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Nepal के राष्ट्रपति ने फिर नहीं किया नागरिकता बिल पर हस्ताक्षर, जानिए इसका भारतीय कनेक्शन

नेपाल और भारत के सीमावर्ती इलाकों की जनता आपस में 'रोटी-बेटी' का रिश्ता रखती है. हजारों भारतीय महिलाओं की वहां शादी हुई है.

Nepal के राष्ट्रपति ने फिर नहीं किया नागरिकता बिल पर हस्ताक्षर, जानिए इसका भारतीय कनेक्शन
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डीएनए हिंदी: नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी (Nepali President Bidya Devi Bhandari) ने एक बार फिर नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. इसे करीब 5 लाख लोगों के लिए करारा झटका माना जा रहा है. इनमें नेपाल में शादी करने के बाद यहां की नागरिकता पाने का इंतजार कर रहीं हजारों भारतीय महिलाएं भी शामिल हैं.

इस विधेयक के पारित होने पर इन सभी की तत्काल नागरिकता पाने की राह खुल सकती थी. उधर, विशेषज्ञ राष्ट्रपति के इस कदम को नेपाल के संविधान का उल्लंघन बता रहे हैं.

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दो बार पारित हो चुका है संसद से विधेयक

नागरिकता संशोधन विधेयक को नेपाली संसद के दोनों सदन दो बार पारित कर चुके हैं, लेकिन राष्ट्रपति ने दोनों बार तय समयसीमा के अंदर इसे मंजूरी नहीं देते हुए वापस भेज दिया है. राष्ट्रपति कार्यालय के सीनियर ऑफिसर भेषराज अधिकारी ने बताया कि नेशनल असेम्बली और प्रतिनिधि सभा की ओर से दो बार पारित किए जाने के बाद विधेयक को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए भेजा गया था, लेकिन उन्होंने इसे पुनर्विचार के लिए वापस संसद को भेज दिया है.  

सदन के अध्यक्ष अग्नि प्रसाद सापकोटा ने पांच सितंबर को विधेयक को पुनः मंजूरी दी थी और दोबारा इसे राष्ट्रपति के पास भेजा था. इस पर उन्हें मंगलवार मध्यरात्रि तक हस्ताक्षर करना था, लेकिन उन्होंने हस्ताक्षर नहीं किए हैं. संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति को 15 दिन के भीतर विधेयक पर हस्ताक्षर करने होते हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया है. 

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क्या संसद के खिलाफ चली गई हैं राष्ट्रपति!

संविधान विशेषज्ञ और वकील दिनेश त्रिपाठी ने इसे गंभीर संवैधानिक संकट बताया है. उनके मुताबिक, राष्ट्रपति ने संविधान का उल्लंघन किया है. राष्ट्रपति संसद के विरुद्ध नहीं जा सकतीं हैं. संसद में पारित विधेयक को अनुमति देना राष्ट्रपति का संवैधानिक दायित्व है. इस इनकार से पूरी संवैधानिक प्रक्रिया पटरी से उतर गई है. त्रिपाठी के मुताबिक, संविधान की व्याख्या केवल सु्प्रीम कोर्ट कर सकता है, राष्ट्रपति नहीं. 

उन्होंने कहा, नेपाली संविधान के अनुच्छेद 113 (4) के हिसाब से यदि विधेयक दोबारा राष्ट्रपति को भेजा जाता है तो उन्हें इसे मंजूरी देनी ही होती है. हालांकि, राष्ट्रपति के राजनीतिक मामलों के सलाहकार लालबाबू यादव का कहना है कि राष्ट्रपति संविधान के अनुरूप ही काम कर रही हैं. विधेयक से कई संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है, जिसे रोकना राष्ट्रपति का दायित्व है.

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मधेशी समुदाय की लंबे समय से थी मांग

नागरिकता कानून, 2006 में वैवाहिक आधार पर तत्काल नागरिकता देने के लिए दूसरी बार संशोधन किया गया था. इससे पहले नेपाली नागरिक से विवाह करने वाले विदेशियों को नागरिकता के लिए 20 साल इंतजार करना पड़ता था. इस संशोधन की मांग लंबे समय से मधेशी समुदाय कर रहा था, जो भारत से सटे नेपाल के तराई के करीब 20 जिलों में रहते हैं और भारतीय समुदाय के साथ इनके वैवाहिक रिश्ते हैं. इस समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले राजनीतिक दल और अनिवासी नेपाली संघ नागरिकता कानूनी में बदलाव की मांग करते रहे हैं. 

एक अनुमान के मुताबिक, ऐसे करीब 5 लाख लोग हैं, जो नेपाल का नागरिकता पहचान पत्र पाने का इंतजार कर रहे हैं. संशोधित विधेयक में नेपाल से सटे देशों के नागरिकों को वैवाहिक आधार पर तत्काल पूर्ण नागरिकता देने की व्यवस्था की गई है, जबकि गैर-दक्षेस देशों में रहने वाले अनिवासी नेपालियों को मतदान के अधिकार के बिना नागरिकता देना सुनिश्चित किया गया है.

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पहले थी यह व्यवस्था

नेपाली युवक की भारतीय युवती से शादी के बाद भारतीय महिला को सात साल बाद नागरिकता देने का कानून था. भारतीय युवती से शादी के बाद उससे जन्मे बच्चे को भी नेपाली नागरिकता देने पर रोक थी, जिससे लाखों मधेशी मूल के युवा बेरोजगार घूम रहे थे. हालत यह थी कि कोई नेपाल में शादी करने को तैयार नहीं हो रहा था.

नेपाली समाज का एक वर्ग कर रहा विरोध

नागरिकता कानून में संशोधन का नेपाली समाज के एक वर्ग में विरोध हो रहा है. उनका कहना है कि इससे विदेशी महिलाएं नेपाली पुरुषों से शादी कर आसानी से नागरिकता प्राप्त कर सकेंगी, जिससे नेपाल की मूल पहचान खत्म हो जाएगी. 

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