आपकी वॉल से
कमलेश्वर की कलम पानी जैसी थी, वे उसे जिस विधा में रख देते वह उसी के रंग में ढल जाती थी.
_____________________________________________
मनोहर श्याम जोशी ने अपने विभिन्न विधाओं में समानांतर आवागमन पर किए गए सवालों पर बड़े स्पष्ट लहजे में कभी कहा था, ‘जो भी विधा मुझे अपने पास बुलाएगी, मैं वहां चला जाऊंगा...’ हालांकि उनसे भी ज्यादा कहीं यह बात कमलेश्वर के लेखन पर लागू होती दिखाई देती है. वे मनोहर श्याम जोशी से भी कहीं अधिक भूमिकाओं में अपने पूरे जीवन काल में दिखते हैं
कहानीकार और उपन्यासकार के अतिरिक्त सम्पादन, पत्रकारिता, अनुवाद और फिल्म पटकथा और संवाद लेखन कमलेश्वर के व्यक्तित्व के बिलकुल अलग-अलग आयाम रहे, जिन्हें एक में मिलाकर नहीं देखा जा सकता. यूं कहा जा सकता है कि कमलेश्वर की कलम से निकलने वाले शब्दों का रंग स्याह न होकर पानी जैसा था, जिस भी विधा को वह छूती, उसी के रंग और लहजे में खुद को ढाल भी लेती. फिर भी उनका कमलेश्वरी तर्ज उनके हर लिखे में दस्तखत की तरह मौजूद और मौजूं दिखता है. यह कमलेश्वर का स्थायी सिग्नेचर टोन है, सामाजिक विषमताओं का अंकन और उसके प्रति एक मूलभूत विद्रोह वाला.
मध्यवर्गीय जीवन की विषमताएं कमलेश्वर के जीवन का हिस्सा रहीं
मध्यवर्गीय जीवन की विषमताएं और उस सब में भी कहीं प्रमुख रूप से स्त्री जीवन का एकांत और उसके दुख की कहानी उपन्यास लेखन के साथ-साथ कमलेश्वर के फिल्म पटकथा लेखन का भी हिस्सा रहे. तलाश, मांस का दरिया, राजा निरबंसिया और देवा की मां जैसी उनकी अनेक कहानियां स्त्री जीवन और उसके दुखों की बहुत गहराई से पड़ताल करती हैं. उनके उपन्यासों पर आधारित फिल्में – ‘आंधी’ (काली आंधी), ‘मौसम’ (आगामी अतीत) और कहानी पर आधारित ‘फिर भी’ (तलाश) इसके प्रमुख उदाहरण हैं. पर समय बीतने के साथ इनके जैसी ही ‘सारा आकाश’, ‘रजनीगंधा’ और ‘छोटी सी बात’ जैसी सार्थक फिल्मों से निकलकर कमलेश्वर ‘साजन की सहेली’, और ‘सौतन की बेटी’ जैसी घोर कमर्शियल और दिशाहीन फिल्मों के चक्कर में आ फंसते हैं.
वैसे एक अर्थ में यह कोई गिरावट जैसी बात भी नहीं थी. कमलेश्वर तब के कमर्शियल फिल्मों के ख्यात पटकथा और संवाद लेखक हो चले थे पर कला और विषय की दृष्टि से देखें तो यह घटना समाज और अच्छी फिल्मों के दर्शकों के लिए एक गंभीर क्षति थी. यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि उनकी कोई भी और कैसी भी फिल्म बगैर किसी सामाजिक सन्देश के ख़त्म नहीं होती, और औरत वहां चाहे जिस रूप में भी आई हो, उसका एक उजला पक्ष उसमें कहीं न कहीं दबा दिख ही जाता है.
अपनी कहानियों में कमलेश्वर बहुत सहज दिखते हैं. बिलकुल स्पष्ट संदेशों के साथ. नई कहानी आंदोलन की अपनी त्रयी (राजेंद्र यादव और मोहन राकेश के साथ) में वे सबसे सहज हैं. यह उनकी कहानी के नामों से भी समझ में आ जाता है. मसलन ‘वापसी’, ‘देवा की मां’ या ‘नीली झील’. यहां नाम में चमत्कार भरने की कोशिश नहीं है. आम लोगों के लिए उनकी भाषा में ही कहानी कह देने की कला ही वह वजह रही कि ‘राजा निरबंसिया’ के प्रकाशित होते ही पाठकों ने उसे हाथों-हाथ लिया.
