Twitter
Advertisement
  • LATEST
  • WEBSTORY
  • TRENDING
  • PHOTOS
  • ENTERTAINMENT

Priyadarshini Mattu murder case: अक्टूबर का यह महीना इस केस में क्यों रहा है खास, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

DNA Crime Story: अक्टूबर महीने की 3 तारीखें प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड में खास रही हैं. पहली तारीख वह है जब हाई कोर्ट ने लोअर कोर्ट से बरी हुए संतोष सिंह को दोषी करार दिया. दूसरी तारीख वह है जब उसे फांसी की सजा सुनाई गई और तीसरी तारीख सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जुड़ी है. पढ़ें विस्तृत रिपोर्ट.

Priyadarshini Mattu murder case: अक्टूबर का यह महीना इस केस में क्यों रहा है खास, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

प्रियदर्शिनी मट्टू की फाइल फोटो.

FacebookTwitterWhatsappLinkedin

TRENDING NOW

डीएनए हिंदी : प्रियदर्शिनी मट्टू याद है आपको? हां वही, जिसकी हत्या संतोष सिंह ने की थी. इस नृशंस हत्या से दिल्ली कांप उठी थी. इस केस में अक्टूबर महीने की 3 तारीखें बहुत महत्त्वपूर्ण रही हैं. एक तो है 17 अक्टूबर 2006, दूसरी तारीख है 30 अक्टूबर 2006 और तीसरी 10 अक्टूबर 2010. 
17 अक्टूबर 2006 को दिल्ली हाई कोर्ट ने संतोष सिंह को प्रियदर्शिनी मट्टू के साथ बलात्कार और उसकी हत्या का दोषी ठहराया था और 30 अक्टूबर को उसे मौत की सजा सुनाई थी. इस फैसले के 4 साल बाद यानी 6 अक्तूबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने संतोष सिंह की मिली फांसी को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था.

ऐसे हुई थी मट्टू की हत्या
23 जनवरी 1996 को प्रियदर्शिनी मट्टू की हत्या दिल्ली के वसंत कुंज में उसके चाचा के घर पर हुई थी. एकतरफा प्यार में डूबे संतोष सिंह ने घर में घुसकर प्रियदर्शिनी मट्टू से बलात्कार किया और फिर बुरी तरह उसकी पिटाई की. संतोष सिंह ने अपने हेलमेट से प्रियदर्शिनी मट्टू के चेहरे पर इतने प्रहार किए कि उसका चेहरा पहचानना मुश्किल था. फिर हीटर के तार से गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी और घर के पिछले दरवाजे से भाग निकला. 

कौन थी प्रियदर्शिनी मट्टू
प्रियदर्शिनी मट्टू कश्मीरी पंडित थी. उनका बचपन श्रीनगर में बीता था. वहीं उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई की थी. बाद में बढ़ते आतंकवाद की वजह से वे कश्मीर छोड़ अपने परिवार के साथ जम्मू आ गई थीं. जम्मू में ही उन्होंने बीकॉम किया. फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गईं. दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी की पढ़ाई करने के दौरान वे वसंत कुंज में अपने चाचा के घर रहती थीं.

कौन है संतोष सिंह
तब संतोष सिंह भी दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी कर रहा था. वह मट्टू का सीनियर था. पढ़ाई के दौरान ही वह 23 बरस की मट्टू पर लट्टू हो गया था. संतोष सिंह का परिवार प्रभावशाली था. उसेक पिता जेपी सिंह उस समय पांडिचेरी में पुलिस महानिरीक्षक थे. मुकदमे के दौरान, वे दिल्ली में संयुक्त पुलिस आयुक्त के पद पर थे. संतोष सिंह ने कई बार मट्टू के सामने प्रेम प्रस्ताव रखा, जिसे मट्टू ने हर बार ठुकरा दिया था. 

तंग करने की शिकायत पहुंची थाने
संतोष सिंह की हरकतों से परेशान प्रियदर्शिनी मट्टू ने 1996 में पुलिस में शिकायत की थी. उसने पुलिस को बताया था कि संतोष सिंह उसे परेशान कर रहा है और उसका पीछा करता है. पुलिस ने इस बारे में संतोष सिंह को सचेत किया था पर वह बाज नहीं आया.

थाने ने मुहैया कराई सुरक्षा
शिकायत के बाद दिल्ली पुलिस के हेड कॉस्टेबल राजिंदर सिंह को प्रियदर्शिनी मट्टू की सुरक्षा में लगाया गया. वारदात वाली सुबह किसी वजह से राजिंदर सिंह वक्त पर मट्टू के घर नहीं पहुंच पाए. तब मट्टू को उसके पिता ने कॉलेज पहुंचाया. बाद में राजिंदर सिंह कॉलेज पहुंचे तो देखा कि वहां संतोष सिंह भी आया हुआ था. इस रोज मट्टू हेड कॉस्टेबल राजिंदर सिंह के साथ घर लौटी और दोबारा उन्हें 5:30 बजे तक आने को कहा.

