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Anger Issues: बच्चों की गुस्सा करने की आदत के लिए अपनाएं ये टिप्स, जल्द दिखेगा बदलाव 

Anger Issues: बच्चे की गुस्सा करने की आदत को प्यार से सुधारा जा सकता है. जानिए टिप्स. 

Anger Issues: बच्चों की गुस्सा करने की आदत के लिए अपनाएं ये टिप्स, जल्द दिखेगा बदलाव 
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डीएनए हिंदीः बच्चों की मांग पूरी ना होने पर उन्हें बहुत गुस्सा आता है. यह गुस्सा उनके स्वास्थ्य और परिवार के वातावरण को प्रभावित कर सकता है. ऐसे में कुछ पेरेंट्स बच्चों को धमका देते हैं जो कि सही नहीं है. इससे बच्चों के मन में पेरेंट्स को लेकर तरह-तरह के सवाल आते हैं. वह सोचने लगते हैं कि पेरेंट्स उन्हें प्यार नहीं करते. जब भी कोई बच्चा गुस्सा हो उसे प्यार से समझाना चाहिए. इसके अलावा कुछ और भी टिप्स अपनाएं जा सकते हैं.

गुस्से का कारण समझने की कोशिश करें
जब भी बच्चा गुस्सा हो सबसे पहले उसके पीछे का कारण जानने की कोशिश करें.  हो सकता है कि ऐसा कुछ हुआ हो जिससे बुरा लगना लाजमी हो. कारण सिर्फ जानने ही नहीं उसे एक बच्चे की तरह समझने की भी कोशिश करें. जब तक बच्चे के नजरिए से दिक्कत नहीं समझेंगे, तब तक बच्चा किस स्थिति से गुजर रहा है यह नहीं समझ पाएंगे. 

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मार की जगह प्रेम से समझाएं
अकसर बच्चे के बरताव को देख पेरेंट्स उन पर गुस्सा करना शुरू कर देते हैं. जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए. इससे बच्चे और पेरेंट्स के बीच संबंध और बिगड़ते हैं. इसके बजाए  बच्चों से प्रेम से बात कर समझाने का प्रयास करना चाहिए. बच्चे का गुस्सा जब शांत हो जाए तब जानने की कोशिश करनी चाहिए कि आखिर गुस्सा आया किस बात पर था. 

गुस्सा करने नुकसान के बारे में बताएं
गुस्सा करना शरीर के लिए अच्छा नहीं है. इसके अलावा जो बात-बात पर गुस्सा करता है, उससे सब दूरी बना लेते हैं. ऐसे में पेरेंट्स को बच्चों को समझाना चाहिए कि गुस्सा करने की आदत कितनी भारी पड़ सकती है. गुस्से से होने वाली हानि के बारे में जानकर बच्चों में कुछ सकारात्मक बदलाव दिख सकते हैं. 

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वातावरण और दोस्तों का रखें ध्यान
बच्चे वही सिखते हैं जो उनके आसपास चल रहा होता है. किसी भी घर का वातावरण उन्हें बहुत हद तक प्रभावित करता है. बच्चों के दोस्त कैसे हैं और उनका स्वभाव कैसा है, इस बात का भी बच्चों पर असर पड़ता है. ऐसे में इस बात का ध्यान रखें कि घर और बच्चा जहां भी जा रहा है, वहां सब ठीक हो. 

बच्चों के दोस्त बनें
बच्चे जैसे ही पेरेंट्स को दोस्त मानना शुरू करते हैं, वैसे ही सब ठीक हो जाता है. ऐसा होने पर बच्चे पेरेंट्स के साथ सब कुछ खुलकर साझा करने लग जाते हैं. पेरेंट्स को कोशिश करनी चाहिए कि वह बच्चों के साथ दोस्त की तरह रहें. 

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