ठीक इसके विपरीत एक टीवी पत्रकार और इस माध्यम के लेखक के रूप में वे हर जगह अपनी विशिष्टता बनाए और बचाए रहते हैं, और अपनी वह जुदा पहचान भी... ‘परिक्रमा’ और ‘बंद फाइलें’ उनके द्वारा लिखित ऐसे कार्यक्रम थे जो तब की टीवी पत्रकारिता के क्षेत्र में एक नया इतिहास लिखते हैं. परिक्रमा ने लगातार सात साल तक दूरदर्शन पर अपना वर्चस्व बनाए रखा. यह अपने तरह की एक अकेली घटना थी. धार्मिक और ऐतिहासिक धारावाहिकों के बाद यह अकेला धारवाहिक था, जिसका हिंदी भाषी प्रांतों की जनता बेसब्री से इंतजार करती थी.
आख़िरी समय तक लिखते रहे कमलेश्वर
कमलेश्वर ने अपने पूरे जीवन काल में 300 से भी अधिक कहानियां लिखीं और कुल 13 उपन्यास. वे अपनी पीढ़ी के अकेले ऐसे लेखक रहे हैं, जो अपने अंतिम समय तक लेखन को नहीं छोड़ते, या यूं कहें कि लेखन उनका पीछा नहीं छोड़ता. जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में लिखा गया उनका उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ लोकप्रियता के सारे आयाम पीछे छोड़ देता है, लगातार आने वाले उसके छह संस्करण इसी बात का प्रमाण थे.
कितने पाकिस्तान के लिए कमलेश्वर को साहित्य अकादमी सम्मान भी प्राप्त हुआ. हालांकि इस पर कुर्तुल एन हैदर के ‘आग का दरिया’ की छाया स्पष्ट दिखती है. यहां आकार-प्रकार ही नहीं विषयवस्तु और कथ्य व शिल्प में भी बहुत ज्यादा सामंजस्य दिखाई देता है. हालांकि इसे नक़ल जैसा न मानकर शिल्प और कथ्य के अनुकरण जैसा कुछ कहा जा सकता है. दरअसल कोई भी जिम्मेदार लेखक अपने लिए विषय वस्तु के रूप में वर्तमान समय और समाज और उसकी विसंगतियों की और ही रुख करेगा. कमलेश्वर जैसा क्रांतिकारी लेखक तो सबसे पहले. इसलिए इसे शिल्प और शैली का पारम्परिक दुहराव तो कह सकते हैं पर नक़ल नहीं और फिर कमलेश्वर उम्र और जीवन के जिस पड़ाव पर उस वक़्त थे, वहां यह बात असंभव जैसी ही जान पड़ती है.
‘विहान’, ‘इंगित’, ‘नयी कहानियां’, ‘सारिका’, ‘कथा यात्रा’, ‘श्री वर्ष’ और ‘गंगा’ जैसी पत्रिकाएं कमलेश्वर के सम्पादक रूप की घोषणा पत्र मानी जा सकती हैं. इनमें भी खासकर नई कहानियां और सारिका का सम्पादन. कमलेश्वर ने जिस नए कहानी आन्दोलन का सूत्रपात किया, वह था सारिका पत्रिका के द्वारा चलाया गया ‘समानांतर कहानी आन्दोलन’. सारिका ने ही पहली बार दलित लेखन को साहित्य जगत में जगह दी, इसमें भी मराठी के दलित लेखन को. यह जैसे समय की नब्ज पकड़ना था.
