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Brihadeeswara Temple Fact: जमीन पर नहीं पड़ती तमिलनाडु के इस रहस्यमई मंदिर के शिखर की परछाईं! जानिए क्या है राज

Temple With No Shadow: तमिलनाडु के तंजावुर स्थित बृहदेश्वर मंदिर सबसे पुराने मंदिरों में से एक है, इस मंदिर के शिखर की परछाईं जमीन पर नहीं पड़ती. जानिए क्या है राज

Brihadeeswara Temple Fact: जमीन पर नहीं पड़ती तमिलनाडु के इस रहस्यमई मंदिर के शिखर की परछाईं! जानिए क्या है राज

Brihadeeswarar Temple Mystery

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डीएनए हिंदी: वैसे देश में कई ऐसे मंदिर हैं, जो किसी न किसी रहस्य की वजह से दुनियाभर में फेमस हैं. लेकिन, आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में (Brihadeeswara Temple Fact) बताने वाले हैं, जो इस तरह डिजाइन किया गया है कि साल के किसी भी महीने में इस मंदिर के शिखर की परछाईं धरती पर नहीं पड़ती. यह मंदिर वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण (Temple With No Shadow) है. दरअसल, हम बात कर रहे हैं, तमिलनाडु के तंजावुर स्थित बृहदेश्वर मंदिर के बारे में. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. इस मंदिर का निर्माण चोल सम्राट राजराजा (Brihadeeswarar Temple Mystery) प्रथम के संरक्षण में किया गया था. आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी खास बातें...

सबसे पुराने मंदिरों में से एक 

बृहदेश्वर टेंपल सबसे पुराने मंदिरों में से एक है और ये मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित है. ऐसे कई सारे कारण हैं, जिसके चलते आपको यहां एक बार घूमने जरूर जाना चाहिए. इस मंदिर से एक ऐसा रहस्य जुड़ा है- जिसके बारे में शायद ही लोग जानते हैं. ऐसे में इस मिस्ट्री को जानने के बाद आप भी बृहदेश्वर टेंपल में जरूर घूमने जाएंगे.

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वास्तुकला प्रतिभा का बेहतरीन उदाहरण 

भगवान् शिव को समर्पित बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण चोल सम्राट राजराजा प्रथम के संरक्षण में किया गया था और यह मंदिर चोल राजवंश की वास्तुकला प्रतिभा का बेहतरीन उदाहरण है. इस मंदिर के निर्माण में उन्नत इंजीनियरिंग तकनीक समेत ऐसी कई चीजें शामिल हैं जो विशेषज्ञों को भी हैरान कर देती हैं. 

नहीं दिखती मंदिर के शिखर की परछाईं 

इस मंदिर की सबसे अनोखी बात यह है कि दोपहर के समय में मंदिर के शिखर की परछाईं नहीं दिखती है. इतना ही नहीं यह दुनिया के सबसे ऊंचे मंदिरों में से एक है, लेकिन फिर भी दोपहर के समय मंदिर के शिखर की छाया जमीन पर नहीं पड़ती. इस मंदिर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि दोपहर के समय मंदिर के शिखर की परछाई नहीं पड़ती है. 

दरअसल, इस मंदिर की रचना और गुंबद की रचना इस प्रकार हुई है कि सूर्य इसके चारों ओर घुम जाता है लेकिन इसके गुंबद की छाया भूमि पर नहीं पड़ती है. हालांकि दोपहर को मंदिर के हर हिस्से की परछाईं जमीन पर दिखती है लेकिन गुंबद की नहीं.

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युनेस्को हेरिटेज में शामिल

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और दक्षिण भारत के अन्य प्रमुख मंदिरों की तरह इसमें भी माता पार्वती, नंदी, गणेश और कार्तिकेय के मंदिर हैं. यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल का भी एक हिस्सा है. इसके अलावा इस मंदिर परिसर में कई अन्य मंदिर भी शामिल हैं, जिन्हें ग्रेट लिविंग चोल मंदिर भी कहा जाता है. बता दें कि लगभग 1000 साल पहले 11वीं शताब्दी में निर्मित बृहदेश्वर मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली में है और मंदिर में ऊंचे गोपुरम, विशाल मीनारों समेत परिसर में कई सारे मंदिर हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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