Twitter
Advertisement
  • LATEST
  • WEBSTORY
  • TRENDING

हिमाचल प्रदेश में क्या हैं प्रमुख चुनावी मुद्दे, कौन से फैक्टर्स करेंगे असर, किन नारों पर रहा जोर? जानिए सबकुछ

हिमाचल प्रदेश में कुल 68 विधानसभा सीटें हैं. कांग्रेस बनाम बीजेपी की सीधी लड़ाई में कौन से दूसरे फैक्टर्स भी हैं असरदार, आइए समझते हैं.

Latest News
हिमाचल प्रदेश में क्या हैं प्रमुख चुनावी मुद्दे, कौन से फैक्टर्स करेंगे असर, किन नारों पर र��हा जोर? जानिए सबकुछ

हिमाचल प्रदेश के वोटर. (तस्वीर-PTI)

FacebookTwitterWhatsappLinkedin

TRENDING NOW

डीएनए हिंदी: हिमाचल प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों पर वोटिंग आज है. भारतीय जनता पार्टी (BJP), कांग्रेस (Congress) और आम आदमी पार्टी (AAP) ने युद्ध स्तर पर इस चुनाव में जीत के लिए कैंपेनिंग की है. हिमाचल प्रदेश का अब तक ऐसा रिवाज रहा है कि हर 5 साल में सरकार बदल जाती है. बीजेपी जहां कह रही है कि यह रिवाज टूटेगा तो कांग्रेस को उम्मीद है कि जनता रिवाज दोहराएगी.

कांग्रेस और बीजेपी के सीधे मुकाबले वाले राज्य में आम आदमी पार्टी थर्ड फ्रंट बनने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस और BJP दोनों के वोटरों में सेंध लगाने की कोशिश AAP कर रही है. हिमाचल प्रदेश में कैसे रहे हैं पहले के चुनाव, किन मुद्दों पर लोगों का जोर रहेगा, कौन से फैक्टर्स असरदार साबित होंगे, आइए समझते हैं.

Himachal Assembly Elections: हिमाचल में करीब एक तिहाई SC-ST वोटर, जानिए क्या है दलितों के वोट का पैटर्न

कैसा था 2017 का विधानसभा चुनाव?

साल 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला था. हिमाचल प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों में बीजेपी को 44 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस ने 21 सीटें हासिल की थी. अन्य के पास कुल 3 सीटें हैं.
 
2017 में किन सीटों पर था सबसे कम जीत का अंतर?

साल 2017 के विधानसभा चुनावों में कुछ सीटों पर जीत का अंतर बेहद कम रहा था कांग्रेस उम्मीदवार और डिप्टी स्पीकर जगत सिंह नेगी किन्नौर विधानसभा सीट से महज 120 वोटों के अंतर से जीते थे. उन्होंने बीजेपी के तेजवंत सिंह नेगी को शिकस्त दी थी. डलहौजी विधानसभा सीट पर तत्कालीन विधायक आशा कुमारी अपनी सीट बचाने में कामयाब हो गई थीं. उन्होंने बीजेपी के डीएस ठाकुर को महज 556 वोटों से हरा दिया था. 

गुजरात में AAP  के हाथ लग गया है 'OTP', अरविंद केजरीवाल ने बताया क्या है फॉर्मूला

कांग्रेस के ही एक अन्य उम्मीदवार विनोद सुल्तानपुरी मौजूदा विधायक डॉ. राजीव सेहजन से महज 442 सीटों से हार गए थे. वहीं तत्कालीन मंत्री कर्नल (रि.) धानी राम शांडिल ने अपने दामाद और बीजेपी उम्मीदवार सुरेश कश्यप को 671 वोटों से हरा दिया था. मुख्य संसदीय चिव इंद्र दत्त लखनपाल ने बड़सर विधानसभा सीट पर बीजेपी के बलदेव शर्मा को 439 वोटों से हरा दिया था.

2017 में किन सीटों पर मिली बड़ी जीत?

कुछ सीटों पर उम्मदीवारों ने बड़ें अंतर से जीत हासिल की थी. विनोद कुमार ने नाचन विधानसभा सीट से 15,896 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. यह पहाड़ी राज्य का सबसे बड़ा आंकड़ा था. 