कमलेश्वर की प्राथमिकता थी नए लेखकों को मंच देना
बतौर सम्पादक कमलेश्वर की प्राथमिकता नए लेखकों को मंच देना और उनपर भरोसा करना भी रहा. अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए, कमलेश्वर ने लेखकों के लिए वहां एक कॉलम शुरू किया था - ‘गर्दिश के दिन’. इसके केंद्र में खुद कमलेश्वर के अपने गर्दिश के दिनों की स्मृतियां नींव की तरह थी. मतलब मैनपुरी से इलाहबाद और इलाहाबाद के बाद दिल्ली के गर्दिश वाले दिनों की स्मृतियां. उनकी समकालीन रहीं मन्नू भंडारी एक संस्मरण में बताती हैं कि कमलेश्वर तब पैसे एडवांस लेकर कहानी और उपन्यास लिखते थे. एक ही कहानी के लिए कई बार एक से ज्यादा जगहों से पैसे भी उठा लेते थे. और एकाध बार उसी कहानी में थोड़ी हेर-फेर या फिर शीर्षक के बदलाव के साथ दूसरी जगह भेज देते थे. इस सबके पीछे उनकी कुछ मजबूरियां भी रही होंगी और शायद इसी वजह से वे ‘गर्दिश के दिन’ और सारिका में लिखने वाले नए लेखकों को कई बार एडवांस पैसे दे देते थे.
इंदिरा गांधी भी प्रभावित थीं कमलेश्वर की साफ़गोई से
कमलेश्वर अपने उसूलों के इतने पक्के थे कि जब आपातकाल के दौर में उनसे यह कहा गया कि वे छपने से पूर्व पत्रिका सरकारी अफसरों को दिखाएं तो उन्होंने सारिका के पन्नों को पूरी तरह काला करके अपने अंदाज में विरोध जताना शुरू कर दिया था. यह विरोधी तेवर और इसके साथ विरोधी पक्ष के प्रति खुला मन उनके स्वभाव का मूल हिस्सा था. यह दिखाने वाला एक वाकया तब का है जब वे दूरदर्शन के महानिदेशक बनने जा रहे थे. अभी यह प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी लेकिन इस बीच उनकी मुलाक़ात इंदिरा गांधी से हो गई. इस मुलाकात का सबसे दिलचस्प पहलू यह था कि तब कमलेश्वर ने बहुत दृढ़ता और ढीठता से उन्हें यह बताया था कि कैसे उन्होंने आपातकाल के खिलाफ ‘काली आंधी’ कहानी लिखी थी. और यह भी कि उन्होंने अपने सम्पादकीय और अन्य लेखों में आपातकाल का जमकर विरोध किया था. बताते हैं कि इंदिरा गांधी उनकी इस साफगोई से बहुत प्रभावित हुई थीं. तत्कालीन प्रधानमंत्री को इससे कोई आपत्ति नहीं थी और बकौल कमलेश्वर इंदिरा गांधी ने उनके कहा था कि वे दूरदर्शन पर भी उनके मतभेद को सुनना चाहेंगी.
यह कमलेश्वर की जिंदगी का एक अलग ही वाकया है. हालांकि इस मामले में उनकी काबिलियत जितनी भी अहम् हो, यह इंदिरा गांधी का भी बड़प्पन ही था कि उन्हें अपने एक विरोधी के इतने महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति से कोई आपत्ति नहीं थी. हालांकि इससे पहले तक अपनी इसी बेबाकी और विद्रोही स्वभाव के कारण कमलेश्वर कहीं भी ठीक तरह से टिक नहीं पाते थे और एक आवारगी उनके जीवन का जरूरी हिस्सा बनी रही. इन्हीं यातना के दिनों को उन्होंने अपने संस्मरणों ‘खंडित यात्राएं’, ‘जलती हुई नदी’, ‘यादों के चिराग’ में खूब भीगे मन से लिखा है. कमलेश्वर को लेकर चाहे जितनी कहानियां और विवाद साहित्य जगत में और उससे बाहर चलते आ रहे हों, पर साहित्य के लिए उनके समर्पण, उनके अनुराग और महत्वपूर्ण योगदान से कोई इनकार नहीं किया जा सकता।
कविता स्वयं नामचीन कथाकार हैं. वे पत्रकार भी रह चुकी हैं. यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है.
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
यह भी पढ़ें -
Celebration of Republic Day: जब पश्चिम चरवाहा और घुमक्कड़ था, हमारे यहां इस उप-महाद्वीप में गणराज्य था
कहीं आप रिश्ते निभाते हुए अपनी शारीरिक सीमा का अतिक्रमण तो नहीं कर रहे
कमलेश्वर की कलम पानी जैसी थी, वे उसे जिस विधा में रख देते वह उसी के रंग में ढल जाती थी.
