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Haryana Politics: हरियाणा में वापसी की कोशिश में जुटी कांग्रेस, क्या हैं चुनौतियां?

Congress की हर राज्य में सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के भीतर चल रही सियासी घमासान पर काबू पाना है. ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है.

Haryana Politics: हरियाणा में वापसी की कोशिश में जुटी कांग्रेस, क्या हैं चुनौतियां?

बागियों को शामिल कराने की रणनीति कितनी होगी असरदार. (तस्वीर- Facebook/bhupinder.s.hooda)

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डीएनए हिंदी: लगातार एक के बाद एक मिल रही हार के बाद कांग्रेस (Congress) पार्टी के दिग्गज नेताओं का भी मनोबल टूट रहा है. वजह यही है कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में शुमार कपिल सिब्बल (Kapil Sibbal) जैसे नेता किनारा कर रहे हैं. राष्ट्रीय फलक से लेकर राज्यों तक हर जगह कांग्रेस पार्टी में फूट पड़ी है.

गुजरात और हिमाचल में भी कांग्रेस का यही हाल है. हरियाणा में दो साल बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन कांग्रेस पहले से ही इस राज्य में स्थितियां संभालने की कोशिश में जुट गई है.

हरियाणा में कांग्रेस सत्ता वापसी को लेकर आशान्वित है. भारतीय जनता पार्टी से किसान खुश नहीं है, कांग्रेस की कूटनीति यह है कि अगर यहां स्थितियां नहीं संभली तो कहीं नहीं संभलेंगी. यही वजह है कि कांग्रेस के एक बाद एक पूर्व नेताओं को पार्टी में शामिल करा रही है.

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बागियों को शामिल कराने की रणनीति कितनी होगी असरदार?

हरियाणा कांग्रेस में हाल ही में कुल 8 पूर्व विधायक शामिल हुए हैं. इनमें से कुछ मंत्री भी रहे हैं. भूपेंद्र सिंह हुड्डा और स्टेट कांग्रेस चीफ उदय भान की मौजूदगी में 8 पूर्व विधायक पार्टी में शामिल हुए हैं. शामिल होने वाले विधायकों में पूर्व विधायक राजकुमार वाल्मीकि, शारदा राठौर, जिले राम शर्मा, सुभाष चौधरी, परमिंदर ढुल, राकेश कंबोज, नरेश सेलवाल और रामनिवास घोड़ेला हैं.

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हुड्डा कैंप से नाराज हैं राज्य के दिग्गज नेता

सामाजिक मंचों पर यह साफ नजर आ रहा है कि कुलदीप बिश्नोई, कैप्टन अजय यादव और कुमारी शैलजा इस बात से खुश नहीं हैं कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सूबे की जिम्मेदारी सौंप दी गई है. कांग्रेस के चिंतन शिविर में यह मुद्दा भी उठ सकता है. 31 मई और 1 जून हो यह बैठक होने वाली है.

लगातार हार के बाद क्यों सबक सीख नहीं है कांग्रेस

हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी (HPCC) राज्य में कमजोर हो गई है. बीते 6 साल से पार्टी में कोई बड़ा सुधार नहीं किया गया है. लोकसभा चुनाव 2019 में सभी 10 सीटें हारने के बाद भी पार्टी ने कोई भी सीख नहीं ली है. रणनीति के नाम पर कांग्रेस सिर्फ अन्य दलों के बागी नेताओं को शामिल करा रही है. कुमारी शैलजा ने सितंबर में एचपीसीसी का जब कार्यभार संभाला तो उन्होंने बीजेपी नेता पवन बेनीवाल, उद्योगपति अशोक गोयल और पूर्व सांसद तारा सिंह के बेटे कंवलजीत उर्फ प्रिंस को पार्टी में शामिल करा लिया था.

कितने दमदार हैं कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व विधायक?

कांग्रेस में जो पूर्व विधायक शामिल हुए हैं उनमें ज्यादातर वही हैं जिन्हें उनकी पूर्व पार्टी ने टिकट देने से इनकार कर दिया था. वे या तो 2014 में पार्टी छोड़ चुके थे या 2019 में उन्हें टिकट देने से मना कर दिया गया था. कुछ नेता हरियाणा जनहित कांग्रेस के हैं, कुछ बीजेपी के और कुछ निर्दलीय हैं लेकिन इनके आने से कांग्रेस की स्थिति में सुधार नहीं आने वाला है. कोई इतना बड़ा नेता नहीं है जिसे लोग याद रखें.

कई धड़ों में बंट गई है कांग्रेस, क्या है सबसे बड़ी चुनौती?

कांग्रेस में भले ही ये लोग शामिल हुए हों लेकिन राज्य के नेतृत्व को लेकर पार्टी कई धड़ों में बंटी है. कुलदीप बिश्नोई, कैप्टन अजय यादव और कुमारी शैलजा को दीपेंद्र हुड्डा की सरपरस्ती बर्दाश्त नहीं है. कुलदीप बिश्नोई नाराज हैं कि उन्हें पार्टी ने अहम जिम्मेदारी नहीं दी है. अजय यादव और कुमारी शैलजा भी इसी बात को लेकर नाराज हैं.

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हाल ही में जब कुलदीप बिश्नोई ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मुलाकात की थी तब कांग्रेस में खलबली मची थी. कुमारी शैलजा के हाथ से राज्य प्रमुख का पद गया है. ऐसे में वह नाराज हैं. उदय भान को भूपेंद्र हुड्डा का करीबी नेता समझा जाता है. ऐसे में विरोधियों से ज्यादा कांग्रेस अपनों से परेशान है. कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कैसे पार्टी के भीतर चल रही सियासी कलह खत्म हो.

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