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नहीं रहे बिरजू महाराज : ढह गया कथक के लखनऊ घराने का आकाशदीप स्तम्भ

पिछले कई महीनों से वह किडनी की समस्या से जूझ रहे थे, मगर उनकी तबीयत इतनी भी गंभीर नहीं थी.

नहीं रहे बिरजू महाराज : ढह गया कथक के लखनऊ घराने का आकाशदीप स्तम्भ
Pandit Birju Maharaj Death

डीएनए हिंदी: यकीन नहीं होता कि बिरजू महाराज अब हमारे बीच नहीं रहे. उनके पौत्र स्वरांश मिश्र के रुआंसे स्वर से हुई पुष्टि के बावजूद यकीन नहीं होता कि पद्मविभूषण सहित राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय महत्व के अनेक अलंकरणों से अलंकृत तथा बेशुमार पुरस्कारों से पुरस्कृत पं. बिरजू महाराज (मूलनाम : बृजमोहन मिश्र • 4-फरवरी-1937 — 17-जनवरी-2022) जिन्होंने अपने ज़माने में कथक नृत्य की शास्त्रीयता को बरक़रार रखते हुए भी उसमें बारीक-से-बारीक भाव-भंगिमाओं की कला को आसमान पर पहुंचा दिया, कथक के लखनऊ-घराने का वह आकाशदीप अब बुझ गया.

हालांकि पिछले कई महीनों से वह किडनी की समस्या से जूझ रहे थे, मगर उनकी तबीयत इतनी भी गंभीर नहीं थी. रविवार की रात अपनी पौत्री व शिष्या के साथ बैठे वह हमेशा की तरह कथक की बारीकियों पर चर्चा कर रहे थे, उन्होंने तब सरोद भी बजाया था; इसी बीच उन्हें कुछ असहज-सा महसूस हुआ. फ़ौरन उन्हें अस्पताल ले जाया गया, किन्तु तब तक देर हो चुकी थी, कथक की अस्मिता का यह मौजूदा शिखर काल-कवलित हो चुका था. डॉक्टरों का कहना है कि उनकी मृत्यु हृदयाघात के कारण हुई है.

Birju Maharaj

अभी कोई तीन दिन पहले उनके भतीजे तथा शिष्य पं. मुन्ना शुक्ल (जो स्वयं एक दक्ष कथक-गुरु के रूप में जाने जाते रहे हैं) का देहान्त हुआ है कि अब स्वयं बिरजू महाराज का जाना जैसे कि कथक के चारों घरानों (लखनऊ, जयपुर, बनारस, रायगढ़) में अपनी कमनीयता और कलात्मक साधना के लिए सर्वाधिक उल्लेखनीय लखनऊ-घराने पर वज्रपात ही हो गया है. स्वयं में संस्था बिरजू महाराज चोटी के कथक-गुरु होने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय महत्व के कथक-नर्तक तथा नृत्य-रचनाकार (कोरियोग्राफर) भी रहे हैं; वह समर्थ शास्त्रीय गायक भी थे और अपने ही ढंग के भावपूर्ण-लयनिबद्ध कवि भी तथा तबला, सितार, सारंगी, सरोद सहित अनेक वाद्यों को भी वह पूरी कुशलता से बजा लेते थे किन्तु सबसे बढ़कर वह एक आला इंसान थे. 

Birju Maharaj death

स्नेहिल, मिलनसार, मनुष्यता से भरपूर, घमंड से दूर, पानी-पानी स्वभाव वाले, आत्मीयता से लबरेज़. उनके बारे में दशकों तक का जिया-गुज़रा बहुत-कुछ याद आता है, उनकी सन्निधि में बीते अनगिन क्षण, ढ़ेरों संस्मरण...लिखने-कहने को बहुत-कुछ लेकिन उन सबकी चर्चा फिर कभी. फ़िलहाल तो उनकी स्मृति को नमन, कथक के प्रति उनके समर्पण को नमन, उनकी कला-साधना व वैदुष्य को नमन, मनुष्यता को उनके ललित योगदान को नमन... और उनके प्रति विनम्र श्रद्धांजलि तथा उन आत्मा की शान्ति के लिए प्रभु से प्रार्थना. साथ ही, प्रार्थना इस बाबत भी कि कविता महाराज, अनीता महाराज, ममता महाराज, जयकिशन महाराज, दीपक महाराज, स्वरांश मिश्र सहित उनके सभी परिजनों तथा शाश्वती सेन, प्रताप पवार, प्रभा मराठे सहित उनके सभी शिष्य-शिष्याओं को प्रभु यह वज्राघात सहने की शक्ति प्रदान करे.

(सुनीता श्रीनीति लेखिका हैं. यह लेख उनकी फ़ेसबुक वॉल से यहां साभार प्रकाशित किया जा रहा है)