_____________________________________________
मनोहर श्याम जोशी ने अपने विभिन्न विधाओं में समानांतर आवागमन पर किए गए सवालों पर बड़े स्पष्ट लहजे में कभी कहा था, ‘जो भी विधा मुझे अपने पास बुलाएगी, मैं वहां चला जाऊंगा...’ हालांकि उनसे भी ज्यादा कहीं यह बात कमलेश्वर के लेखन पर लागू होती दिखाई देती है. वे मनोहर श्याम जोशी से भी कहीं अधिक भूमिकाओं में अपने पूरे जीवन काल में दिखते हैं
कहानीकार और उपन्यासकार के अतिरिक्त सम्पादन, पत्रकारिता, अनुवाद और फिल्म पटकथा और संवाद लेखन कमलेश्वर के व्यक्तित्व के बिलकुल अलग-अलग आयाम रहे, जिन्हें एक में मिलाकर नहीं देखा जा सकता. यूं कहा जा सकता है कि कमलेश्वर की कलम से निकलने वाले शब्दों का रंग स्याह न होकर पानी जैसा था, जिस भी विधा को वह छूती, उसी के रंग और लहजे में खुद को ढाल भी लेती. फिर भी उनका कमलेश्वरी तर्ज उनके हर लिखे में दस्तखत की तरह मौजूद और मौजूं दिखता है. यह कमलेश्वर का स्थायी सिग्नेचर टोन है, सामाजिक विषमताओं का अंकन और उसके प्रति एक मूलभूत विद्रोह वाला.
मध्यवर्गीय जीवन की विषमताएं कमलेश्वर के जीवन का हिस्सा रहीं
मध्यवर्गीय जीवन की विषमताएं और उस सब में भी कहीं प्रमुख रूप से स्त्री जीवन का एकांत और उसके दुख की कहानी उपन्यास लेखन के साथ-साथ कमलेश्वर के फिल्म पटकथा लेखन का भी हिस्सा रहे. तलाश, मांस का दरिया, राजा निरबंसिया और देवा की मां जैसी उनकी अनेक कहानियां स्त्री जीवन और उसके दुखों की बहुत गहराई से पड़ताल करती हैं. उनके उपन्यासों पर आधारित फिल्में – ‘आंधी’ (काली आंधी), ‘मौसम’ (आगामी अतीत) और कहानी पर आधारित ‘फिर भी’ (तलाश) इसके प्रमुख उदाहरण हैं. पर समय बीतने के साथ इनके जैसी ही ‘सारा आकाश’, ‘रजनीगंधा’ और ‘छोटी सी बात’ जैसी सार्थक फिल्मों से निकलकर कमलेश्वर ‘साजन की सहेली’, और ‘सौतन की बेटी’ जैसी घोर कमर्शियल और दिशाहीन फिल्मों के चक्कर में आ फंसते हैं.
वैसे एक अर्थ में यह कोई गिरावट जैसी बात भी नहीं थी. कमलेश्वर तब के कमर्शियल फिल्मों के ख्यात पटकथा और संवाद लेखक हो चले थे पर कला और विषय की दृष्टि से देखें तो यह घटना समाज और अच्छी फिल्मों के दर्शकों के लिए एक गंभीर क्षति थी. यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि उनकी कोई भी और कैसी भी फिल्म बगैर किसी सामाजिक सन्देश के ख़त्म नहीं होती, और औरत वहां चाहे जिस रूप में भी आई हो, उसका एक उजला पक्ष उसमें कहीं न कहीं दबा दिख ही जाता है.
अपनी कहानियों में कमलेश्वर बहुत सहज दिखते हैं. बिलकुल स्पष्ट संदेशों के साथ. नई कहानी आंदोलन की अपनी त्रयी (राजेंद्र यादव और मोहन राकेश के साथ) में वे सबसे सहज हैं. यह उनकी कहानी के नामों से भी समझ में आ जाता है. मसलन ‘वापसी’, ‘देवा की मां’ या ‘नीली झील’. यहां नाम में चमत्कार भरने की कोशिश नहीं है. आम लोगों के लिए उनकी भाषा में ही कहानी कह देने की कला ही वह वजह रही कि ‘राजा निरबंसिया’ के प्रकाशित होते ही पाठकों ने उसे हाथों-हाथ लिया.
