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क्या आप Baba Nagarjun की पत्नी अपराजिता देवी को जानते हैं?

प्रख्यात लेखिका उषाकिरण खान का उनका नागार्जुन से आत्मीय रिश्ता रहा है. उषाकिरण बता रही हैं कि बाबा नागार्जुन की पत्नी अपराजिता की जिंदगी कैसी थी.

क्या आप Baba Nagarjun की पत्नी अपराजिता देवी को जानते हैं?
Nagarjuna with wife aprajita.


कौन है जो बाबा नागार्जुन को नहीं जानता लेकिन कितने लोग उनकी पत्नी के बारे में जानते हैं? जो व्यक्ति दिन रात घुमक्कड़ी करता रहा, फक्कड़ जीवन गुजारता रहा है परिवार और पत्नी से दूर साहित्यिक यात्राएं देश में करता रहा, उसके जीवन साथी ने कितना त्याग और संघर्ष किया होगा इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता. चर्चा केवल नागार्जुन की होती रही. उनके क्रांतिकारी छवि का गुणगान होता रहा पर अपराजिता की किसी ने सुध नहीं ली. क्या आपने सोचा है अपराजिता जी ने कैसे उनके साथ निबाहा होगा? कैसे परिवार की जिम्मेदारी निभाई होगी?

नागार्जुन जैसे जीनियस फक्कड़ कवि की पत्नी होना तथा प्रेम पूर्वक निर्वाह करना सहज नहीं था. सो अक्षर ज्ञान से रहित अपराजिता स्वयं विशिष्ट थी इसीलिये कवि संग सुखपूर्वक निर्वाह हुआ.
नागार्जुन दरभंगा जिला के पंडितों के प्रसिद्ध गांव तरौनी के वासी थे. उच्चकुलीन ब्राह्मण थे. उनका विवाह बाल्यकाल में ही मधुबनी के हरिपुर बख्शी टोले की अपराजिता से हुआ. नागार्जुन की माता का देहांत हो गया था, पिता घूम-घूमकर पूजा-पाठ कराते थे. पुत्र साथ रहते. 

नागार्जुन को पढ़ने को तत्कालीन प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र नवानी (मधुबनी) भेजा गया. वहां से उन्होंने प्रथमा पास किया, इलाके में टॉप किया. पर पिता उन्हें पंडिताई में लगाना चाहते थे. तरौनी में उनके हिस्से की जो भी जमीन थी वह बेचकर खा रहे थे. अपराजिता सम्पन्न किसान की बेटी थीं. नागार्जुन सतत ऊर्ध्वगामी लहर थे, किसी के बांधे न बंधते. वह दरभंगा होते हुए काशी पहुंचे. वहां से कई तरह के काम करते-करते वे अनेक लोगों के सम्पर्क में आए.

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'मैं नहीं पोछूंगी सिंदूर, न उतारूंगी चूड़ियां'

नागार्जुन श्रीलंका चले गए. बौद्ध हो गए. राहुल सांकृत्यायन के साथ तिब्बत गए. किसान आंदोलन में सक्रिय हुए. बहुत कुछ किया पर पलटकर गांव की ओर न आए. उनके अस्तित्व का नहीं पता था किसी को. चौदह साल बीत गए. घटश्राद्ध की चर्चा होने लगी. अपराजिता तन कर खडी हो गईं. मैं न पोछूंगी अपना सिंदूर, अपनी चूडियां, न उतारुंगी. जबतक मैं उसे मृत न देखूंगी न मानूंगी. 

अपराजिता के विश्वास का बल था कि नागार्जुन सहज जीवन में लौट आए. परिवार बसाया. एक सम्पन्न किसान की बेटी विपन्न पंडित के घर साग पात सब्जी भाजी उगाती, संतान पालती रहीं. नागार्जुन कविता उपन्यास लिखते क्रांति करते रहे. अपराजिता देवी जब पटना इलाहाबाद या लहेरिया सराय में रहतीं उनका अपना आभा मंडल होता. नागार्जुन अपने स्नेहवश बनाए बेटों-दामादों को कुछ भी कह सकते थे पर अपराजिता देवी के लिये सभी अवधनरेश होते. अपराजिता देवी कुशल गृहिणी थीं. स्वादिष्ट मैथिली भोजन बनातीं. 

कई बार पटना में मुझसे कहते कि आज तुम काकी की तरह की रेहू मछली बनाओ. मैंने वह सब उनसे ही सीखा था. रक्तसंबंध में मैं उनकी कोई नहीं लगती पर उन्होंने सदा मुझे तथा प्रेमलता को मां का प्यार दिया.

नागार्जुन की हर नायिका को पहचानती थीं अपराजिता

एक विशेष बात कि अपराजिता देवी नागार्जुन के नायक-नायिकाओं को बखूबी पहचानती थीं. बल्कि मैं तो कहना चाहूंगी कि बाबा की रचनाओं के कथानक की पक्की स्रोत भी वही थीं.
आखिरी बार मेरी मुलाकात लहेरिया सराय में हुई, नागार्जुन अशक्त हो चले थे. कष्ट बढ गया था. 

अपराजिता ने कहा पहले मैं रुखसत होऊंगी. वैसा ही हुआ. अपने मंझले बेटे के यहां वह पटना आईं और यहीं उनका निधन हो गया. 19-2-1997  का दिन मैं भूल नहीं सकती.

कुछ कट्ठे जमीन को , वहाँ बने खपरैल मकान को, आँगन में पनपे नीम को, साझा तालाब को धुरी बनाकर घर बनाकर रखने वाली अपराजिता देवी न होतीं तो नागार्जुन अलहदा इंसान होते. मात्र राजनीति व्यंग्य और संत्रास के कवि  होते. प्रेम के अकुंठ भाव के नहीं होते. वह तो अपराजिता का अटल विश्वास था जिसने वियोगी कवि को जन्म दिया. जिसने सधे हाथों से उनकी आखिरी बार मांग भरी, और अज की भांति रोया था. कालिदास सच-सच बतलाना कविता के अज वही थे.

Usha Kiran Khan.

(उषाकिरण खान प्रसिद्ध साहित्यकार हैं. उनकी फेसबुक वॉल से यह लेख यहां साभार प्रकाशित की जा रही है.)

(नोट: यहां प्रकाशित विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)

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