इसे भी पढ़ें : आजाद भारत का जलियांवाला बाग: 1 जनवरी 1948 को चली गोली ने 54 बरस बाद दिखाया असर

पड़ोसी कुप्पुस्वामी का रोल
वह 23 जनवरी 1996 की शाम थी. प्रियदर्शिनी मट्टू घर पर अकेली थी. इसी समय यहां पहुंचा था संतोष सिंह. उसे मट्टू का दरवाजा खटखटाकर घुसते हुए पड़ोसी कुप्पुस्वामी ने देखा था. वारदात के बाद उन्होंने सबको बताया था कि संतोष सिंह घर में घुसा था. लेकिन पुलिस ने उनसे कोई बयान नहीं लिया.

ऐसे हुई वारदात की जानकारी
शाम 5:30 बजे जब हेड कांस्टेबल राजिंदर सिंह प्रियदर्शिनी के घर पहुंचे तो उस वक्त उनके साथ काॉन्स्टेबल देव कुमार भी थे. उन्होंने कई बार कॉलबेल बजाई पर किसी ने दरवाजा नहीं खोला. तब वे पीछे के दरवाजे से अंदर जाने लगे तो देखा कि वह पहले से ही खुला थ. अंदर गए तो उनकी आंखें फटी रह गईं. प्रियदर्शिनी का शव कमरे में बेड के नीचे पड़ा था. मुंह से खून निकला हुआ था. कमरे में चारों तरफ खून ही खून पसरा था. 

पुलिस टीम मौके पर पहुंची
यह सब देख राजिंदर के होश उड़ गए. उन्होंने तुरंत पुलिस स्टेशन फोन किया, जिसके बाद मौके पर पूरी टीम पहुंच गई. प्रियदर्शिनी के शव के पास टूटे हुए कांच के टुकड़े, कुछ बाल पड़े थे. जांच टीम ने सबकुछ इकट्ठा किया. जिस हीटर तार से प्रियदर्शिनी का गला घोंटा गया था, वह भी वहीं पड़ा था. पुलिस ने उसे भी कब्जे में ले लिया.

लोअर कोर्ट का फैसला
वारदात के 3 साल बाद 1999 में सत्र न्यायालय के जज जीपी थरेजा ने प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड के मुलजिम संतोष सिंह को बरी कर दिया. उन्होंने अपने फैसले में कहा था कि वह जानते हैं कि हत्या संतोष सिंह ने की है, लेकिन सबूतों के अभाव में उन्हें छोड़ा जा रहा है.

जांच एजेंसियों का रोल
संतोष सिंह को प्रियदर्शिनी मट्टू के घर के अंदर जाते हुए पड़ोसी कुप्पुस्वामी ने देखा था. लेकिन उनकी गवाही नहीं हुई. संतोष सिंह के हेलमेट का शीशा प्रियदर्शिनी के शव के पास मिला था, उसे भी सबूत के तौर पर नजरअंदाज किया गया. प्रियदर्शिनी मट्टू के शरीर पर 19 वार किए गए थे और संतोष के हेलमेट पर प्रियदर्शिनी मट्टू का खून था. केस की कड़ियां जोड़ने में इन सभी सबूतों को नजरअंदाज किया गया.

दिल्ली पुलिस की आलोचना
450 पन्ने के फैसले में न्यायाधीश ने दिल्ली पुलिस की भूमिका पर कड़ी आलोचना की थी. उन्होंने कहा, 'दिल्ली पुलिस द्वारा विशेष रूप से निष्क्रियता बरती गई है'. उन्होंने टिप्पणी की कि आरोपी के पिता ने एजेंसियों को प्रभावित करने के लिए अपने आधिकारिक पद का इस्तेमाल किया होगा. हेलमेट टूटा हुआ पाया गया था. सबूत इतने खराब ढंग से प्रस्तुत किए गए कि बचाव पक्ष इसे नजरअंदाज करने में सक्षम था. न्यायाधीश के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने जांच और मुकदमे के दौरान आरोपी की सहायता करने का प्रयास किया. 'ललित मोहन, इंस्पेक्टर ने आरोपियों के लिए झूठे सबूत और झूठे बचाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. एक सब-इंस्पेक्टर सहित पुलिस के गवाहों ने झूठी गवाही दी थी.'

जांच एजेंसी के खिलाफ रोष
इस फैसले से प्रियदर्शिनी मट्टू के परिवार और इस देश के लोगों में रोष था. उन्होंने जांच एजेंसी के खिलाफ प्रदर्शन किया. इस पूरे मामले पर मीडिया कवरेज में जांच की खूब आलोचना हुई. इसके बाद सीबीआई ने लोअर कोर्ट के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की.

दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला
17 अक्टूबर 2006 को दिल्ली हाई कोर्ट ने बलात्कार और हत्या के लिए संतोष सिंह को दोषी ठहराया और मौत की सजा सुनाई. जांच एजेंसी ने यह साबित किया कि डीएनए टेस्टिंग में जो लिक्विड इस्तेमाल हुआ था वह सीमन था और वह प्रिया की बॉडी से मिला था और वह संतोष के ब्लड से मैच हुआ था. 

सुप्रीम कोर्ट के दर पर
संतोष सिंह ने सजा से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दोबारा अपील की. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के ऑर्डर पर स्टे लगा दिया. 6 अक्टूबर 2010 को जस्टिस एचएस बेदी और सीके प्रसाद के खंडपीठ ने संतोष सिंह की सजा को फांसी को उम्रकैद में तब्दील कर दिया. 

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम

Advertisement

Live tv

Advertisement

पसंदीदा वीडियो

Advertisement