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DNA TV Show: इजरायल-हमास युद्ध से भड़क सकता है तीसरा विश्वयुद्ध, जानिए क्यों कहा जा रहा है ऐसा

Israel Hamas War Updates: पहले रूस-यूक्रेन युद्ध, फिर अजरबैजान-अर्मीनिया युद्ध और अब इजरायल-हमास युद्ध में दुनिया के कुछ देशों के एक पक्ष और दूसरे पक्ष में बंट गए हैं. ऐसे में सभी युद्ध का हिस्सा बन सकते हैं.

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डीएनए हिंदी: Isarel Hamas War Latest News- इजरायल और हमास के बीच युद्ध अब और ज्यादा आक्रामक होता जा रहा है. इजरायल ने हमास के पूरी तरह नेस्तनाबूद किए बिना पीछे हटने से इंकार कर दिया है. दूसरी तरफ, हमास भी फिलहाल झुकता हुआ नहीं दिख रहा है. इस बीच दुनिया भर के देश इजरायल और फिलिस्तीन के पक्ष में लामबंद होने लगे हैं. इससे एक बार फिर वही खतरा पैदा होता दिख रहा है, जिसके संकेत रूस-यूक्रेन युद्ध और फिर अजरबैजान-अर्मीनिया युद्ध में देखने को मिले थे यानी इजरायल-हमास के बीच चल रहा युद्ध किसी भी पल तीसरे विश्वयुद्ध के भड़कने की चिंगारी बन सकता है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के समय भी कुछ-कुछ ऐसे ही हालात बने थे. पहले और दूसरे विश्वयुद्ध से पहले जो परिस्थितियां बनी थीं, ठीक वैसी ही परिस्थितियां अब नजर आ रही हैं. बुनियादी तौर पर 20वीं सदी की शुरुआत में दुनिया एक नए World Order की ओर बढ़ रही थी. ये दोनों विश्व युद्ध पुराने World order को बदलने के लिए ही लड़े गए.

पहले समझिए पहला विश्वयुद्ध क्यों हुआ था?

बीसवीं सदी की शुरुआत में पश्चिमी यूरोप में ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों के पूरी दुनिया में उपनिवेश थे. उपनिवेशों की इस दौड़ में रूस देरी से शामिल हुआ, लेकिन उसने भी मध्य एशिया,और दक्षिणी यूरोप में अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया था. मध्य यूरोप के सबसे शक्तिशाली देश जर्मनी में भी पूरी तरह से औद्योगीकरण हो चुका था. जर्मनी भी एशिया और अफ्रीका में कच्चे माल के स्रोत और बाजार तलाश रहा था. लेकिन जर्मनी ने देखा कि ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देश, पहले ही पूरी दुनिया को आपस में बांट चुके हैं. जर्मनी, अपने लिए पूरी दुनिया का बंटवारा चाहता था. वहीं ब्रिटेन और फ्रांस अपने उपनिवेशों को बचाना चाहते थे. इसके अलावा उस समय तीन महाद्वीपों एशिया, अफ्रीका और यूरोप में फैली 'ओस्मानिया सल्तनत' भी अस्थिर हो गई थी. इस सल्तनत के कई हिस्से, अलग देश की मांग करने लगे थे.

अस्थिरता के इस दौर में भड़की थी छोटी सी चिंगारी

दुनिया में फैली अस्थिरता के माहौल में पहले विश्वयुद्ध से पहले पूर्वी यूरोप के बल्कान क्षेत्र में राष्ट्रवाद चरम पर था. वो 'Austria-Hungarian साम्राज्य' से आजादी चाहता था. ऐसे समय में 28 जून 1914 को सर्बिया के राष्ट्रवादियों ने ऑस्ट्रिया के आर्क ड्यूक Fraz Ferdinan की हत्या कर दी थी. अगले ही दिन 'Austria-Hungarian साम्राज्य' ने सर्बिया के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. इस छोटी सी चिंगारी ने ही पहला विश्वयुद्ध छिड़ने की नींव रख दी.

ऑस्ट्रिया-हंगेरियन का सर्बिया से युद्ध कैसे पहला विश्वयुद्ध बन गया?

ऑस्ट्रिया-हंगेरियन साम्राज्य के हमले के जवाब में रूस, सर्बिया के पक्ष में आ गया. इसके जवाब में जर्मनी ने ऑस्ट्रिया के समर्थन में जंग घोषित कर दी और उसने रूस के मित्र देशों फ्रांस और बेल्जियम पर हमला कर दिया. बेल्जियम पर हमले के साथ ही ब्रिटेन भी युद्ध में कूद पड़ा. ब्रिटेन और फ्रांस ने अपने उपनिवेशों को भी युद्ध में शामिल कर लिया. धीरे-धीरे ये युद्ध पूरी दुनिया में फैल गया. अमेरिका, कनाडा, इटली और ओस्मानिया सल्तनत भी पहले विश्व युद्ध का हिस्सा बन गए. 

