार से आगे ही नहीं निकल पाए. 2014 का चुनाव हुआ तो उनकी पार्टी ने 40 में से केवल 2 सीटें जीतीं और उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
और फिर पलटूराम हुए नीतीश कुमार
नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा में इतने लीन हुए कि उन्होंने अपना नुकसान करा लिया. उन्होंने इस्तीफा दिया था तब जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री बने, अब उन्होंने उनसे इस्तीफा मांगकर खुद कमान संभाल लिया. नीतीश कुमार आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया. साल 2015 के विधानसभा चुनावों में यह गठबंधन जीत भी गया. सरकार केवल दो साल तक चली, नीतीश कुमार को बेमेल गठबंधन रास नहीं आया. राष्ट्रीय जनता दल भ्रष्टाचार की छवि से कभी बाहर नहीं आ सका, यही नीतीश के लिए अलग होने का आधार बना.
नीतीश बाबू एनडीए में लौट आए और 2020 में उन्होंने विधानसभा चुनाव मिलकर जीत लिया. नीतीश कुमार को ये साथ भी नहीं पसंद था. उनकी पार्टी जेडीयू एक तिहाई से भी कम हो गई. जोड़-तोड़ करके वे मुख्यमंत्री तो बन गए क्योंकि किसी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं था. कोई पार्टी अपने दम पर सरकार नहीं बना सकती थी, तो नीतीश कुमार मजबूरी बन गए.
अगस्त 2022 में, नीतीश कुमार ने बीजेपी पर जेडीयू को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया और अपनी सरकार गिरा दी. नीतीश कुमार फिर पलटे और आरजेडी, कांग्रेस और वामदलों के सहयोग से सरकार में आ गए. उन्होंने इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जमकर हमला बोला. उन्होंने नरेंद्र मोदी के खिलाफ इंडिया गठबंधन की नींव रखी.
इंडिया गठबंधदन के घटकों दलों को एकजुट किया. दिल्ली से लेकर पश्चिम बंगाल और बेंगलुरु तक की यात्रा की. सीट शेयरिंग पर चर्चा की. ऐसा लगा कि नीतीश कुमार ही प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार होंगे. 19 दिसंबर, 2023 को हुई बैठक में, नीतीश कुमार नाराज हो गए क्योंकि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे को संयोजक बनाने की वकालत की. यह भूमिका नीतीश कुमार अपने लिए चाहते थे.
और फिर पलट गए नीतीश कुमार
जिस नरेंद्र मोदी को वे 17 महीनों से पानी पी-पीकर कोस रहे थे, उन्हीं की पार्टी की सहयोग से नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बने हैं. इंडिया गठबंधन बनने से पहले टूटकर बिखर चुका है. उसके अगुवा, एनडीए में अपनी द्वितीयक भूमिका के लिए तैयार हो गए हैं. नीतीश कुमार अपने दो दशक के राजनीतिक करियर में नौवीं बार मुख्यमंत्री बने हैं.
बहुमत बिना मुख्यमंत्री, यूं ही नहीं मिला कुर्सी कुमार का टैग
नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड कभी बहुमत हासिल करने वाली पार्टी नहीं बन सकी. उन्होंने बिहार की राजनीति को ऐसे तोड़ा है कि कोई भी दल अपने दम पर बहुमत हासिल करने योग्य ही नहीं है. अगर नीतीश किसी के साथ न जाएं तो हर चुनाव में हंग असेंबली हो जाए. 6 बार उन्होंने बीजेपी के साथ और तीन बार राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई है. हर परिस्थिति में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रहते हैं, विपक्ष बदल जाता है. यही वजह है कि उन्हें विपक्ष कुर्सी कुमार का भी टैग देता है. जो नीतीश विपक्ष के लिए भी कभी सुशासन बाबू रहे, अब पलटूराम, आया राम गया राम और कुर्सी कुमार हो गए है.
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