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Wheat Crisis: देश में है पर्याप्त गेहूं, नहीं करेंगे आयात, आखिर मोदी सरकार को क्यों बताना पड़ रहा है ये सबको

यूक्रेन संकट के बाद भारत ने गेहूं पूरी दुनिया में एक्सपोर्ट करने का दावा किया था, लेकिन उसके बाद वक्त से पहले आई गर्मी के कारण गेहूं की फसल को पहुंचे नुकसान ने इस योजना को फेल कर दिया. एक मीडिया रिपोर्ट में अब कहा गया कि सरकार को देश की जरूरत के लिए गेहूं आयात करना पड़ेगा.

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डीएनए हिंदी: चार महीने पहले तक दुनिया के 'गेहूं एक्सपोर्टर' का तमगा यू्क्रेन से छीनने के लिए बेकरार दिख रहे भारत में क्या सचमुच अनाज संकट पैदा हो गया है? यह सवाल एक मीडिया रिपोर्ट में दिखाए गए संकट और ठीक उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की तरफ से दी गई सफाई के कारण उठ खड़ा हुआ है. 

आखिर ऐसे सवाल उठे ही क्यों हैं, जिनके चलते सरकार को सफाई देने के लिए मजबूर होना पड़ा है? इसका जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं. 

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मोदी सरकार ने क्या कहा है अब

केंद्रीय फूड एंड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन विभाग ने सोमवार को एक मीडिया रिपोर्ट को रिट्वीट करते हुए देश में खाद्यान्न की कोई कमी नहीं होने का दावा किया. विभाग ने कहा, फिलहाल भारत में गेहूं का आयात करने की कोई योजना नहीं है. हमारी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए देश पास पर्याप्त अनाज भंडार है और सार्वजनिक वितरण (सस्ता सरकारी राशन) के लिए भी FCI (भारतीय खाद्य निगम) के पास पर्याप्त स्टॉक मौजूद है.

क्यों देनी पड़ी है ये सफाई

दरअसल, Bloomberg की एक हालिया रिपोर्ट में भारत के पास गेहूं की कमी होने और उसे आयात करने की मजबूरी सामने आने का दावा किया गया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद दावा किया था कि उनका देश दुनिया की खाने की जरूरत पूरा करने के लिए तैयार है. रिपोर्ट में आगे कहा गया कि चार महीने से भी कम समय बाद अब भारत को खुद अपने लिए अनाज आयात करने की तैयारी करनी पड़ रही है. 

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क्या हुआ इन चार महीने के दौरान ऐसा

भारत में गेहूं की फसल नवंबर-दिसंबर महीने में बोने के बाद होली के आसपास अप्रैल माह में गर्मी बढ़ने के साथ ही पककर तैयार होती है. गेहूं का सबसे ज्यादा उत्पादन मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में होता है. इस बार मौसम की मार के चलते फरवरी में ही मई-जून जैसी गर्मी महसूस की जाने लगी थी. इससे गेहूं की फसल बड़े पैमाने पर प्रभावित हुई और पौध के जल्दी पक जाने से कई जगह फसल में दाना ही नहीं बन पाया. इस कारण अनुमान के मुकाबले बेहद कम गेहूं उत्पादन हुआ है. इसी के चलते केंद्र सरकार ने मई महीने में गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिए थे.

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कोरोना काल में 80 करोड़ गरीबों को किया गया मुफ्त वितरण

कोरोना काल के कारण पिछले दो साल से केंद्र सरकार देश के करीब 80 करोड़ गरीब व निर्बल आय वर्ग के लोगों को मुफ्त अनाज का वितरण कर रही है. इसके चलते सरकार के पास अनाज के बफर स्टॉक में कमी आई है.

दूसरी तरफ, यूक्रेन युद्ध के कारण इंटरनेशनल मार्केट में गेहूं महंगा होने का असर भारतीय घरेलू मार्केट में भी दिखाई दिया और बाजार में MSP से ज्यादा दाम रहे. इसके चलते इस बार सरकारी खरीद केंद्रों पर ज्यादा मात्रा में गेहूं बेचने के लिए किसान लाइन लगाकर खड़े दिखाई नहीं दिए. ऐसे में सरकार की खरीद भी कम रही है. इसका असर भी बफर स्टॉक पर पड़ता है.

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कैसा रहा है इस बार उत्पादन, कितना है सरकार पर स्टॉक

कृषि मंत्रालय ने 17 अगस्त को इस बार अनाज उत्पादन के आंकड़े जारी किए थे. मंत्रालय के मुताबिक, 2021-22 में 31.57 करोड़ टन खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन हुआ है जो 2020-21 के मुकाबले 49.8 लाख टन अधिक है. हालांकि गेहूं का उत्पादन गिरा है. गेहूं उत्पादन का अनुमान 10.68 करोड़ कुंतल का लगाया गया है, जो 2020-21 के मुकाबले करीब 22 लाख कुंतल कम है.

कृषि वेबसाइट Ruralvoice के मुताबिक, केंद्रीय पूल में 1 अगस्त को गेहूं का कुल स्टॉक चार साल के सबसे कम स्तर 266.45 लाख टन पर है, जबकि पिछले साल इसी तारीख को केंद्रीय पूल में 564.80 लाख टन गेहूं मौजूद था. इस हिसाब से देखा जाए तो देश के पास खाद्यान्न में कमी आई है.

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