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Govardhan Parvat: मथुरा वृंदावन से कभी नहीं लानी चाहिए ये 1 चीज, जीवन में होने लगेगा सब अनिष्ट

मथुरा वृंदावन में स्थित गोवर्धन पर्वत का बड़ा महत्व है. इसे पर्वतों का राजा और श्रीकृष्ण का सबसे प्रिय बताया गया है. पौराणिक कथाओं इस पर्वत के दर्शन और परिक्रमा मात्र से ही पुण्य प्राप्ति की वर्णन किया गया है.

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Govardhan Parvat: उत्तर प्रदेश में स्थित मथुरा वृंदावन (Mathura Vrindavan) को भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की भूमि कहा जाता है. द्वापर युग में यही पर श्रीकृष्ण और राधा रानी का जन्म और पालन पोषण हुआ था. यहां भगवान के चमत्कार और कुछ दृश्य ऐसे दिखाई देते हैं, जो श्रीकृष्ण के होने की पुष्टी करते हैं. यहां अनेकों मंदिर मौजूद है, जहां पर बांके बिहारी के दर्शन करके हर एक भक्त का मन भाव-विभोर हो जाता है. पौराणिक कथाओं में इसका खूब वर्णन किया गया है. मथुरा-वृंदावन में श्री कृष्ण के अलग अलग रूपों के दर्शन करने के साथ ही गिरिराज यानी गोवर्धन पर्वत (Govardhan Parvat Importance) के दर्शन और परिक्रमा करना बेहद शुभ होता है. 

गोवर्धन पर्वत मथुरा से 21 और वृंदावन से 23 किलोमीटर दूरी पर स्थित हे. यहां हर दिन हजारों भक्त गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने पहुंचते हैं. वहीं दिवाली के 3 दिन बाद गोवर्धन पर्वत की विशेष पूजा की जाती है. लोग घरों गाय के गोबर से गोवर्धन बनाकर गोवर्धन महाराज की पूजा अर्चना करते हैं. इससे जीवन में सुख समृद्धि आती है. भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है. 

गिरिराज पर्वत श्रीकृष्ण के प्यारे और ​पर्वतों के राजा 

गर्गसंहिता के अनुसार, गिरिराज पर्वतों का राजा और श्रीकृष्ण का प्यारा कहा जाता है.इसके समान धरती और स्वर्ग में कोई दूसरा तीर्थ स्थल नहीं है. खुद नारद जी ने गिरिराज पर्वत का बखान किया है. उन्होंने इसका महत्व बताया है. गर्ग संहिता में वृंदावन को गोलोक और गिरिराज पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण का मुकुट के रूप में सम्मानित किया है. श्रीकृष्ण के मुकुट का स्पर्श पाकर या दर्शन मात्र से ही व्यक्ति के सभी दुख कट जाते हैं. गोवर्धन की यात्रा करने से कई गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है. 

गलती से भी न गिरिराज को नहीं लाना चाहिए घर

मथुरा वृंदावन की रज यानी मिट्टी घर लाना शुभ होता है, लेकिन भूलकर भी गिरिराज पर्वत  से जुड़ा छोटा सा पत्थर भी घर नहीं लाना चाहिए. क्योंकि गिरिराज वृंदावन का मुकुट है और राधा रानी गिरिराज पर्वत के बिना नहीं रह सकती है. गिरिराज पर्व श्री कृष्ण के अति प्रिय और सिर के मुकुट सामान है. पौराणिक ​कथाओं के अनुसार, कभी भी गिरिराज को 84 कोसों के बाहर नहीं लाना चाहिए. मान्यता है कि जो व्यक्ति ऐसा करता है, तो भविष्य में उसका अनिष्ट होता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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