ठीक इसके विपरीत एक टीवी पत्रकार और इस माध्यम के लेखक के रूप में वे हर जगह अपनी विशिष्टता बनाए और बचाए रहते हैं, और अपनी वह जुदा पहचान भी... ‘परिक्रमा’ और ‘बंद फाइलें’ उनके द्वारा लिखित ऐसे कार्यक्रम थे जो तब की टीवी पत्रकारिता के क्षेत्र में एक नया इतिहास लिखते हैं. परिक्रमा ने लगातार सात साल तक दूरदर्शन पर अपना वर्चस्व बनाए रखा. यह अपने तरह की एक अकेली घटना थी. धार्मिक और ऐतिहासिक धारावाहिकों के बाद यह अकेला धारवाहिक था, जिसका हिंदी भाषी प्रांतों की जनता बेसब्री से इंतजार करती थी.
आख़िरी समय तक लिखते रहे कमलेश्वर
कमलेश्वर ने अपने पूरे जीवन काल में 300 से भी अधिक कहानियां लिखीं और कुल 13 उपन्यास. वे अपनी पीढ़ी के अकेले ऐसे लेखक रहे हैं, जो अपने अंतिम समय तक लेखन को नहीं छोड़ते, या यूं कहें कि लेखन उनका पीछा नहीं छोड़ता. जीवन के अंतिम कुछ वर्षों में लिखा गया उनका उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ लोकप्रियता के सारे आयाम पीछे छोड़ देता है, लगातार आने वाले उसके छह संस्करण इसी बात का प्रमाण थे.
कितने पाकिस्तान के लिए कमलेश्वर को साहित्य अकादमी सम्मान भी प्राप्त हुआ. हालांकि इस पर कुर्तुल एन हैदर के ‘आग का दरिया’ की छाया स्पष्ट दिखती है. यहां आकार-प्रकार ही नहीं विषयवस्तु और कथ्य व शिल्प में भी बहुत ज्यादा सामंजस्य दिखाई देता है. हालांकि इसे नक़ल जैसा न मानकर शिल्प और कथ्य के अनुकरण जैसा कुछ कहा जा सकता है. दरअसल कोई भी जिम्मेदार लेखक अपने लिए विषय वस्तु के रूप में वर्तमान समय और समाज और उसकी विसंगतियों की और ही रुख करेगा. कमलेश्वर जैसा क्रांतिकारी लेखक तो सबसे पहले. इसलिए इसे शिल्प और शैली का पारम्परिक दुहराव तो कह सकते हैं पर नक़ल नहीं और फिर कमलेश्वर उम्र और जीवन के जिस पड़ाव पर उस वक़्त थे, वहां यह बात असंभव जैसी ही जान पड़ती है.
‘विहान’, ‘इंगित’, ‘नयी कहानियां’, ‘सारिका’, ‘कथा यात्रा’, ‘श्री वर्ष’ और ‘गंगा’ जैसी पत्रिकाएं कमलेश्वर के सम्पादक रूप की घोषणा पत्र मानी जा सकती हैं. इनमें भी खासकर नई कहानियां और सारिका का सम्पादन. कमलेश्वर ने जिस नए कहानी आन्दोलन का सूत्रपात किया, वह था सारिका पत्रिका के द्वारा चलाया गया ‘समानांतर कहानी आन्दोलन’. सारिका ने ही पहली बार दलित लेखन को साहित्य जगत में जगह दी, इसमें भी मराठी के दलित लेखन को. यह जैसे समय की नब्ज पकड़ना था.
