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यूपी चुनाव में जिन्ना की एंट्री, क्या बढ़ेंगी अखिलेश यादव की मुश्किलें?

समाजवादी पार्टी यूपी में मुस्लिम-यादव समीकरण का सफल प्रयोग कर चुकी है. सवाल यह है कि क्या बीजेपी इसी समीकरण पर सपा को घेरेगी?

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यूपी चुनाव में जिन्ना की एंट्री, क्या बढ़ेंगी अखिलेश यादव की मुश्किलें?

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (फाइल फोटो-PTI)

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डीएनए हिंदी: राजनीति में शब्दों के बड़े मायने होते हैं. कई बार चुप्पी फायदेमंद होती है और बोलने से नुकसान हो जाता है. विपक्षी पार्टियां इसी ताक में होती हैं कि कब कोई नेता विवादित बोले और उसे भुना लिया जाए. यूपी जैसे चुनावी राज्य में गलत बोलने का मतलब बड़ा नुकसान कराना है. अखिलेश यादव से एक गलती हो गई है जिस पर वह ऐसे घिरे हैं कि आलोचनाओं से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल पा रहा है. देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारियों से उन्होंने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की तुलना कर दी है.

अखिलेश यादव भारतीय जनता पार्टी (BJP) कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) जैसी तमाम पार्टियों और नेताओं के निशाने पर हैं. ऐसे वक्त में जब यूपी में विधानसभा चुनाव बेहद नजदीक हैं तब अखिलेश यादव का हरदोई में पार्टी की एक रैली में मुहम्मद अली जिन्ना का महिमामंडन कर बैठना सबको हैरत में डाल रहा है. 31 अक्टूबर को हुई एक रैली में उन्होंने जिन्ना की तुलना सरदार वल्लभ भाई पटेल, महात्मा गांधी और नेहरू से कर दी थी. 

सरदार वल्लभभाई पटेल, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और (मोहम्मद अली) जिन्ना ने एक ही संस्थान से पढ़ाई की और बैरिस्टर बने और उन्होंने आजादी दिलाई. -अखिलेश यादव.

 

प्रसंग और तथ्य कुछ भी हों लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना भारत में एक विलेन के तौर पर ही देखे जाते हैं जिनकी वजह से देश का बंटवारा हुआ. बंटवारा भी शांतिपूर्ण तरीके से नहीं लाशों की ढेर पर हुआ. बंटवारे की त्रासदी की गवाही इतिहास से लेकर जनश्रुतियां तक देती हैं. ऐसे में लोगों का गुस्सा अखिलेश यादव पर फूटना लाजमी है.

किन विपक्षी पार्टियों/नेताओं के निशाने पर हैं अखिलेश यादव?

जिन्ना पर बयान देकर अखिलेश यादव बुरे फंसे हैं. मायावती ने अखिलेश यादव के बयान पर कहा था कि सपा मुखिया द्वारा जिन्ना को लेकर दिया गया बयान सपा और बसपा की मिलीभगत है. अखिलेश यादव को सीएम योगी, स्वतंत्र देव सिंह, मायावती, मोहसिन रजा जैसे कई नेता घेर चुके हैं.

1. योगी आदित्यनाथ

सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अखिलेश यादव का बयान शर्मनाक है. सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत की एकता और अखंडता के शिल्पी हैं. एसपी प्रमुख की विभाजनकारी मानसिकता सामने आ गई जब उन्होंने जिन्ना को समकक्ष रख के सरदार वल्लभ भाई पटेल की तुलना की.

2. मायावती

मायावती ने ट्वीट किया, 'सपा मुखिया द्वारा जिन्ना को लेकर कल हरदोई में दिया गया बयान व उसे लपक कर भाजपा की प्रतिक्रिया यह इन दोनों पार्टियों की अंदरुनी मिलीभगत व इनकी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है ताकि यहां यूपी विधानसभा आमचुनाव में माहौल को किसी भी प्रकार से हिन्दू-मुस्लिम करके खराब किया जाए.'

