चुनाव
Delhi MCD Election: 15 सालों बाद MCD में बीजेपी को हार देखना पड़ा है. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि बीजेपी से कहां-कहां चूक हुई...
Updated : Dec 07, 2022, 03:25 PM IST
डीएनए हिन्दी: दिल्ली में एमसीडी चुनाव (Delhi MCD Election) के नतीजे लगभग आ गए हैं. अरविंद केजरीवाल (Arvind kejriwal) की आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) को बहुमत मिला चुका है. 15 सालों से एमसीडी पर काबिज भारतीय जनता पार्टी 105 सीटों के आसपास सिमटी दिख रही है. देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस डबल डिजिट के लिए संघर्ष करती दिख रही है. बीजेपी ने इस चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी थी. हर हर हाल में एमसीडी गंवाना नहीं चाहती थी. लेकिन, तमाम रणनीतिक कोशिशों के बावजूद बीजेपी एमसीडी में हारती दिख रही है.
यह हार सिर्फ एमसीडी की नहीं है, इसका असर पूरे देश पर पड़ने वाला है. बीजेपी इ्से बखूबी समझ रही है. यही वजह है कि उसने पूरी ताकत झोंक दी थी. आइए हम हम समझने की कोशिश करते हैं कि चुनावी रणनीति में बीजेपी से कहां चूक हुई और उसे क्या-क्या सबक लेने की जरूरत है.
नेगेटिव कैंपेन बना हार का कारण
कहने को एमसीडी स्थानीय निकाय का चुनाव है. लेकिन, देश की राजधानी होने की वजह से इसका इसका व्यापक असर पड़ता है. इस चुनाव का पॉलिटिकल मैसेज हर जगह जाता है. एमसीडी की चुनावी रणनीति को लेकर बीजेपी शुरू से ही भटकी नजर आई. बीजेपी चुनाव में लोगों की आम समस्याओं को मु्द्दा न बनाकर करप्शन के मुद्दे पर केजरीवाल की दिल्ली सरकार को घेरने में लगी रही.वहीं, दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी ने साफ-सफाई और गंदगी को बड़ा मुद्दा बनाया. कूड़े का पहाड़ इस चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बना और केजरीवाल की पार्टी को इसका फायदा भी मिलता नजर आ रहा है.
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प्रदेश स्तर पर चेहरे की कमी
दिल्ली की राजनीति में बीजेपी के भीतर चेहरा/नेतृत्व का आभाव. आज में की तरीख में बीजेपी के पास पूरे देश में सिर्फ एक चेहरा है, नरेंद्र दामोदर दास मोदी का. यानी देश प्रधानमंत्री. पार्टी हर चुनाव में कमोबेश इसी चेहरे पर वोट मांगती है. एमसीडी चुनाव में भी यही देखने को मिला. सभी पार्षद मोदी के नाम पर वोट मांग रहे थे. अब समय आ गया है कि बीजेपी स्थानीय स्तर पर नेतृत्व को बढ़ावा दे. आखिर मोदी के नाम पर वह कब तक वोट मांगेगी. वैसे भी मोदी 73 साल के हो गए हैं. बीजेपी ने खुद ही यह तय किया है कि 75 से ऊपर के नेताओं को सक्रिय राजनीति से संन्यास लेना चाहिए.
अपनी उपलब्धियां गिनाने में नाकाम रही बीजेपी
बीजेपी ने एक और गलती की. इस चुनाव में उसका कैंपेन अपने काम पर कम था, दूसरों की खामियां गिनाने पर ज्यादा था. यही रणनीति उसे महंगी पड़ गई. दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी ने स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता से उठाया. उसने लोगों की समस्याओं के खुद को जोड़ा और रणनीति में सफल भी रही.
टिकट बंटवारे में गड़बड़ी के आरोप
टिकट बंटवारे को लेकर भी कई तरह की खबर सामने आई थीं. बीजेपी पर यह आरोप लगे कि उसने कार्यकर्ताओं को दरकिनार करके बाहरी लोगों को तवज्जो दी. कुछ पुराने कार्यकर्ताओं ने बीजेपी के ऊपर कांग्रेसीकरण के आरोप भी लगा दिए. इसकी वजह से बड़ी संख्या में बीजेपी के बागी मैदान में उतर गए और कई कार्यकर्ता घर में बैठ गए. बीजेपी की संगठन से एक और गलती हुई. उसने स्थानीय कार्यकर्ताओं को चुनाव में न लगाकर देश के दूसरे राज्यों से बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को बुलाकर प्रचार में उतार दिया.
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बाकी महंगाई ने मार डाला...
दिल्ली में बड़ी संख्या में ऐसी आबादी है जो रोज कमाती और रोज खाती है. ये लोग केजरीवाल से बहुत खुश हैं. इन्हें केजरीवाल सरकार पानी और बिजली के लिए सब्सिडी मुहैया कराती है. फिलहाल देश में महंगाई चरम पर है. बढ़ती महंगाई ने लोगों की रसोई का बजट बिगाड़ दिया है. इसके लिए लोग कहीं न कहीं केंद्र सराकर को जिम्मेवार मानते हैं. ऐसे में केजरीवाल सरकार द्वारा मिलने वाली बिजली-पानी पर सब्सिडी उन्हें बहुत राहत देती है.
बीजेपी के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी
एमसीडी में बीजेपी 15 सालों से सत्ता में थी. उसके खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी भी था. बीजेपी के पार्षदों पर काम न करने और करप्शन में लिप्त रहने के आरोप लगे. दिल्ली में जल-जमाव और साफ-सफाई एक बड़ा मुद्दा बना. पिछले कई सालों से बीजेपी के कब्जे वाली एमसीडी इन समस्याओं का हल निकालने में नाकाम थी.
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