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जब इंदिरा गांधी को लगी पपीते की तलब, बावर्ची के फूल गए थे हाथ-पैर

कभी सोचा है कि पपीते की तलाश में वर्दीधारी पुलिसकर्मियों को लगना पड़ा हो. इंदिरा गांधी के लिए पूरा महकमा पपीते की तलाश में जुट गया था.

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जब इंदिरा गांधी को लगी पपीते की तलब, बावर्ची के फूल गए थे हाथ-पैर

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी.

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डीएनए हिंदी: पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सुबह के नाश्ते में पपीता परोसे जाने की इच्छा जतायी . और गोवा के एक पांच सितारा होटल के शेफ को बेहतरीन पपीते खरीदने के लिए पुलिस जीप में सवार होकर शहर की गलियों की खाक छाननी पड़ गई थी. एक नई किताब में यह दिलचस्प किस्सा सुनाया गया है. शेफ सतीश अरोड़ा ने अपनी किताब 'स्वीट्स एंड बिटर्स: टेल्स फ्रॉम ए शेफ्स लाइफ' में पुरानी यादों को ताजा करते हुए लिखा है कि वर्ष 1983 में इंदिरा गांधी गोवा में आयोजित राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक की अध्यक्षता करने पहुंचीं थीं. उन्होंने सुबह के नाश्ते में पपीता खाने की इच्छा जाहिर की थी, जिसके बाद होटल ताज के लिए इस फल का इंतजाम करना एक चुनौती बन गया था. 

सतीश अरोड़ा लिखते हैं कि उस समय उन्हें और उनकी टीम के लिए भारतीय फल की तलाश करना एक चुनौती जैसा बन गया था. यह नवंबर 1983 था और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 48 घंटे के रिट्रीट के लिए 40 से अधिक देशों के प्रमुख नेताओं की मेजबानी कर रही थीं. इस बैठक को गोवा में आयोजित करने का मकसद गोवा को विश्व पर्यटन मानचित्र पर लाना था. 

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इंदिरा को हर दिन चाहिए था नाश्ते में पपीता
सतीश अरोड़ा के मुताबिक, कार्यक्रम के मद्देनजर सड़कें चौड़ी की गईं, पुल बनाए गए, स्ट्रीट लाइट दुरुस्त की गईं और हवाई अड्डे की मरम्मत की गई. और इस पूरे कार्यक्रम के केंद्र में होटल ताज था, जो सौ से अधिक व्यंजन परोसने के लिए तैयारी में जुटा था. ये सब गहमागहमी चल ही रही थीं कि इसी बीच सूचना आई कि इंदिरा गांधी हर दिन नाश्ते में पपीता चाहती हैं.

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गोवा में नहीं मिल रहे थे पके पपीते
सतीश अरोड़ा ने अपनी किताब में कहा, 'साल के उस समय गोवा में हमें प्राकृतिक रूप से पके पपीते कहां मिलेंगे? नवंबर में अच्छे पपीते की कमी को देखते हुए, मैंने मुंबई से कच्चे पपीते लाने की व्यवस्था की और उनके पकने की प्रक्रिया को तेज करने के लिए उन्हें कागज में लपेटा गया.'

पिलपिले हो गए थे पपीते
सतीश अरोड़ा ने लिखा, 'किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था. नाश्ते में पपीता परोसा जाना था और पहले ही दिन पाया गया कि पपीते पिलपिले हो गए थे क्योंकि जिस आदमी को पपीतों को कागज में लपेटने की जिम्मेदारी दी गई थी, उसने उन्हें कुछ ज्यादा ही समय तक उन्हें कागज में ही लिपटे छोड़ दिया. इसी बीच, कर्मचारियों को बताया गया कि इंदिरा गांधी और उनके खास मेहमान नाश्ते के लिए आने वाले हैं. रसोई में घबराहट स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. मैं हमारी प्रधानमंत्री को ज्यादा पका हुआ पपीता परोस ही नहीं सकता था. मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करूं.' 

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जब पपीते की तलाश में जुट गए पुलिसकर्मी
शेफ सतीश अरोड़ा बताते हैं, 'उसके बाद जो हुआ, वह तो बस पूछिए ही मत. बढ़िया पपीतों की तलाश के लिए पुलिस जीप का इंतजाम किया गया. उस पुलिस जीप में शेफ अरोड़ा थे और साथ थे कुछ वर्दीधारी पुलिस वाले. इसके बाद, पके हुए पपीते की तलाश के लिए मुझे नजदीकी बाजार में ले जाने के लिए एक पुलिस जीप की व्यवस्था की गई. मेरी किस्मत अच्छी थी और मैंने एक दर्जन पपीते ले लिए. उस समय, मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई यौद्धा जंग जीत कर पुलिस जीप में लौट रहा हो, और वह भी 12 पपीतों के साथ.' (इनपुट: भाषा)

 

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