डीएनए एक्सप्लेनर
Criminal Law Change: केंद्र सरकार ब्रिटिश गुलामी के दौर से चली आ रही IPC, CRPC और IAA की जगह नए कानून लेकर आई है, जो आज (1 जुलाई) से लागू हो गए हैं.
Criminal Law Change: देश में आज से अपराधों की जांच से लेकर न्यायिक सुनवाई तक का तरीका बदल गया है. केंद्र सरकार की तरफ से ब्रिटिश गुलामी के दौर के 150 साल पुराने कानूनों में सुधार करते हुए तीन नए कानून आज (1 जुलाई) से लागू हो गए हैं. इससे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम पूरी तरह बदल जाने और पहले से ज्यादा त्वरित गति से न्याय मिलने का दावा किया जा रहा है. केंद्र सरकार का दावा है कि इन कानूनों के कारण भारतीय अदालतों के ऊपर से मुकदमों का बोझ घटेगा और जेल में विचारधीन बंदियों की संख्या में कमी आएगी. हालांकि विपक्षी दल और उनकी सत्ता वाले राज्यों ने इन नए कानूनों को अभी लागू करने का विरोध किया है. इसके बावजूद सोमवार (1 जुलाई) से ये कानून लागू हो गए हैं. इन कानूनों में कस्टडी से लेकर रेप तक के पुराने कानूनों की नए सिरे से व्याख्या की गई है. वहीं कई गुनाहों में जेल की सजा के बजाय आरोपी को महज कम्युनिटी सर्विस यानी समाज सेवा की सजा दिए जाने तक सीमित कर दिया है.
आइए आपको 10 पॉइंट्स में बताते हैं कि इन कानूनों के लागू होने का हमारी जिंदगी से लेकर सिस्टम तक पर क्या असर होने जा रहा है.
1. पहले जान लीजिए किस कानून की जगह क्या कानून हुआ है लागू
साल 1860 में बनी भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) यानी IPC की जगह अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) ने ली है.
साल 1898 में बनी दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) ने ली है.
साल 1872 में बने भारतीय साक्ष्य कानून की जगह अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने ली है.
2. CRPC की जगह BNSS लागू होने पर बदलाव
BNSS के नियम मौजूदा जमाने के अनुरूप तय किए गए हैं. इनमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके से जुटाए सबूत भी मान्य होंगे. अब पुलिस को घटनास्थल की वीडियो रिकॉर्डिंग हर हाल में करानी होगी.
विचारधीन बंदियों को जमानत नहीं होने पर जेल में ही सालों तक बंद नहीं रहना होगा. यदि उसने अपने ऊपर लगे आरोप के लिए अधिकतम सजा से ज्यादा समय जेल में बिताया है तो उसे निजी मुचलके पर रिहाई मिलेगी.
जीरो FIR का नियम भी बदला है. अब कोई भी नागरिक किसी भी जगह हुए अपराध की FIR दूसरी जगह भी दर्ज करा पाएगा. ZERO FIR दर्ज करने वाले थाने को 15 दिन के अंदर यह एफआईआर संबंधित थाने को भेजनी होगी.
किसी भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने के आग्रह पर 120 दिन के अंदर फैसला नहीं लिए जाने की स्थिति में उसे स्वत: ही मंजूर मान लिया जाएगा.
खास बात ये है कि CRPC में दी गई 484 धाराओं के मुकाबले BNSS में 531 धाराएं शामिल की गई हैं, जिससे कई अपराधों की पूरी तरह व्याख्या हो गई है.
3. FIR के 90 दिन में चार्जशीट, 150 दिन में आरोप होंगे तय
अब FIR दर्ज करने के बाद उसे जांच के नाम पर लटकाया नहीं जा सकेगा. विवेचनाधिकारी के लिए 90 दिन के अंदर कोर्ट में प्राथमिक चार्जशीट दाखिल करना अनिवार्य कर दिया गया है. कोर्ट को भी चार्जशीट दाखिल होने के 60 दिन यानी FIR के 150 दिन के अंदर आरोप तय करने होंगे. सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला अधिकतम 30 दिन के लिए सुरक्षित रखा जाए सकेगा.
4. साक्ष्य अधिनियम में इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को मिली मान्यता
इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह लागू हुए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को मान्यता दी गई है. इससे स्मार्टफोन डाटा, कॉल लॉग, वॉइस मेल, ईमेल जैसे रिकॉर्ड को भी सबूत के तौर पर कोर्ट में दस्तावेजी सबूत की तरह जमा किया जा सकेगा. इसके लिए नए कानून में पुराने एक्ट की 6 धाराएं हटाकर 2 नई धाराओं और 6 उप-धाराओं को जोड़ा गया है.
