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क्या है पवलगढ़ जंगल का सीता माता से नाता, क्यों बदला है उत्तराखंड सरकार ने उसका नाम

Sitavani Conservation Reserve: राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के उपलक्ष्य में उत्तराखंड सरकार ने नैनीताल के पास मौजूद पवलगड़ कंजरवेशन रिजर्व का नाम बदलकर सीतावनी कंजरवेशन रिजर्व कर दिया है. यहां त्रेता युग का साक्ष्य हैं.

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Sitavani Temple

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डीएनए हिंदी: Ram Mandir Pran Pratishtha Updates- अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां जोरशोर से चल रही हैं. 22 जनवरी को होने वाले इस उत्सव में पूरा देश अपनी आहुति देना चाहता है. भगवान राम के 550 साल बाद फिर से अपनी जन्मभूमि पर मंदिर में विराजमान होने के उपलक्ष्य में उत्तराखंड सरकार ने एक बड़ी घोषणा की है. नैनीताल के करीब जिम कार्बेट से सटे रामनगर वन प्रभाग के ही पवलगढ़ कंजर्वेशन रिजर्व का नाम बदलकर सीता माता के नाम पर कर दिया गया है.

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार रात को इसकी घोषणा की. अब इसे सीतावनी कंजर्वेशन रिजर्व के नाम से जाना जाएगा. हालांकि स्थानीय लोग पहले से ही इस जंगल के सीतावनी कहकर पुकारते रहे हैं. इस संरक्षित जंगल में माता सीता का पौरोणिक मंदिर है और रामायण लिखने वाले महर्षि वाल्मिकी का आश्रम मौजूद है, जिसका संरक्षण भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) करता है. ये मंदिर त्रेता युग यानी रामायण काल का माना जाता है. वाल्मिकी समाज के लिए यह सबसे बड़े तीर्थस्थलों में से एक है.

माता सीता के नाम पर देश का पहला संरक्षित जंगल

टाइगर, हाथी, पक्षी व तितलियों के लिए मशहूर सीतावनी कंजर्वेशन रिजर्व देश का पहला संरक्षित जंगल है, जिसका नाम माता सीता के नाम पर रखा गया है. संरक्षित जंगल होने के बावजूद सीतावनी मंदिर के कारण वन विभाग 5824.76 हेक्टेयर के इस रिजर्व में पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों को जाने की अनुमति देता है.

स्कंद पुराण में भी है यहां मौजूद सीतावनी मंदिर का जिक्र

स्कंद पुराण में भी सीतावनी मंदिर का जिक्र सीतेश्वर महादेव के नाम से मिलता है. स्कंद पुराण में इसे कौशिकी नदी के बायीं तरफ मौजूद शेषागिरि पर्वत बताया गया है, जहां सिद्ध आत्माओं व गंधर्वों का विचरण रहता है. यह कौशिकी नदी मौजूदा समय की कुमाऊं की प्रमुख नदी कोसी है.  इसके अलावा रामायण और महाभारत में इस स्थल की जानकारी मौजूद है. 

सीता जी के यहीं जमीन में समाने का दावा

भगवान राम द्वारा त्यागे जाने के बाद माता सीता वन में वाल्मिकी आश्रम में रही थीं. आश्रम में ही लव-कुश का जन्म हुआ था. यह आश्रम कहां था, इसे लेकर कई दावे हैं. इनमें से एक दावा सीतावनी को लेकर भी किया जाता है. स्थानीय किवदंती के अनुसार, यहीं पर महर्षि वाल्मिकी का आश्रम था, जहां अंत में माता सीता धरती में समा गई थीं. यहां एक कुंड है, जिसके बारे में मान्यता है कि सीता माता यहीं पर धरती में समाई थी. यहां मंदिर में पानी की तीन धाराएं पूरे साल बहती हैं, जिन्हें राम, लक्ष्मण और सीता कहा जाता है. इन धाराओं की खासियत है कि इनका पानी गर्मी में बेहद ठंडा और सर्दी में गुनगुना रहता है.

राम-सीता के वनवास में यहां आने की भी मान्यता

सीतावनी मंदिर को लेकर एक दावा और किया जाता है. इस दावे के मुताबिक, यहां वनवास के दौरान महर्षि विश्वामित्र के बुलावे पर राम, लक्ष्मण और सीता माता आए थे. माता सीता को यह वन बेहद भा गया था. उन्होंने श्रीराम से यहीं पर बैशाख के महीने में रहने का आग्रह किया और कौशिकी नदी में स्नान किया. मान्यता है कि वे जहां रहे थे, वहां पानी के दो झरने निकल आए थे. ये झरने आज भी जंगल में मौजूद है. इस मान्यता का जिक्र बद्रीदत्त पांडे की पुस्तक 'कुमाऊं के इतिहास' में भी किया गया है. मान्यता है कि यहां बैशाख मास में भगवान राम ने माता सीता के साथ शिवजी की साधना की थी. इसी कारण सीतावनी मंदिर को सीतेश्वर महादेव भी कहते हैं.

मंदिर में है लव-कुश के साथ सीता माता की प्रतिमा

यहां मौजूद सीतावनी मंदिर की खास बात ये है कि इसमें श्रीराम मौजूद नहीं हैं, लेकिन माता सीता अपने दोनों बेटों लव-कुश के साथ यहां विराजमान हैं. जिम कार्बेट से सटे इस जंगल में दिन में भी जाना बेहद खतरनाक माना जाता है. यहां भी जिम कार्बेट टाइगर रिजर्व की तरह जिप्सी से जंगल सफारी कराई जाती है.

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