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Hanuman Chalisa : दिन में इतनी बार करें पाठ तो मिलेगा शुभ फल

बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए Hanuman Chalisa का पाठ किया जाता है, ऐसा करने से कई प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं.

 Hanuman Chalisa : दिन में इतनी बार करें पाठ तो मिलेगा शुभ फल
हनुमान चालीसा

डीएनए हिंदी: बजरंगबली को हिन्दू-देवताओं में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. वे प्रभु श्री राम के परम भक्त हैं. सच्चे मन से उनकी आराधना करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं. बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए हनुमान चालीसा ( Hanuman Chalisa ) का पाठ किया जाता है. इसका पाठ करने से भक्तों के जीवन में बल-बुद्धि-ऐश्वर्य में वृद्धि होती है. साथ ही शनि ग्रह और साढे़ साती का प्रभाव कम होता है. हनुमान जी को कलयुग में जागृत देव के रूप में जाना जाता है और इन्हें प्रसन्न करना बहुत आसान है. हनुमान जी को संकट मोचन भी कहा जाता है. वह इसलिए क्योंकि हनुमान चालीसा पढ़ने से ही व्यक्ति के जीवन में सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं. आइए जानते हैं कितने बार हनुमान चालीसा के पाठ करने से जीवन में समस्याएं दूर हो जाती हैं. 

7, 11, 100 या 108 बार करें पाठ 

हनुमान चालीसा पाठ में एक पंक्ति है 'जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महासुख होई'. आप इसका पाठ 7, 11, 100 और 108 बार कर सकते हैं. शास्त्रों में यह भी विधान है कि प्रतिदिन सौ बार पाठ करने से कई प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं, अगर आप ऐसा नहीं कर पाते हैं तो कम से कम 7 बार पाठ जरूर करें. इससे आपमें आध्यात्मिक बल, आत्मिक बल व मनोबल की बढ़ोतरी होगी. जीवन और शरीर के कष्ट दूर हो जाएंगे और आप हल्कापन महसूस करेंगे. साथ ही आप भय, तनाव और असुरक्षा से भी खुदको मुक्त पाएंगे.

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हनुमान चालीसा- Hanuman Chalisa

।। दोहा ।।

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिकै सुमिरौं पवनकुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार॥

।। चौपाई ।।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥
महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै॥
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचन्द्र के काज संवारे॥
लाय संजीवनि लखन जियाए।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
असकहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिक्पाल जहाँ ते।
कबी कोबिद कहि सकैं कहां ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

सब सुख लहै तुम्हारी शरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनौं लोक हांक ते कांपे॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोहि अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥

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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
असबर दीन्ह जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥

अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
जो शत बार पाठ कर कोईमहा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महं डेरा॥

।। दोहा ।।
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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