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Naseeruddin Shah ने आखिर क्यों छोड़ा बॉलीवुड फिल्मों को देखना, एक्टर ने बताई ये अहम वजह

नसीरुद्दीन शाह(Naseeruddin Shah) ने हिंदी सिनेमा को लेकर कहा है कि वही पुरानी घिसी पिटी कहानी के साथ निर्माता फिल्में बनाते हैं. उन्होंने कहा कि निर्माताओं को गंभीर फिल्में बनाने की जिम्मेदारी लेनी होगी.

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Naseeruddin Shah

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नसीरुद्दीन शाह(Naseeruddin Shah) बॉलीवुड के अनुभवी एक्टर्स में से एक हैं. वह अपने अभिनय के लिए जाने जाते हैं. हालांकि वह अक्सर अपने बेबाक अंदाज और बयानों के कारण भी खबरों में छाए रहते हैं. वहीं, हाल ही में एक्टर ने हिंदी सिनेमा को लेकर अपनी निराशा जाहिर की है और उन्होंने इसके साथ उन्होंने इस दौरान ये भी बताया है कि क्यों उन्होंने बॉलीवुड फिल्मों(Bollywood Films को देखना छोड़ दिया है. 

दरअसल, शनिवार को नई दिल्ली में मीर की दिल्ली शाहजहांनाबाद द इवॉल्विंग सिटी के दौरान नसीरुद्दीन शाह ने अपने विचार व्यक्त किए और उन्होंने कहा कि हिंदी फिल्म निर्माता पिछले 100 सालों से एक ही तरह की फिल्में बना रहे हैं. 73 साल एक्टर ने कहा कि यह वाकई में मुझे निराश करता है कि हम यह कहने में गर्व महसूस करते हैं कि हिंदी सिनेमा 100 साल पुराना है, लेकिन हम वही फिल्में बना रहे हैं. मैंने हिंदी फिल्में देखना बंद कर दिया है, मुझे वे बिल्कुल पसंद नहीं है. 

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हिंदी फिल्मों में नहीं रहा दम

एक्टर ने आगे कहा कि दुनिया भर में इंडियन सिनेमा फिल्में देखने जाते हैं, क्योंकि यह उनका अपने घर से जुड़ाव है. लेकिन जल्द ही हर कोई बोर हो जाएगा हिंदुस्तानी खाना हर जगह पसंद किया जाता है, क्योंकि इसमें दम है. हिंदी फिल्मों में क्या दम है? हां उन्हें हर जगह देखा जा रहा है. वे कहते हैं कितना विदेशी, कितना भारतीय, कितना रंगीन. जल्द ही वे इससे बोर हो जाएंगे, क्योंकि वहां इसमें कोई दम नहीं है. 

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निर्माताओं को बनानी होंगी गंभीर फिल्में

नसीरुद्दीन शाह का मानना है कि समाज की वास्तविकता दिखाना गंभीर फिल्म निर्माताओं की जिम्मेदारी है. हिंदी सिनेमा के लिए उम्मीद तभी है जब हम उन्हें पैसा कमाने के लिए एक सोर्स के तौर पर देखना बंद कर दें. लेकिन मुझे लगता है कि अब बहुत देर हो चुकी है. अब कोई हल नहीं है, क्योंकि फिल्मों को हजारों लोग देखते हैं, वे बनती रहेंगी और लोग बनते रहेंगे उन्हें देखते हुए, भगवान जाने कब तक. इसलिए जो लोग गंभीर फिल्में बनाना चाहते हैं, उनकी जिम्मेदारी है कि वे आज की रियलिटी दिखाएं और इस तरह से कि उन्हें कोई फतवा न मिले या ईडी उनके दरवाजे पर दस्तक न दे. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि ईरानी फिल्म निर्माताओं ने अधिकारियों के दमन के बावजूद फिल्में बनाई और भारतीय कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण आपातकाल के दिनों में कार्टून बनाते रहे. 

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