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RBI MPC Meeting :  ब्याज दरों में बदलाव की संभावना कम, महंगाई बेकाबू होने पर बाकी देशों में है ये व्यवस्था 

RBI MPC Meeting: SBI ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि MPC की बैठक एक तय प्रकिया का हिस्सा है और इसमे कुछ भी अप्रत्याशित नहीं है.

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RBI MPC Meeting :  ब्याज दरों में बदलाव की संभावना कम, महंगाई बेकाबू होने पर बाकी देशों में है ये व्यवस्था 
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डीएनए हिंदीः 3 नवंबर को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)  की मौद्रिक नीति कमेटी (MPC) की बैठक है.  अमेरिकी फेडरल बैंक की 2 नवंबर को बैठक के कारण ये कयास लगाए जा रहे थे कि शायद इस बैठक में आरबीआई भी ब्याज दरों पर कोई फैसला ले. SBI ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि MPC की बैठक एक तय प्रकिया का हिस्सा है और इसमे कुछ भी अप्रत्याशित नहीं है. SBI रिसर्च ने ये भी बताया है कि दुनिया के बाकी देशों में कब महंगाई दर को काबू से बाहर घोषित किया जाता है. इसके साथ रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि मंहगाई दर के बेकाबू होने पर बाकी देश क्या प्रकिया अपनाते हैं.  

तीन तिमाहियों से तय सीमा से बाहर मंहगाई 
दुनिया भर में महंगाई बढ़ने के साथ साथ भारत में भी महंगाई बढ़ रही है. वित वर्ष 2021-22 के पहली तिमाही में 5.6 % महंगाई दर जनवरी- मार्च 2022 की तिमाही में 6.3 प्रतिशत हो गई थी. इसके बाद वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में और बढ़कर 7.3 %  रही. वहीं जुलाई- सितंबर 2022 की तिमाही में ये 7% बनी रही है.

क्या कहता है कानून  
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी शीर्ष मौद्रिक संस्था MPC की 3 नवंबर को एक विशेष बैठक बुलाई है. RBI Act की धारा 45 ZN के तहत जब भी कभी लगातार तीन तिमाहियों तक मुद्रास्फीति (Inflation) अपने लक्ष्य (6 प्रतिशत) से ज्यादा रहती है. तो ऐसे में केन्द्र सरकार को RBI एक रिपोर्ट देती है जिसमें लक्ष्य को न हासिल कर पाने के कारण दिए गए होते हैं   इसके साथ साथ इस रिपोर्ट में केन्द्रीय बैंक द्वारा इसे सुधारने के सुझाव देने होते हैं. RBI को ये भी बताना होता है कि उनके द्वारा सुझाए गए उपायों को अपनाने के कितने समय के भीतर अपने मंहगाई काबू में आ लक्ष्य को हासिल कर लेगें. वहीं इसी एक्ट का रेगुलेशन नम्बर 7 के अनुसार मुद्रास्फीति के अपने लक्ष्य को हासिल न कर पाने पर कमेटी के सचिव द्वारा एक फिर से मानिटिरी पॉलिसी कमेटी की बैठक बुलानी होती है. RBI को अपनी रिपोर्ट मुद्रास्फीति (Inflation)के आंकड़ों को जारी करने के एक महीने के भीतर भेजनी होती है. इस बार रिजर्व बैंक ने 12 अक्तूबर को महंगाई के आंकड़े जारी किए थे. ऐसे में उन्हे 12 नवंबर तक अपनी रिपोर्ट भेजनी है.  

3 नवंबर को ब्याज दरों में किसी फैसले की संभावना कम  
SBI रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट ने ये कहा कि ये बैठक एक तय प्रकिया है. इस कारण उनका मानना है कि इस बैठक में ब्याज दरें बढ़ाने की संभावना बहुत मामूली है.दरअसल 2 नवंबर को अमेरिकी फेडरल बैंक की बैठक है ऐसे में बाजार ये कयास लगा रहा था कि RBI की 3 तारीख की बैठक में ब्याज दरों पर निर्णय हो सकता है. SBI रिसर्च के अनुसार पिछली बार मार्च 2020 और मार्च 2022 को जब ये ब्याज दरों में बदलाव की घोषणा हुई थी. तो बैठक अचानक बुलाई गई थी इस बारे में पहले से सूचना नहीं दी गई थी.   

ये है बाकी देशों में बेकाबू महंगाई का  पैमाना 
मंहगाई को काबू में रखना केन्द्रीय बैंक की अहम जिम्मेदारी है. भारत में 4 % महंगाई की दर को स्वीकार्य माना गया है. लगातार तीन तिमाहियों तक इससे 2 % कम या ज्यादा रहने पर इसे असफलता माना जाता है. इंग्लैंड और नार्वे में 2 % महंगाई दर को मान्य कहा गया है. इससे 1%  कम या ज्यादा होने को असफलता माना जाता है.  ब्राजील में मान्य मंहगाई दर 4 % है. इससे 1.5 % कम या ज्यादा होने पर मौद्रिक नीति पर सवाल खड़े होते हैं. 

कई देशों की केन्द्रीय बैंकों की जवाबदेही सदन को  
SBI की रिसर्च में चुने गए 20 देशों में से एक मात्र भारत में ही केंद्रीय बैंक सरकार को रिपोर्ट करता हैं. वहीं आस्ट्रेलिया, कनाडा, चिली, चेक, हंगरी, पेरु, स्वीडन, इजराईल और दक्षिणी अफ्रीका में केन्द्रीय बैंक को वहां की संसद में जवाब देना होता है.

वहीं इंडोनेशिया, फिलीपींस, साउथ कोरिया, ब्राजील, यूके, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, थाईलैंड और तुर्की में केन्द्रीय बैंक सरकार को पत्र लिखते हैं और फिर वहां की संसद में इस मामले पर बाकायदा सुनवाई भी होती है. जिन रिजर्व बैंकों में मौद्रिक नीति कमेटी (MPC) की व्यवस्था मौजूद है, उन देशों में खुला पत्र लिखने का चलन ज्यादा है. SBI रिसर्च के अनुसार क्योंकि भारत में रिजर्व बैंक केन्द्र सरकार को रिपोर्ट करता है ऐसे में उन्हे केन्द्र सरकार को पत्र लिखना एक सही प्रकिया है.

RBI चाहता है नियमों में बदलाव  
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने करेंसी और फाईनेंस पर साल 2021 में जारी अपनी रिपोर्ट तीन तिमाहियों के नियम को बदलने का सुझाव दिया था. RBI ने कहा था कि मुद्रास्फीति के लक्ष्य से बाहर जाने की समय सीमा तीन तिमाहियों की बजाय चार तिमाही कर देना चाहिए.

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