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Homi J Bhabha के घर को खरीदने वाला कौन शख्स था, जिसने चुकाए थे 372 करोड़

होमी जे भाभा का जन्म एक बिजनेसमैन फैमिली में हुआ था. हालांकि उन्होंने न्यूक्लियर एनर्जी में विशेष योगदान दिया. आइए जानते हैं उनकी आकस्मिक मौत के बाद उनके घर को किसने खरीदा...

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Homi J Bhabha के घर को खरीदने वाला कौन शख्स था, जिसने चुकाए थे 372 करोड़

Homi J. Bhabha House sold for 372 crore rupees

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डीएनए हिंदी: होमी जहांगीर भाभा (Homi J. Bhabha) का जन्म मुंबई के एक धनी परिवार में हुआ था. 1927 में वे पढ़ाई के लिए इंग्लैंड में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (Cambridge University) गए. अपने परिवार की इच्छा का पालन करते हुए, भाभा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, लेकिन हमेशा फिजिक्स की खोज में लगे रहते थे. 1932 में भाभा ने आउटलुक इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, "मैं आपसे गंभीरता से कहता हूं कि एक इंजीनियर के रूप में व्यवसाय या नौकरी मेरे लिए नहीं है."

कुछ समय बाद भाभा भारत लौट आए और उन्होंने कॉस्मिक रे रिसर्च इंस्टीट्यूट (Cosmic Ray Research Institute) की स्थापना की. 1945 में, उन्होंने Tata Institute of Fundamental Research की स्थापना की और भारत के परमाणु कार्यक्रम के लिए प्रारंभिक शोध शुरू किया. 1947 में, भारत की स्वतंत्रता के लगभग कुछ समय बाद, भाभा ने प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू (Prime Minister Jawaharlal Nehru) को लिखा, "अगले कुछ दशकों के भीतर, परमाणु ऊर्जा अर्थव्यवस्था और देशों के उद्योग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी और यदि भारत नहीं चाहता है दुनिया के औद्योगिक रूप से उन्नत देशों से और भी पीछे हो तो ऐसे में विज्ञान की इस ब्रांच को विकसित करना जरूरी है.”

1954 में, भाभा ने ट्रॉम्बे (Trombay) में एक परमाणु अनुसंधान केंद्र की स्थापना की, जिसे बाद में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) का नाम दिया गया. 1966 में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई. हालांकि तब तक वे भारत के परमाणु कार्यक्रम के हेड थे.

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मुंबई की मालाबार हिल (Malabar Hill) किसी परिचय की मोहताज नहीं है. शहर और देश के सबसे पॉश इलाकों में से एक, मालाबार हिल वह जगह थी जहां भाभा रहते थे. मेहरानगीर (Mehrangir), बंगले का नाम भाभा के माता-पिता के नाम मेहरबाई (Mehrbai) और जहांगीर (Jehangir) से लिया गया था. 1966 में उनकी मृत्यु के बाद, बंगले को भाभा परिवार के अगले संरक्षक, होमी के भाई जमशेद को सौंप दिया गया था. जमशेद नेशनल सेंटर ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स (NCPA) के संस्थापक थे और उन्होंने कंपनी को बंगला दिया था. हालांकि, कुछ सालों बाद बंगले को संगठन ने नीलाम करने का फैसला किया.

इस दौरान 372 करोड़ रुपये की बोली के साथ नीलामी जीतने के बाद स्मिता कृष्णा-गोदरेज (Smita Crishna-Godrej) बंगले की असली मालिक बन गईं. उद्योगपति जमशेद गोदरेज की बहन स्मिता गोदरेज होल्डिंग्स लिमिटेड (Godrej Holdings Ltd) और नौरोजी गोदरेज सेंटर फॉर प्लांट रिसर्च एंड रैप्टर रिसर्च एंड कंजर्वेशन फाउंडेशन (Naoroji Godrej Centre for Plant Research and Raptor Research and Conservation Foundation) में डायरेक्टर हैं. हालांकि स्मिता कृष्णा-गोदरेज ने संपत्ति को गिराने और एक बहुमंजिला इमारत बनाने का फैसला किया. भले ही संपत्ति को एक विरासत भवन के रूप में संरक्षित करने के लिए विरोध और अपीलें थीं, अदालत ने विध्वंस के पक्ष में फैसला सुनाया. संपत्ति को दो साल बाद, 2016 में ध्वस्त कर दिया गया था, और होमी जे. भाभा के शोध के हर एक पेपर, जिसमें उनके व्यक्तिगत पत्र भी शामिल थे, को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) को सौंप दिया गया.

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