डीएनए स्पेशल
पॉलिंग को याद किए जाने के एक नहीं, अनेक कारण हैं. वे स्पष्टतावादी थे. वे प्रखर वक्ता थे और विवादास्पद बयानों से उन्हें परहेज न था.
बीसवीं सदी में विज्ञान के पांक्तेय व्यक्तित्वों की गणना करें तो सबसे ऊपर की सुनहरी पायदान पर दो वैज्ञानिक प्रतिष्ठित नजर आते हैं. ए हैं मैडम क्यूरी और लाइनस कॉर्ल पॉलिंग. यूं तो एकाधिक बार नोबेल पुरस्कार विजेताओं की कतार में जॉन बार्डीन और फ्रेडरिख सैंगर भी हैं, अलबत्ता अलग-अलग संकायों में दो बार नोबेल विजेता वैज्ञानिक दो ही हैं, क्यूरी और पॉलिंग.
क्यूरी को भौतिकी और रसायन तथा पॉलिंग को रसायन और शांति के लिए नोबेल से नवाजा गया. फलत: वे महानों में महानतम हैं. पॉलिंग के बारे में हम लोग कम जानते हैं, लेकिन उनमें अनेक खूबियां थीं. वे दिलचस्प शख्सियत थे. कहें तो संश्लिष्ट व्यक्तित्व. वे युयुत्सु नायक थे.
आधुनिक रसायन शास्त्र के महान शिल्पी. सार्वकालिक श्रेष्ठ विज्ञान-लेखक आइजक आसीमोव ने उन्हें प्रथम श्रेणी का विद्वान और बीसवीं शताब्दी का महान रसायनज्ञ यूं ही नहीं कहा. उनका जीवन संकटों से बिंधा हुआ था.
अनगिन बाधाओं के बावजूद उन्होंने लक्ष्य को कभी दृष्टि से ओझल न होने दिया. पॉलिंग ने लंबी उम्र पाइ, भरपूर जीवन जिया और खूब काम किया. उन्हें पहली बार सन् 1954 में रसायन शास्त्र में खोज और तदंतर सन् 1962 में शांति के लिए परमाणु युद्ध के विरुद्ध उत्साहपूर्ण अभियान के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
वे धुन के पक्के कर्मठ कार्यकर्ता, सिद्धहस्त लेखक और प्रचारक थे. उन्हें आधुनिक रसायन शास्त्र का महान शिल्पी माना जाता है. वे आणुविक जीव विज्ञान के संस्थापक और क्वांटम यांत्रिकी के मार्गदर्शक थे. उन्हें रसायन और भौतिकी के सायुज्य या समन्वय के लिए भी याद किया जाता है. आणुविक स्थापत्य और रासायनिक बंध की उनकी समझ अद्वितीय थी.
उन्होंने एक्स रे फ्रिस्टलोग्राफी से मणिभों की संरचना और इलेक्ट्रॉन विवर्तन से गैस-अणुओं की संरचना का निर्धारण किया. यह एक बड़ा और कालजयी काम था. उन्होंने सिकलसेल एनीमिया के आणुविक कारणों का पता लगाया. विकारों के बारे में उनकी समझ बहुत साफ थी.
उन्होंने सह-संयोजक बंधता सिद्धांत को विस्तार दिया और विद्युत-ऋणात्मक पैमाने का विकास किया. उन्होंने अपनी ही सीमाओं का अतिक्रमण कर नए मानक रचे. वे अपने सैद्धांतिक-उपक्रम से धात्विक और अंतर धात्विक यौगिकों को सहसंयोजक बंधता सिद्धांत की परिधी में ले आए. मगर यह उनकी एक बड़ी देन थी. उन्होंने मॉडेल निर्माण की अतुल्य तकनीकों का विकास किया.
पेप्टॉइड-बंध में परमाणुओं की ध्रुवीयता पर आधारित प्रोटीन के लिए उन्होंने कुण्डलाकार या सर्पित्व संरचनाओं को प्रस्तावित किया. सन् 1939 में सर्वप्रथम प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘द नेचर आॅफ द केमिकल बांड एण्ड द स्ट्रक्चर ऑफ मॉलीक्यूल्स एण्ड क्रिस्टल्स’ विज्ञान के सुदीर्घ इतिहास की श्रेष्ठतम कृतियों में गिनी जाती है. इसका विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है. वे अनेक मोर्चों पर सक्रिय रहे.