कमलेश्वर की प्राथमिकता थी नए लेखकों को मंच देना
बतौर सम्पादक कमलेश्वर की प्राथमिकता नए लेखकों को मंच देना और उनपर भरोसा करना भी रहा. अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए, कमलेश्वर ने लेखकों के लिए वहां एक कॉलम शुरू किया था - ‘गर्दिश के दिन’. इसके केंद्र में खुद कमलेश्वर के अपने गर्दिश के दिनों की स्मृतियां नींव की तरह थी. मतलब मैनपुरी से इलाहबाद और इलाहाबाद के बाद दिल्ली के गर्दिश वाले दिनों की स्मृतियां. उनकी समकालीन रहीं मन्नू भंडारी एक संस्मरण में बताती हैं कि कमलेश्वर तब पैसे एडवांस लेकर कहानी और उपन्यास लिखते थे. एक ही कहानी के लिए कई बार एक से ज्यादा जगहों से पैसे भी उठा लेते थे. और एकाध बार उसी कहानी में थोड़ी हेर-फेर या फिर शीर्षक के बदलाव के साथ दूसरी जगह भेज देते थे. इस सबके पीछे उनकी कुछ मजबूरियां भी रही होंगी और शायद इसी वजह से वे ‘गर्दिश के दिन’ और सारिका में लिखने वाले नए लेखकों को कई बार एडवांस पैसे दे देते थे.
इंदिरा गांधी भी प्रभावित थीं कमलेश्वर की साफ़गोई से
कमलेश्वर अपने उसूलों के इतने पक्के थे कि जब आपातकाल के दौर में उनसे यह कहा गया कि वे छपने से पूर्व पत्रिका सरकारी अफसरों को दिखाएं तो उन्होंने सारिका के पन्नों को पूरी तरह काला करके अपने अंदाज में विरोध जताना शुरू कर दिया था. यह विरोधी तेवर और इसके साथ विरोधी पक्ष के प्रति खुला मन उनके स्वभाव का मूल हिस्सा था. यह दिखाने वाला एक वाकया तब का है जब वे दूरदर्शन के महानिदेशक बनने जा रहे थे. अभी यह प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी लेकिन इस बीच उनकी मुलाक़ात इंदिरा गांधी से हो गई. इस मुलाकात का सबसे दिलचस्प पहलू यह था कि तब कमलेश्वर ने बहुत दृढ़ता और ढीठता से उन्हें यह बताया था कि कैसे उन्होंने आपातकाल के खिलाफ ‘काली आंधी’ कहानी लिखी थी. और यह भी कि उन्होंने अपने सम्पादकीय और अन्य लेखों में आपातकाल का जमकर विरोध किया था. बताते हैं कि इंदिरा गांधी उनकी इस साफगोई से बहुत प्रभावित हुई थीं. तत्कालीन प्रधानमंत्री को इससे कोई आपत्ति नहीं थी और बकौल कमलेश्वर इंदिरा गांधी ने उनके कहा था कि वे दूरदर्शन पर भी उनके मतभेद को सुनना चाहेंगी.
यह कमलेश्वर की जिंदगी का एक अलग ही वाकया है. हालांकि इस मामले में उनकी काबिलियत जितनी भी अहम् हो, यह इंदिरा गांधी का भी बड़प्पन ही था कि उन्हें अपने एक विरोधी के इतने महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति से कोई आपत्ति नहीं थी. हालांकि इससे पहले तक अपनी इसी बेबाकी और विद्रोही स्वभाव के कारण कमलेश्वर कहीं भी ठीक तरह से टिक नहीं पाते थे और एक आवारगी उनके जीवन का जरूरी हिस्सा बनी रही. इन्हीं यातना के दिनों को उन्होंने अपने संस्मरणों ‘खंडित यात्राएं’, ‘जलती हुई नदी’, ‘यादों के चिराग’ में खूब भीगे मन से लिखा है. कमलेश्वर को लेकर चाहे जितनी कहानियां और विवाद साहित्य जगत में और उससे बाहर चलते आ रहे हों, पर साहित्य के लिए उनके समर्पण, उनके अनुराग और महत्वपूर्ण योगदान से कोई इनकार नहीं किया जा सकता।
कविता स्वयं नामचीन कथाकार हैं. वे पत्रकार भी रह चुकी हैं. यह आलेख उनके फेसबुक वॉल से लिया गया है.
(यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
यह भी पढ़ें -
Celebration of Republic Day: जब पश्चिम चरवाहा और घुमक्कड़ था, हमारे यहां इस उप-महाद्वीप में गणराज्य था
कहीं आप रिश्ते निभाते हुए अपनी शारीरिक सीमा का अतिक्रमण तो नहीं कर रहे
क्या आप जानते हैं, इन जानवरों के पास नहीं होता दिल, फिर कैसे रहते हैं जिंदा?