पहले विश्वयुद्ध की हार ने दूसरे विश्वयुद्ध की नींव रखी

पहले विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार हुई, और वो अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए. इसलिए करीब 20 वर्ष बाद उसने एक बार फिर से बंटवारा करने के लिए दुनिया को दूसरे विश्वयुद्ध में धकेल दिया.

अब मौजूदा समय के हिसाब से समझिए क्यों बनते दिख रहे विश्वयुद्ध के हालात

इस समय भी हम देख रहे हैं कि रूस, चीन, ईरान, तुर्की जैसे देश, मौजूदा World Order से संतुष्ट नहीं हैं. इनका मानना है कि मौजूदा World Order पश्चिमी देशों के हितों के लिए बनाया गया है. ये देश हर हाल में नया World Order बनाने की दिशा में बढ़ रहे हैं. रूस पूर्वी यूरोप में अमेरिका का दखल नहीं चाहता है. चीन, ताइवान और दक्षिण चीन सागर में अमेरिका का दखल नहीं चाहता, वहीं तुर्की एक बार फिर से 'ओस्मानिया सल्तनत' का विस्तार चाहता है.

दुनिया में ताकत का बंटवारा भी पहले दोनों विश्वयुद्धों जैसा

पहले और दूसरे विश्वयुद्ध से पहले दुनिया बड़ी-बड़ी सैन्य ताकतों में बंटी हुई थी. जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और ओस्मानिया सल्तनत एक साथ थे। इन्हें Central Power कहा जाता था. वहीं फ्रांस, रूस और ब्रिटेन एक साथ थे. इन्हें Allied powers कहा जाता था. ऑस्ट्रिया और सर्बिया के बीच का युद्ध, देखते ही देखते विश्व युद्ध में बदल गया था.

आज भी दुनिया बहुत सारी अलग-अलग सैन्य ताकतों के बीच बंटी हुई है. एक तरफ NATO हैं, जो लगातार रूस के पड़ोस में अपना विस्तार कर रहा है. हाल ही में फिनलैंड NATO का 31वां सदस्य बना है, वहीं स्वीडन भी जल्दी ही इसमें शामिल हो सकता है. ध्यान देने वाली बात ये है कि स्वीडन और फिनलैंड, दोनों ने ही दूसरे विश्व युद्ध के बाद से, दुनिया के अन्य देशों के विवादों में निष्पक्ष रवैय्या अपनाया था, लेकिन आज के हालात में ये निष्पक्ष देश भी सैन्य ताकतों के संगठन का हिस्सा बन रहे हैं. यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की भी NATO की सदस्यता मांग रहे हैं, वहीं पुतिन किसी भी कीमत पर यूक्रेन को NATO का सदस्य नहीं बनने देना चाहते हैं. इसके अलावा रूस के सैन्य रिश्ते चीन, नॉर्थ कोरिया, ईरान, सीरिया जैसे देशों से बढ़े हैं.

आर्थिक मंदी भी बन सकती है विश्वयुद्ध का कारण

बहुत कम लोग जानते हैं कि दूसरे विश्वयुद्ध का एक प्रमुख कारण 1930 के दशक का The Great Depression भी था. इस दौरान वैश्विक आर्थिक मंदी की वजह से दुनिया के करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गई थीं. लोगों के ऊपर कर्ज बढ़ रहा था, और पैसे खत्म हो रहे थे. इस मंदी के माहौल में ही जर्मनी में हिटलर का उदय हुआ और दूसरे देशों में भी चरम राष्ट्रवादी पार्टियां सत्ता में आने लगीं थी.

मौजूदा स्थिति में देखा जाए तो, वर्ष 2020 की कोरोना महामारी के बाद से ही पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी का माहौल है. Sri Lanka, Pakistan, Lebanon, Argentina, Venezuela, Ecuador और Egypt जैसे देश आर्थिक मंदी से जूझ रहे हैं. इनमें से कुछ देश कभी भी दिवालिया हो सकते हैं. तानाशाह नेतृत्व अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए युद्ध का सहारा लेते हैं. इसीलिए आज के हालात में विश्वयुद्ध की स्थिति बन जाना काल्पनिकता नहीं है.

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