सन् 1973 में उन्होंने पालो अल्टो, कैलीफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका में लाइनस पॉलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एण्ड मेडीसिन की स्थापना की. पॉलिंग को विश्व नि:श्स्त्रीकरण आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए याद किया जाता है.
सन् 1958 में प्रकाशित उनकी कृति ‘नो मोर वार’ वैश्विक-शांति की पुरजोर अपील थी. वस्तुत: पॉलिंग ने दो विश्वयुद्धों की विभीषिका अपनी आंखों से देखी थी. इन अनुभवों की उपज भी ‘नो मोर वार’, जो खूब बीकी और सराही गयी. पॉलिंग ने दृढ़तापूर्वक परमाणु-परीक्षणों का विरोध किया. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए 11000 वैज्ञानिकों का हस्ताक्षर और समर्थन जुटाया था.
पॉलिंग को याद किए जाने के एक नहीं, अनेक कारण हैं. वे स्पष्टतावादी थे. वे प्रखर वक्ता थे और विवादास्पद बयानों से चूकते न थे. समझौता उनकी प्रकृति में न था. विटामिन सी से उन्हें बड़ा प्रेम था. उनकी एख चर्चित कृति है : विटामिन सी ...... द कोल्ड’. उनकी मान्यता थी कि विटामिन सी में सर्दी-जुकाम से ही नहीं, वरन कैंसर तक से लड़ने की क्षमता है.
जन्मना अमेरिकी पॉलिंग कहते थे कि अमेरिकियों को रोजाना 3000 मिलीग्राम विटामिन सी लेना चाहिए. उनकी कथनी और करनी में भेद न था. वे प्रतिदिन 18,000 मिली ग्राम विटामिन सी लेते थे.
ऐसी दिलचस्प शख्सियत का बचपन और कैशौर्य बड़ी कठिनाइयों में बीता. उनका जन्म 28 फरवरी, सन् 1901 को संयुक्त राज्य अमेरिका में पोर्टलैण्ड ओरेगान में हुआ.
पिता हरमन हेनरी विलियम पॉलिंग फार्मासिस्ट थे और मां लूसी इसाबेल गृहिणी. लाइनस बचपन से ही पढ़ाकू थे. नौ की उम्र तक उन्होंने घर में उपलब्ध सारी किताबें चट कर ली थीं.
पिता ने पुत्र के लिए अधिक से अधिक किताबें जुटाने के मकसद से स्थानीय अखबार ‘आरेगोनियम’ को लिखा-‘‘मैं एक पिता हूं. और मेरा 9 वर्ष का एक पुत्र है, जो पांचवीं ग्रेड में है. वह एक बड़ा पाठक है और प्राचीन इतिहास में गहन रुचि रखता है. उसकी अपरिपक्व रुझान में सहायता करने और प्रोत्साहित करने की अपनी इच्छा के वशीभूत मैं ‘आरेगोनियम’ के जागरूक पाठकों से पूछता हूं कि वे मुझे उचित या कम से कम अति-विस्तृत पुस्तकों को उसके लिए खरीदने का परामर्श दें.’’
इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि पिता की यह इच्छा फलीभूत नहीं हुई. अचानक उनका निधन हो गया और लाइनस को पढ़ाई और घर खर्च के लिए पापड़ बेलने पड़े. मां और बहनों की सहायता के लिए उसे तरह-तरह की नौकरियां करनी पड़ीं. कारनेविस में ओरेगान एग्रीकल्चरल कॉलेज से जुड़ने से पूर्व लाइनस ने एक सामान्य मशीन-वर्कशॉप पर 100 डॉलर प्रतिमाह के मेहनताने पर काम किया. मां चाहती थीं कि बेटा घर बैठे और काम में हाथ बंटाए.