सोने से पहले इस मसाले का सेवन सेहत के लिए है बेहद फायदेमंद, रोजाना खाने से दूर होंगी कई समस्याएं
इन 5 राशियों को मिलता है सबसे ज्यादा धोखा, जल्दी भरोसा करना पड़ता है भारी
जब जापान की सड़कों पर सूट पहनकर निकली इंडियन लड़की, लोगों का रिएक्शन जान चौंक जाएंगे आप
IPL 2025 में किस टीम के साथ खेलेंगे KL Rahul? MS Dhoni और विराट कोहली की टीम के लिए कही ये बात
सर्दियों में इन कारणों से बढ़ता है Bad Cholesterol, जानें कंट्रोल करने के लिए उपाय
बुलडोजर एक्शन पर SC का बड़ा फैसला, कहा- सरकारी ताकत का दुरुपयोग न हो
Donald Trump के ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करेगा ये भारतीय, एलन मस्क भी निभाएंगे बड़ी भूमिका
Wasim Akram ने 55 हजार रुपए में कटवाए बिल्ली के बाल, फैंस ने कहा- ससुराल में हुआ 'धोखा', देखें Video
Astrology: महिलाएं अगर देती हैं गाली तो खराब होने लगता है ये ग्रह, दरिद्रता में कटता है जीवन
UP: पत्नी को छोड़ टीचर ने मुस्लिम युवती से की थी शादी, घर के बाहर खून से सनी मिली लाश
दफ्तर के तनाव से खराब हो गई है Mental Health, जानें Office Stress मैनेज करने के तरीके
KL Rahul ने क्यों छोड़ा LSG? Sanjeev Goenka के खुलासे पर केएल ने किया पलटवार
Imsha Rehman: पाकिस्तानी टिकटॉकर इम्शा रहमान का X रेटेड Video वायरल, अकाउंट को किया डिएक्टिवेट
SSC CHSL Admit Card 2024 Tier 2 जारी, ssc.gov.in पर इस डायरेक्ट लिंक से करें डाउनलोड
Bad Habit For Liver: सुबह की ये गलत आदतें लिवर को करती हैं खराब, इन तरीकों से तेजी से करें रिकवर
Vastu Tips For Tulsi: तुलसी लगाते समय ध्यान रखें इसकी दिशा और नियम, तभी मिलेगी कृपा और आशीर्वाद
Bigg Boss 18: शो में एक्ट्रेस चुम क्यों हुई अनकम्फर्टेबल? आखिर ऐसा क्या हुआ जिससे करण को हुई जलन
Meerapur bypoll: मुस्लिम वोटों के बंटने से किसका होगा फायदा? NDA ने बनाया नया सियासी समीकरण
UP: बहन के साथ करता था अश्लील हरकतें, चाचा ने भतीजे की कर दी हत्या, 4 आरोपी गिरफ्तार
Powerhouse of Protein: वेज प्रोटीन का पावरहाउस है टेस्टी डिश, चिकन-मटन भी हैं इसके आगे फेल
Delhi Pollution: बिगड़ गई दिल्ली-एनसीआर की आबो-हवा, स्मॉग से विजिबिलिटी हुई जीरो, 355 तक पहुंचा AQI
शरीर में दिखने वाले ये संकेत पथरी होने का हैं इशारा, नहीं दिया ध्यान तो किडनी भी होगी खराब
Uric Acid: कड़ाके की ठंड में तड़पा रहा जोड़ों का दर्द, तो आज ही बना लें इन 5 फूड से दूरी
Bihar By Election 2024: राजद की तीन और राजग की एक सीट पर मतदान आज, 38 उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर
Ministry Of Sex: इस देश में खोला जा रहा 'सेक्स मंत्रालय', कपल को दिया जाएगा खास ऑफर
लॉन्ग रेंज लैंड अटैक क्रूज मिसाइल का सफल परीक्षण, पलक झपकते ही दुश्मन कर देगी खात्मा, जानें खासियत