5. हिरासत में लेने पर परिवार को देनी होगी जानकारी
नए कानून के बाद पुलस किसी को भी बिना बताए हिरासत में नहीं ले सकेगी. यदि किसी व्यक्ति को हिरासत में लिया गया है तो पुलिस को ऑनलाइन और ऑफलाइन (निजी रूप से जाकर), दोनों तरीकों से उस व्यक्ति के परिवार को उसकी हिरासत की जानकारी देनी होगी ताकि वह न्याय के लिए कानूनी प्रक्रिया की शुरुआत कर सके.
6. ऊपरी अदालत में जाने के लिए भी नियम तय
BNSS में धारा 417 जोड़ी गई है, जिसके तहत किसी केस में सजा मिलने पर ऊपरी अदालत में अपील करने का नियम तय हुआ है. इसमें निम्न मामलों में अपील पर प्रतिबंध लगाया गया है-
यदि सेशन कोर्ट से अधिकतम 3 महीने की जेल या 200 रुपये जुर्माना या दोनों की सजा मिलती है.
मजिस्ट्रेट कोर्ट में यदि किसी अपराध के लिए 100 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई जाती है.
हाई कोर्ट में अधिकतम 3 महीने की जेल या 3 हजार रुपये जुर्माना या दोनों की सजा सुनाई गई है.
7. जेल पर बंदियों का बोझ कम करने की कवायद
CRPC की धारा 479 के तहत जेलों पर बंदियों का बोझ कम करने की भी कवायद की गई है. इसके तहत यदि विचाराधीन कैदी अपने ऊपर लगे आरोप की एक तिहाई सजा जेल में काट चुका है तो उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है. यह राहत पहली बार अपराध करने वाले को मिलेगी. उम्रकैद की सजा वाले अपराध में यह राहत नहीं दी जा सकेगी. सजामाफी के नियम को भी नए कानून में बदला गया है. मौत की सजा पाए कैदी को माफी देकर उसकी सजा को आजीवन कारावास में बदला जा सकेगा. उम्र कैद की सजा वाले कैदी की सजा घटाकर 7 साल की जा सकती है, जबकि 7 साल या उससे ज्यादा की सजा वाले कैदी की सजा घटाकर 3 साल की जा सकती है. 7 साल या उससे कम सजा वाले कैदी को जुर्माना भरने की सजा सुनाई जा सकती है.
8. दुष्कर्म करना पड़ेगा अब भारी, मौत की सजा भी संभव
महिलाओं और नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में अब पहले से ज्यादा सख्त सजा मिलेगी. इस तरह के आरोपों के लिए BNSS में धारा 63 से धारा 99 तक प्रावधान किए गए हैं.
यदि 16 साल से कम उम्र की लड़की से रेप होता है तो कम से कम 20 साल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा मिलेगी.
पीड़िता 12 साल से कम उम्र की है तो आरोपी को दोष साबित होने पर मृत्यु दंड की सजा भी दी जा सकती है. साथ ही जुर्माना भी लगेगा.
नाबालिग से गैंगरेप के मामले में भी अधिकतम फांसी की सजा देने का प्रावधान किया गया है. महिला से गैंगरेप पर भी धारा 70 लागू होगी.
महिला से रेप के लिए धारा 63 लागू होगी और उसकी सजा धारा 64 के तहत दी जाएगी. यौन उत्पीड़न पर धारा 74 लागू की जाएगी.
यौन उत्पीड़न से लेकर स्टॉकिंग तक के लिए इस कानून में अलग-अलग धाराओं के तहत प्रावधान किए गए हैं.
शादी का झांसा देकर या नौकरी का वादा करके शारीरिक संबंध बनाने पर धारा 69 के तहत अधिकतम 10 साल जेल की सजा तय की गई है.
बालिग पत्नी के साथ यदि जबरन यौन संबंध बनाए जाते हैं और उसे अब मैरिटल रेप की कैटेगरी में नहीं माना जाएगा.
9. इन धाराओं में दर्ज हुई FIR तो मिलेगी कम्युनिटी सर्विस की सजा
नए कानून में धारा 202 (सरकारी सेवक के कारोबार करने पर), धारा 209 (कोर्ट के समन पर पेश नहीं होने पर), धारा 226 (सरकारी सेवक के काम में बाधा डालने के लिए सुसाइड की कोशिश), धारा 303 (5 हजार रुपये से कम की चोरी में पहली बार दोष सिद्ध होने पर), धारा 355 (नशे में पब्लिक प्लेस पर हंगामा) और धारा 356 (मानहानि करने पर) जज जेल की सजा या जुर्माने की जगह समाज सेवा (कम्युनिटी सर्विस) करने की सजा भी सुना सकता है.
10. मॉब लिंचिंग को बनाया गया है अपराध
नए कानून में मॉब लिंचिंग यानी भीड़ हिंसा को भी अपराध बनाया गया है. इसे धारा 100 से 146 तक परिभाषित किया गया है. भीड़ हिंसा में पीड़ित की मौत होने पर धारा 103, संगठित अपराध के लिए धारा 111 के तहत मुकदमा चलेगा. साथ ही धारा 113 भी लागू होगी. इसमें 7 साल की कैद से फांसी की सजा तक का प्रावधान किया गया है.
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