लाइनस सस्ते छात्रावास में कमरा साझा करते थे और पैसा मां को भेज देते थे. 18 वर्ष की वय में उन्होंने सुबह आठ से सांढ चार बजे तक घोड़ागाड़ी से घर-घर दूध बांटने की भी नौकरी की. बहरहाल, उनकी विज्ञान में रूचि ग्यारह की वय में ही विकसित हो गयी थी. उन्हें पहले कीड़े-मकोड़े और फिर खनिज एकत्र करने का चस्का लग गया.
सन् 1914 में सन्नीसाइड ग्रामर स्कूल के बाद वे पेटिलैंड के वाशिंगटन हाईस्कूल में प्रविष्ट हुए. मित्र लॉयड जेफ्रेस से प्रभावित होकर उन्होंने भी अपने तलघर में एक प्रयोगशाला बनायी और उधारी पर रसायन जुटाया. सन् 1919 में उन्होंने स्टेट ऑफ ओरेगान में 125 डालर प्रतिमाह की तनख्वाह पर इंस्पेक्टर की नौकरी कर ली. जल्द ही उन्हें ओरेगान एग्रीकल्चरल कॉलेज से 100 डालर मासिक वेतन पर लैब-निरीक्षण और व्याख्यान का प्रस्ताव मिला. इस पसंदीदा दायित्व ने उनके जीवन की दिशा तय कर दी. वहीं अध्यापन के साथ-साथ उन्होंने न्यूटन लेविस (1875-1946) और इरविन लैंगमूर (1881-1957) के कार्यों का अध्ययन भी किया.
कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी पैसेडोना में सन् 1922 में आर्थर एमास नोएस द्वारा स्नातक के लिए चयन के बाद नोएस के निर्देशन में लाइनस की प्रतिभा खूब निखरी. नोएस की रसायन पर एकाग्र कृति ‘केमिकल प्रिंसिपल’ के सभी 500 प्रश्न उन्होंने बखूबी हल कर दिए.
यहीं उन्होंने अपनी खामियां भी जानीं. सन् 1926 में पॉलिंग गूगेनहेइम फेलोशिप के तहत दो वर्ष के लिए यूरोप गए. वहां म्यूनिख में उन्होंने अर्नाल्ड समरफील्ड (1868-1951), कोपेनहेगन में नील्स बोर (1885-1962) और सैमुअल अब्राहम गाडस्मिट (1902-1978) के साथ काम किया. ज्यूरिख में उन्होंने इर्विन स्क्रोडिंजर और पीटर विलियम डेब्ए के व्याख्यानों को सुना. उन्होंने भौतिकी और रसायन के अंतसंबंधों के साथ विशेष गणित की महत्ता को भी समझा. सन् 1935 में उनकी कृति ‘इंट्रोडक्शन टु क्वांटम मेकेनिस्म’ ने धूम मचा दी. उन्होंने अम्ल, क्षार, ऊष्मा या यूरिया द्वारा प्रोटीनों के विकृतिकरण का भी अध्ययन किया. उन्होंने करीब 1200 पुस्तकें और शोधपत्र लिखे.
पॉलिंग को मिले सम्मानों और तमगों की सूची लंबी है. दो बार नोबेल के अलावा उन्हें प्रीस्टले मेडल, डेवी मेडल, विलियम गिब्स अवार्ड, इरविन लांगम्यूर अवार्ड, लुई पाश्चर मेडल, लोमोनोसोव स्वर्ण पदक, गिल्बर्ट न्यूटन लेविस मेडल आदि से नवाजा गया. सन् 1969 में उन्हें लेनिन पीस अवार्ड और 1962 में गांधी शांति पुरस्कार दिया गया. उनकी पत्नी अवा हेलेन की मृत्यु सन् 1981 में हुई. मानवता की अथक सेवा के उपरांत लाइनस कॉर्ल पॉलिंग ने सन् 1994 में सदा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.
(डॉ. सुधीर सक्सेना लेखक, पत्रकार और कवि हैं. 'माया' और 'दुनिया इन दिनों' के संपादक रह चुके हैं.)
(यहां दिए गए विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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