'प्लीज मिथुन दा का पर्स लौटा दो' रैली में कटी Mithun Chakraborty की जेब, देखें अपील का Viral Video
गुजरात: PMJAY के तहत बिल बढ़ाने के लिए अस्पताल ने जबरन की 7 लोगों की एंजियोप्लास्टी, 2 की मौत
Manipur: जिरीबाम मुठभेड़ के एक दिन बाद 2 की मिली डेड बॉडी, तीन महिलाओं समेत 3 बच्चे लापता
CM Yogi का कांग्रेस अध्यक्ष पर निशाना, 'वोट के लिए परिवार को जलाने वालों का नाम नहीं बता रहे खरगे'
रात को सोने से पहले ये एक काम करना कभी न भूलें, शरीर की सारी परेशानियां हो जाएंगी छूमंतर
CJI बनते ही संजीव खन्ना ने Supreme Court में उठाया सख्त कदम, वकीलों को मानना होगा अब ये खास नियम
'बटेंगे तो कटेंगे' के बीच शहजाद पूनावाला की टी-शर्ट बन गई चर्चा का विषय, Viral हो रहा फोटो
भारत में शराब पीने की सही उम्र का मामला पहुंचा Supreme Court, जानें क्या है पूरा केस
Haryana News : पलवल में PNG गैस पाइपलाइन में ब्लास्ट से लगी भीषण आग, एक की मौत
Bigg Boss 18 के घर में फिर हुआ घमासान, Rajat Dalal ने दी Vivian Dsena को धमकी, Video
'Beyonce' पर कोर्स शुरू कर Yale University ने भारत को दिया है एक जबरदस्त Idea!
Singham Again के बाद अब इस फिल्म में कैमियो करेंगे Salman Khan, सामने आई डिटेल्स
'अघाड़ी भ्रष्टाचार में सबसे बड़ी खिलाड़ी...', महाराष्ट्र में MVA गठबंधन पर पीएम मोदी का अटैक
पेट की समस्याओं से बचने के लिए अपनाएं ये 5 आदतें, रहेंगे हेल्दी और फिट
IPL 2025: मेगा ऑक्शन से पहले KKR ने किया नए कप्तान का ऐलान? नाम जानकर उड़ जाएंगे होश
कुंडली में इस ग्रह के कमजोर होने से बार-बार आता है गुस्सा, इन उपाय को आजमाकर कर सकते हैं मजबूत
Donald Trump ने तैयार किया शांति बहाली का प्रस्ताव, खत्म होगा Israel-Hamas संघर्ष?
Singham Again के इस रोल पर बनेगी फिल्म, Rohit Shetty ने किया खुलासा
पोषक तत्वों का पावरहाउस है मूंगफली, चमत्कारी फायदे जानकर हो जाएंगे हैरान
इस देश के लोग नहीं करते इंटरनेट का इस्तेमाल
आपके घर में हैं लकड़ी का मंदिर तो इन नियमों का रखें ध्यान, प्राप्त होगी भगवान की कृपा
Reverse Walking: साधारण टहलने की बजाय शुरू कर दें रिवर्स वॉकिंग, जानें उल्टा चलने के जबरदस्त फायदे
Bihar: बेवफा पत्नी ने प्रेमी संग मिलकर रचा खूनी षड्यंत्र, कई बार पति को स्कॉर्पियो कार से रौंदा
Shah Rukh Khan से पहले ये स्टार्स भी छोड़ चुके हैं स्मोकिंग, एक तो था चेन स्मोकर
UP: इंटरव्यू के लिए सिलवाने जा रहे थे कपड़े... तेज रफ्तार कार चालक ने मामूली कहासुनी पर घोंपा चाकू
Uric Acid: इन 3 पत्तों से बनी चटनी साफ कर देगी यूरिक एसिड, ऐसे करें तैयार
डायबिटीज मरीजों के लिए चीनी से भी ज्यादा फायदेमंद है कोकोनट शुगर, खाने से मिलेंगे कई लाभ
Shah Rukh Khan को धमकी देने वाला शख्स गिरफ्तार, पुलिस कर रही पूछताछ
Akhilesh Yadav ने फिर किया दावा, 'जाने वाली है CM Yogi Adityanath की कुर्सी'