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UP Election 2022: बड़े नेताओं का दलबदल, जानिए फायदे-नुकसान का सियासी खेल

UP Election 2022: सपा और भाजपा के नेताओं के बीच दल-बदल का राजनीतिक खेल शुरू हो गया है और दोनों तरफ से दल-बदल के कारण भी गिनाए जा रहे हैं.

UP Election 2022: बड़े नेताओं का दलबदल, जानिए फायदे-नुकसान का सियासी खेल
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डीएनए हिंदी: नेताओं की दल-बदल हम हर चुनाव में देखते हैं. 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों (5 States Assembly Election) के दौरान एक बार फिर ये दौर शुरू हो गया है. इसमें सबसे अहम मोड़ उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में आया है क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की कैबिनेट में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) ने अचानक ही भाजपा (BJP) छोड़ समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का रुख किया है. इसके बाद से ही सपा, बसपा(BSP), भाजपा(BJP) और कांग्रेस (Congress) में भगदड़ मची हुई है लेकिन प्रश्न यही उठता है कि इन दलबदलुओं से फायदा किसका होगा?

भाजपा को लगे कई बड़े झटके 

दरअसल, स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने की बातें कुछ दिनों पहले से ही जारी थीं लेकिन जिस दिन से यह बात सामने आई है कि भाजपा UP Election 2022 में करीब 45 विधायकों के टिकट काटने वाली है, उस दिन से ही पार्टी में उठा-पटक शुरू हो गई थी. ऐसे में जैसे ही स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस्तीफा दिया तो इस्तीफों की झड़ी लग गई. इसके साथ ही कानपुर देहात से विधायक भगवती सागर और बृजेश प्रजापति ने भी इस्तीफा दे दिया. एक दिलचस्प बात यह है कि पिछले एक महीने में करीब 17 बड़े नेताओं ने भाजपा का दामन छोड़ा है जो कि पार्टी के लिए झटका माना जा रहा है. 

लगातार पार्टी छोड़ रहे सिटिंग विधायक और मंत्री भाजपा के लिए भी कम मुसीबतें नहीं खड़ी कर रहे हैं. इसकी वजह यह है कि पिछड़े समाज के नेताओं के पार्टी छोड़ने से पार्टी का जातीय गणित बिगड़ सकता है. वहीं पार्टी में अंदरखाने टकराव और कार्यकर्ताओं के बीच टिकट को लेकर नोंक-झोंक भी हो सकती है. साथ ही जनता के बीच संगठनात्मक कमजोरी का संदेश भी जा रहा है. हालांकि पार्टी इन दलबदलुओं को यह कहकर ही मैनेज कर रही है कि टिकट कटने के कारण नेता पार्टी छोड़ रहे हैं. 

सपा की ख़ुशी में दिक्कतें 

समाजवादी पार्टी के मुखिया और पूर्व सीएम अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) भाजपा, बसपा और कांग्रेस से आने वाले नेताओं का खुशी से स्वागत कर रहे हैं. बसपा इन चुनावों में सक्रिय नहीं है. ऐसे में पिछड़े वर्ग के ओपी राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता सपा को ही विकल्प मान रहे हैं. वहीं अखिलेश अच्छे से जानते हैं कि वो अब यदि भाजपा को टक्कर देना चाहते हैं तो MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण से इतर उन्हें दलितों के वोटों की अधिक आवश्यकता है. यही कारण है कि वो इन नेताओं का स्वागत खुले मन से कर रहे हैं.

वहीं सपा की भी अपनी मुश्किलें हैं. यह निश्चित है कि जो भी नेता भाजपा, कांग्रेस या बसपा छोड़कर आया है उसने अपनी टिकट पक्की करा ली होगी. वहीं एक स्थिति यह भी है कि प्रत्येक विधानसभा सीट के टिकट के लिए कई दावेदार हैं. ऐसे में यदि दलबदलुओं को टिकट मिलता है तो सपा से दलबदलुओं का रेला निकल सकता है जो पार्टी को चुनाव के बीच ही नुकसान पहुंचा सकता है. 

कांग्रेस और बसपा बैकफुट पर 

एक तरफ जहां भाजपा और सपा के बीच दलबदलुओं का खेल चल रहा है तो दूसरी कांग्रेस और बसपा के नेता भाजपा और सपा का रुख कर रहे हैं. आज ही कांग्रेस के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दो विधायक इमरान मसूद और मसूद अख्तर सपा में गए हैं. कांग्रेस प्रियंका गांधी के नेतृत्व में UP Election 2022 में जान तो झोंक रही है लेकिन एक वस्तुस्थिति यह भी है कि संगठनात्मक कमजोरी के कारण पार्टी इन चुनावों में हाशिए पर दिख रही है. वहीं बसपा इस पूरे चुनाव में सक्रिय नहीं रही हैं. बसपा के दो सबसे बड़े नेता मायावती और सतीश चन्द्र मिश्रा पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि वो विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. यही कारण है कि चौतरफा होने के बावजूद ये चुनाव भाजपा और सपा के बीच द्विपक्षीय मुकाबले में बदल गया है. 

भाजपा नेताओं को हो सकता है बड़ा फायदा 

लगातार टिकट कटने की आशंकाओं के बीच पार्टी छोड़ रहे नेताओं के कारण कल दिल्ली में हुई बीजेपी आलाकमान की बैठक में टिकटों के वितरण पर काफी माथापच्ची हुई है. ये माना जा रहा है कि पार्टी अब भारी दल-बदल को देखते हुए ज्यादा विधायकों के टिकट न काटने पर विचार कर सकती है जो कि भाजपा के उन नेताओं के लिए बैठे-बिठाए एक सकारात्मक पहलू हो सकता है जिन्हें इस बार टिकट नहीं मिलने वाला था. साथ ही पार्टी नाराज नेताओं को मनाने पर भी जोर दे रही है. 

दल-बदलुओं का यह चक्र आखिरी प्रत्याशी के ऐलान तक अभी यूं ही चलने की उम्मीद है. ये दल-बदलू नेता जिस पार्टी को छोड़ते हैं उनके लिए भी मुसीबत बनते हैं और जिसमें शामिल होते हैं उसमें भी सर फुटौव्वल होती है. ऐसे में यह देखना बेहद अहम होगा कि चुनाव नतीजों में ये दल-बदलू कितने फायदेमंद साबित होंगे.

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