बीजेपी के स्टार नेता जयराम ठाकुर ने 11,354 वोटों से जीत हासिल की थी. वह सिराज विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे. बीजेपी नेता विपिन परमान ने सुल्लाह विधानसभा सीट से 10,291 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. घुमारवीं विधानसभा सीट से बीजेपी नेता राजेंद्र गर्ग ने तत्कालीन विधायक राजेश धरमानी को 10,435 वोटों से हरा दिया था. बैजनाथ विधानसभा सीट से बीजेपी के मुखराम 12,669 वोटों से जीते थे.

सेब के व्यापार किन सीटों पर बना चुनावी मुद्दा?

हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सेब के कारोबार का असर देखने को मिलता है. सेब के व्यापारियों की राजनीतिक दखल भी जगजाहिर है. शिमला क्षेत्र के 15 से 20 विधानसभाओं पर सेब व्यापारियों की लॉबी काम करती है. भारतीय जनता पार्टी सरकार से सेब व्यापारी खुश नहीं हैं. इस विधानसभा चुनाव में उनकी नाराजगी बीजेपी के खिलाफ माहौल तैयार कर सकती है. 

हिमाचल में पुरानी पेंशन योजना, कितने सीटों पर डालेगी असर?

कांग्रेस ने पुरानी पेंशन योजना को मुद्दा बनाने की कोशिश की थी. अपने चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी और सचिन पायलट जैसे नेताओं ने पुरानी पेंशन योजना की मांग की थी और यह कहा था कि बीजेपी सरकार ऐसा नहीं करने वाली है. 

सरकारी कर्मचारी बीजेपी से बहुत खुश नहीं हैं. पेंशन योजना को विपक्ष मुद्दा बनाने में सफल रहा है. सरकारी कर्मचारियों का एक तबका जो चुनाव में बड़ा रोल प्ले कर सकता है, वह बीजेपी से नाराज है. 

हिमाचल में चुनाव प्रचार का आखिरी दिन, वादों की बौछार कर रही कांग्रेस, क्या BJP पर बढ़ेगा दबाव?

खुद बीजेपी नेता अविनाश राय खन्ना यह साफ कर चुके हैं कि कम से कम 2.25 लाख लोग सरकारी कर्मचारी रहे हैं. दूसरे 1.90 लाख कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं, जो पेंशन से अपनी आजीविका चलाते हैं.

ऐसे राज्य में, जहां महज 55 लाख वोटर हैं, वहां सरकारी कर्मचारियों की इतनी बड़ी संख्या चुनावों को प्रभावित करने की ताकत रखती है. यह बीजेपी की टेंशन बढ़ा भी सकती है.  

हिमाचल प्रदेश में जाति फैक्टर कितना असरदार? 

हिमाचल प्रदेश में राजपूतों का दबदबा है. मंडी, शिमला, कुल्लू, हमीरपुर और कांगड़ा लोकसभा क्षेत्रों में इनकी बड़ी आबादी रहती है. राज्य में राजपूतों के दबदबे की ओर इशारा इस बात से भी मिलता है कि हिमाचल प्रदेश के कुल 6 मुख्यमंत्रियों में से 5 मुख्यमंत्री राजपूत रहे हैं. वाईएस परमार, ठाकुर राम लाल, वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल और जयराम ठाकुर राजपूत हैं.
 
सिर्फ मुख्यमंत्री पद तक ही नहीं, टिकट बंटवारे में भी राजपूतों का दबदा देखने को मिलता है. सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने कुल 28 राजपूत उम्मीदवार उतारे हैं. राज्य में राजपूत आबादी करीब 32 फीसदी है. 

क्या है अनूसूचित जनजाति की मांग?

हाटी समुदाय के लोग आदिवासी दर्जा हासिल करने की मांग कर रहे हैं. यह समुदाय हिमचाल प्रदेश के कुल 9 विधानसभा सीटों पर असर डालता है. हाटी समुदाय शिलाई, पांवटा, रेणुका और पच्छाद विधानसभा सीटों पर बेहद प्रभावी है लेकिन 9 सीटों पर इनका असर देखने को मिलता है. शिमला और सिरमौर जिले में भी हाटी समुदाय के वोटर प्रभावी हैं. 

