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कूनो में एक और चीते 'तेजस' ने तोड़ा दम, 7 महीने में तीसरी मौत, क्यों खतरे में नजर आ रहा प्रोजेक्ट चीता?

मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में अफ्रीका से लाए गए चीते अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. देश का प्रोजेक्ट चीता खतरे में नजर आ रहा है.

कूनो में एक और चीते 'तेजस' ने तोड़ा दम, 7 महीने में तीसरी मौत, क्यों खतरे में नजर आ रहा प्रोजेक्�ट चीता?

भारत में चीते तोड़ रहे हैं दम.

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डीएनए हिंदी: मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में मंगलवार को एक और अफ्रीकी चीते ने दम तोड़ दिया. चीते का नाम तेजस रखा गया था. तेजस दक्षिण अफ्रीकी चीता था, जिसे कूनो नेशनल पार्क में रखा गया था. प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव जेएस चौहान ने कहा है कि तेजस की मौत संभवत: आपसी लड़ाई की वजह से हुई है.

तेजस की उम्र 4 साल थी. वन विभाग ने आशंका जाहिर की है कि उसकी मौत आपसी झड़प में हो गई है. देश में प्रोजेक्ट चीता का भविष्य अधर में लटकता नजर आ रहा है क्योंकि 7 महीने के भीतर 3 चीतों ने दम तोड़ दिया है. जब तेजस की मौत हुई, तब वह एक बाड़े में था.  

कूनो नेशनल पार्क से मंगलवार को ही दक्षिण अफ्रीका से लाए गए दो और चीतों को छोड़ा गया था. अब इनकी कुल संख्या 11 पर सिमट गई है. देश में चीतों की आबादी को फिर से बसाने के एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के तहत आठ चीतों को नामीबिया से केएनपी लाया गया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल 17 सितंबर को इन्हे विशेष बाड़ों में छोड़ा था. इनमें पांच मादा और तीन नर चीते शामिल थे.

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18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते, सात नर और पांच मादा कूनो पार्क लाए गए थे. श्योपुर संभागीय वन अधिकारी पी के वर्मा के मुताबिक दो नर चीतों-प्रभास और पावक को केएनपी के जंगल में छोड़ दिया गया है. इन दोनों को दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था.

क्या प्रोजेक्ट चीता पर मंडरा रहा है खतरा?

अब जंगल में चीतों की कुल संख्या 11 पर सिमट गई है. अब तक केएनपी में चीता ज्वाला के तीन शावकों सहित सात चीतों की मौत हो चुकी है. चीता ज्वाला ने इस साल मार्च में केएनपी में चार शावकों को जन्म दिया था. चीते को 1952 में देश से विलुप्त घोषित कर दिया गया था. 

देश में अब प्रोजेक्ट चीता पर खतरा मंडरा रहा है. देश में चीतों की जन्मदर के मुकाबले मृत्युदर ज्यादा है. भारतीय जंगलों में चीते दम तोड़ रहे हैं. लगातार हो रही मौतों पर एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि भारत में उन्हें जीवन संघर्ष करने में मुश्किलें सामने आ रही हैं.

क्यों भारत में जिंदा नहीं बच पा रहे हैं चीता?

भारत में चीतों की जान पर खतरा मंडरा रहा है. ज्यादातर चीतों की मौत हार्ट अटैक और किडनी फेल्योर की वजह से हुई है. भारत में आकर चीतों का स्वास्थ्य ज्यादा खराब हो जा रहा है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि हिंसक जानवरों के लिए शिकार का इलाका कम पड़ रहा है. चीते अपना इलाका नहीं बना पा रहे हैं.

तेंदुआ, बाघ और दूसरे जानवरों के साथ उनकी स्पर्धा भी है. भारत और दक्षिण अफ्रीका की पारिस्थितिकी में अंतर है. भारत में 70 साल पहले ही चीते विलुप्त हो गए थे. चीतों के मरने की वजह कुछ उनका खराब स्वास्थ्य है, जिसे ट्रेस करने में मुश्किलें आ रही हैं. चीते आपसी संघर्ष में भी मर रहे हैं. 

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