3. असदुद्दीन ओवैसी

असदुद्दीन ओवैसी ने भी अखिलेश यादव को चुनवी समर में घेरा. ओवैसी ने कहा, 'अगर अखिलेश यादव सोचते हैं कि इस तरह के बयान देकर वह लोगों के एक वर्ग को खुश कर सकते हैं, तो मुझे लगता है कि वह गलत हैं. उन्हें खुद को शिक्षित करना चाहिए और कुछ इतिहास पढ़ना चाहिए. अखिलेश यादव को यह समझना चाहिए कि भारतीय मुसलमानों का मुहम्मद अली जिन्ना से कोई लेना-देना नहीं है.'

4. स्वतंत्र देव सिंह

स्वतंत्र देव सिंह बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं. जब अखिलेश यादव ने ऐसा बयान दिया तो उन्होंने कहा कि सपा हमेशा से ही आतंकियों और देशद्रोहियों की सरपरस्त रही है.

4. प्रमोद कृष्णम 

कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम ने मोहम्मद अली जिन्ना को देश का गद्दार बताया था और कहा था कि भगवान अखिलेश यादव को सदबुद्धि दें. 

जिन्ना का 'जिन्न' बन गया चुनावी मुद्दा

अखिलेश यादव का जिन्ना की तारीफों का यह बयान उनकी चुनावी मुश्किलें बढ़ाने वाला है. अखिलेश यादव का यह बयान न तो भारतीय मुसलमानों को रास आया है न ही हिंदुओं को. मुस्लिम नेता भी अखिलेश यादव की इस प्रतिक्रिया से नाराज हैं. वहीं बीजेपी उनके इस सियासी बयान को चुनाव में भुनाने की कोशिश करेगी. बीजेपी समाजवादी पार्टी पर पहले से ही मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही है. खुद यूपी बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से लेकर योगी आदित्यनाथ तक इस बयान पर अखिलेश यादव को घेर चुके हैं. बीजेपी पूरे चुनाव में इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश जरूर करेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद विपक्षी पार्टियों की गलतबयानी के 'टर्म' बेहद सलीके से याद रखते हैं जिनका इस्तेमाल वे चुनावी रैलियों में जरूर करते हैं. ऐसे में अखिलेश यादव ने जिन्ना पर बयान देकर एक सेल्फ गोल तो दाग ही लिया है.

हिंदूवादी नेताओं के निशाने पर रहेगी सपा
 

सपा अक्सर अपने अतीत की वजह से हिंदूवादी नेताओं के निशाने पर रहती है. दरअसल 30 अक्टूबर 1990 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद जा रहे हिंदू साधू-संत और कारसेवकों पर गोली चलाई गई थी. इस गोलीबारी में 5 लोगों की मौत हो गई थी. घटना के प्रतिरोध में 2 नवंबर को हजारों कारसेवक अयोध्या में हनुमानगढ़ी के करीब पहुंचे. वे जब बाबरी मस्जिद के बेहद करीब पहुंचे तब सुबह का वक्त था. लालकोठी की गली में पुलिस ने कारसेवकों से रुकने की अपील की. कारसेवक नहीं रुके, पुलिस ने कारसेवकों पर गोली चला दी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक डेढ़ दर्जन से ज्यादा लोगों की जान चली गई. सूबे के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह थे. आदेश उनकी ओर से ही आया था. तब से ही उन्हें हिंदूवादी संगठन 'मुल्ला मुलायम' भी कहने लगे. बीजेपी आज भी मुलायम सिंह के इस फैसले को लेकर चुनावों में सपा को घेरती है. योगी आदित्यनाथ खुद बेहद मुखर रहे हैं इस मुद्दे पर. अखिलेश चाहकर भी एंटी हिंदू छवि से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.

नए अखंड भारत के सूत्रधार हैं सरदार पटेल

सरदार पटेल ने नए भारत के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्होंने करीब 562 छोटी-बड़ी रियासतों को भारत से जोड़ा था. हैदराबाद और जूनागढ़ और लक्ष्यद्वीप समूहों को भी भारत से सरदार पटेल ने ही जोड़ा था. महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल तीन त्रिमूर्तियों के साझा सोच ने देश का ढांचा तैयार किया था. ऐसे में सरदार से जिन्ना की तुलना कर अखिलेश खुद घिर गए हैं. भारतीय जनता पार्टी चुनावी समीकरण बैठाने में माहिर है. पार्टी के रणनीतिकार जानते हैं कि कहां, किसे किस मुद्दे पर घेरा जा सकता है. यही वजह है कि जिन्ना की सरदार पटेल से तुलना भारी पड़ने वाली है. 

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