OBC वोटर भी बदल सकते हैं सत्ता का खेल

राज्य में 13 फीसदी आबादी पिछड़े वोटर्स का है. कई सीटों पर ये बेहद प्रभावी हैं. कांगड़ा जिले में ओबीसी आबादी सबसे ज्यादा है. 55 फीसदी ओबीसी आबादी कांगड़ा में रहती है. ओबीसी का दबदबा कुल 18 विधानसभा सीटों पर है इनमें से 9 सीटें कांगड़ा क्षेत्र में हैं.  

दलित फैक्टर कितना है असरदार?

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में दलित वोटरों की कुल संख्या 17,29,252 है. हिमाचल प्रदेश की कुल आबादी 68,64,602 है. हिमाचल प्रदेश की कुल आबादी में दलितों की संख्या 25 फीसदी है. सिरमौर में 30 फीसदी दलित आबादी रहती है. यहां भेदभाव भी एक प्रमुख चुनावी मुद्दा है. 

लाहौल-स्पीति जिले में अनुसूचित जनजातियों की एक बड़ी आबादी रहती है. यहां की 81 फीसदी आबादी आदिवासी है. किन्नौर में 57 फीसदी आबादी आदिवासी है. सिरमौर में कुल 30.34 फीसदी दलित आबादी है.  मंडी में 29 फीसदी, सोलन में 28 फीसदी, शिमला में 26 फीसदी अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं. 

हिमाचल प्रदेश में क्या रहे हैं चुनावी नारे? 

हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार का आखिरी दिन गुरुवार था. चुनाव प्रचार के दौरान ओल्ड पेंशन स्कीम, जोइया मामा मानदा नाए, एंप्लाई रि सुनदा नाए' जैसे नारे लगे. इसका अर्थ यह है कि जयराम अंकल कर्मचारियों की न तो मानते हैं न सुनते हैं. 

बीजेपी ने चुनाव प्रचार के लिए गढ़े कौन से नारे?

1. जनता ने कर दिया तय, फिर हिमाचल में भाजपा की विजय.
2. जन-जन की यही आवाज, बदलेगा रिवाज.
3. नया रिवाज बनाएंगे, फिर भाजपा लाएंगे. 
4. देखो-देखो कौन आया, शेर आया शेर आया.
5. सोच ईमानदार, काम दमदार. 
6. हिमाचल की पुकार, फिर भाजपा सरकार.
7. हिमाचल से जुड़े हैं, हिमाचल के लिए खड़े हैं. 
8. न तख्त बदलेगा न ताज बदलेगा.

किन नारों पर कांग्रेस का रहा जोर?

कांग्रेस ने इन नारों के जरिए चुनाव प्रचार किया- 

1. महंगाई की मार, कांग्रेस अबकी बार.
2. वादा किया है वादा निभाएंगे, कांग्रेस को सत्ता में लाएंगे. 
3. महंगी गैस महंगा तेल, यह है भाजपा का 5 साल का खेल. 
4. बेरोजगारों को नहीं दे सके रोजगार, पुलिस भर्ती में हुआ भ्रष्टाचार 

हिमाचल प्रदेश में क्या है आपराधिक उम्मीदवारों का हिसाब-किताब?

हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में दागियों की भरमार है. राकेश सिंह ठियोग विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. CPI (M)  नेता राकेश सिंह के खिलाफ कुल 30 आपराधिक मामले दर्ज हैं. कुलदीप सिंह तंवर भी CPI (M) उम्मीदवार हैं और उनके खिलाफ 20 केस दर्ज हैं. आम आदमी पार्टी उम्मीदवार मनीष ठाकुर के खिलाफ कुल 19 केस दर्ज हैं. बीजेपी के लोकेंद्र कुमार के खिलाफ 11, कांग्रेस के विक्रमादित्य के खिलाफ 11 केस दर्ज हैं.

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.

Advertisement

Live tv

Advertisement
Advertisement