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Maternity Benefit Act: मैटरनिटी एक्ट के कौन से प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट में मिली चुनौती, जानिए किस सेक्टर्स महिलाओं को मिलता है लाभ

Supreme Court में मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट को लेकर याचिका दायर की गई है जिसमें गोद लेने वाली माओं को मिलने वाली 12 हफ्तों की छुट्टियों पर सवाल खड़े किए गए हैं.

Maternity Benefit Act: मैटरनिटी एक्ट के कौन से प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट में मिली चुनौती, जानिए किस सेक्टर्स महिलाओं को मिलता है लाभ

Maternity Benefit Act

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डीएनए हिंदी: मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 से जुड़ी धारा 5(4) पर सवाल उठे हैं और इसको लेक सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है. इस कानून एक प्रावधान यह है कि तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को कानूनी रूप से गोद लेने वाली महिला 12 सप्ताह के मातृत्व अवकाश की हकदार है और इसको लेकर ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. 

दरअसल, मैटरनिटी बेनिफिट्स को लेकर कर्नाटक की हंसानंदिनी नंदूरी द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर 28 अप्रैल को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई करेगी. बता दें कि कानून में साल 2017 में संशोधन किया गया था. 

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2017 में हुआ था संशोधन

2017 में संशोधित कानून के अंतर्गत गोद लेने वाली माओं को भी शामिल किया गया था. पहले गोद लेने वाली माताओं के लिए 1961 के मूल कानून में नहीं थे. बता दें कि मातृत्व लाभ अधिनियम को पहली बार 12 दिसंबर 1961 को मातृत्व लाभ और विभिन्न अतिरिक्त लाभ प्रदान करने के साथ ही, गर्भावस्था के दौरान और बाद में महिलाओं को रोजगार में अवकाश के लिए संसद द्वारा लागू किया गया था. 

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सरकारी और निजी संस्थानों में लागू होता है नियम

इस संशोधित अधिनियम की धारा 5(4) के अनुसार, एक महिला जो कानूनी रूप से तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लेती है तो वह भी 12 सप्ताह के अवकाश का लाभ ले सकेंगी. गौरतलब है कि 1973 में इसे "सरकारी संस्था" और "निजी संस्थाओं" को शामिल करने के लिए संशोधित किया गया था.  

1961 के अधिनियम की धारा 4 की उप-धारा (1) के अनुसार किसी भी जॉब पर काम कर रही महिला को प्रसव या उसके गर्भपात के तुरंत बाद छह सप्ताह के दौरान काम करने के लिए कंपनी द्वारा मजबूर नहीं किया जा सकेगा. 

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महिला ने किस आधार पर दायर की याचिका

महिला द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि कानून की धारा 5(4) न सिर्फ बच्चों के बीच बल्कि जैविक मां और गोद लेने वाली मां के बीच भी भेदभाव करती है. कर्नाटक की याचिकाकर्ता ने जैविक मां के मुकाबले बच्चा गोद लेने वाली मां को प्रदान किए जाने वाले मातृत्व अवकाश की अवधि पर भी आपत्ति जाहिर की है. कानून के मुताबिक बच्चा गोद लेने वाली मां को 12 हफ्ते का मातृत्व लाभ मिलता है जबकि जैविक मां को 26 हफ्ते का मातृत्व लाभ प्रदान किया जाता है.

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