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देश की ज्यादातर नगर निगम की हालत खस्ता, विकास के लिए नहीं है पैसा

RBI ने देश की म्यूनिसिपल कार्पोरेशन की वित्तीय स्थिति के बारे में अपनी पहली रिपोर्ट पेश की है.

देश की ज्यादातर नगर निगम की हालत खस्ता, विकास के लिए नहीं है पैसा

municipal corporations

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डीएनए हिंदी: दिल्ली में नगर निगम चुनाव होने वाले हैं. नगर निगम पर कई सालों से काबिज बीजेपी के काम काज का आम आदमी पार्टी हिसाब मांग रही है. इसी बीच हाल ही में RBI ने देश की म्यूनिसिपल कार्पोरेशन की वित्तीय स्थिति के बारे में अपनी पहली रिपोर्ट पेश की है. रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे देश के नगर निगमों और पालिकाओं का बजट BRICS देशों के मुकाबले बहुत ही कम है. ज्यादातर नगर निगमों और  के बजट का मोटा हिस्सा सिर्फ सैलरी और बाकी पहले से तय खर्चों में निकल जाता है, जिस कारण  उनके पास विकास के लिए खर्च करने के लिए पैसे ही नहीं है.  

भारत में म्यूनिसिपल कार्पोरेशन का खर्च GDP का सिर्फ 1%  

देश के म्यूनिसिपल कार्पोरेशन के खर्चों पर ये RBI की पहली रिपोर्ट है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में शहरीकरण तो तेजी से बढ़ रहा है लेकिन उस अनुपात में शहरी स्थानीय निकायों का बजट नहीं बढ़ पा रहा है. रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे भारतीय शहर अपने नागरिकों के लिए अच्छी गुणवत्ता का इफ्रास्ट्रक्चर  नहीं बना पाए हैं. भारत के शहरों का आधारभूत ढांचा अभी भी OCED  और BRICS देशों से मुकाबले में नहीं ठहरता. देश में एक दशक भर से ज्यादा समय से म्यूनिसिपिल कार्पोरेशन का खर्च देश की GDP का 1 % से भी कम रहता है.  ब्रिक्स (BRICS) देश  ब्राजील में म्यूनिसिपालिटी का खर्च GDP का 7.4 % होता है. वहीं दक्षिणी अफ्रीका में ये GDP का  6 % खर्च हो रहा है. इस पर मंथन करते हुए कई बार ये सुझाव दिया गया है कि राज्यों को उनके GST राजस्व का 1/6 इनसे साझा करना चाहिए.   

भारत में साल 207-18 में म्यूनिसिपल कार्पोरेशन का खर्चा जीडीपी का महज 0.68 % था. वहीं साल 2019-20 में ये बढ़कर  जीडीपी का 1.05 प्रतिशत हो गया है.  

प्रापर्टी टैक्स और मदद पर जरुरत से ज्यादा निर्भरता  

देश में म्यूनिसिपल कार्पोरेशन के बाद राजस्व जुटाने के बहुत ही सीमित तरीके हैं. ज्यादातर म्यूनिसिपाॉलिटी अपनी खर्चों के लिए केन्द्र और राज्य पर निर्भर होती है. रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2017-18 मे जहां म्यूनिसिपल कार्पोरेशन की कुल टैक्स होने वाली आय का 40 फीसदी के आसपास था, जो कि साल 2019-20 तक 50 फीसदी हो गया है. बावजूद इसके प्रापर्टी टैक्स कलेक्शन  OECD देशों के मुकाबले बहुत कम है.रिपोर्ट में इसके बहुत से कारण भी बताए गए हैं. कोर्ट में लंबित मामलों के अलावा,  जिसे प्रापर्टी की कीमत का कम आकलन करना, रजिस्ट्रेशन में कमियां, नीतियों का अभाव और अप्रभावी प्रंबधन इसके लिए जिम्मेदार बताया गया है.   

RBI की रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि देश के म्यूनिसिपालिटी कार्पोरेशन अधिकतर अपनी आय के लिए प्रॉपर्टी टैक्स पर निर्भर है. इस वजह से राजस्व जुटाने के बाकी तरीकों जैसे मनोरंजन कर, ट्रेड लाईसेंस, सालिड वेस्ट यूजर चार्ज, मोबाईल टॉवर के उपर टैक्स, जल की कीमत इत्यादि का इस्तेमाल कम किया गया है. 

म्यूनिसिपालिटी को कर्ज के लिए चाहिए राज्य की मंजूरी  

भारत में  म्यूनिसिपालिटी को अपने बजट से ही गुजारा करना होता है. अगर उन्हे और पैसे चाहिए तो किसी भी प्रकार के कर्ज की मंजूरी राज्य सरकार देती है. वहीं म्यूनिसिपल कार्पोरेशन का बजट राज्य और केन्द्र सरकारों के मुकाबले बहुत कम होता है.  RBI की रिपोर्ट में कहा गया है कि 1992 में संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद भी इन निकायों के आय के साधनों में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई. म्यूनिसिपल कार्पोरेशन की आय में मदद का हिस्सा बढ़ता चला गया. अगर किसी भी म्यूनिसिपल कार्पोरेशन का कर्ज बहुत ही कम है. इस समस्या को बाजारी कर्ज की प्रकिया को आसान करके साधा जा सकता है.  

 

कहां से आता है म्यूनिसिपल कार्पोरेशन का पैसा  

2019-20 के बजट अनुमान के मुताबिक म्यूनिसिपल कार्पोरेशन की आय का एक तिहाई से ज्यादा (37%) से ट्रांसफर से आ रहा है. फीस और यूजर चार्ज से 17 % और प्रापर्टी टैक्स की हिस्सेदारी 16 % है.  

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