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Mission 2024: नीतीश की 'महाएकता' में कांग्रेस की 'महापरीक्षा', क्या 159 सीट छोड़कर विपक्षी एकता को तैयार होगी

Opposition Unity Meeting: पटना में विपक्षी दलों की साझा बैठक कई सवालों के बीच हो रही है, जिनमें सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस से दूर भागते कई दलों को संभालने और 'मोदी बनाम कौन' का जवाब तलाशना है.

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Mission 2024: नीतीश की 'महाएकता' में कांग्रे��स की 'महापरीक्षा', क्या 159 सीट छोड़कर विपक्षी एकता को तैयार होगी

Mission 2024 बैठक के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन पटना पहुंच गए हैं.

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डीएनए हिंदी: Political News- भाजपा के खिलाफ नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के 'मिशन 2024 (Mission 2024)' की पहली परीक्षा आज यानी शुक्रवार 23 जून को पटना में होने जा रही है. बिहार के मुख्यमंत्री के बुलावे पर साझा विपक्षी गठबंधन बनाने के लिए ज्यादातर दलों के नेता पटना पहुंचे हैं. इस बैठक की अहमियत का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के तमाम बवाल के बीच खुद ममता बनर्जी पटना पहुंची हैं, जबकि कांग्रेस से मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ ही खुद राहुल गांधी भी बैठक में पहुंच रहे हैं. इसके बावजूद यह बैठक कई सवालों के बीच हो रही है. खासतौर पर अरविंद केजरीवाल समेत कई दलों के कांग्रेस विरोधी रुख के कारण खड़े हुए सवाल और 'मोदी बनाम कौन', जिसका जवाब विपक्षी दलों को अब भी तलाशना बाकी है.

पढ़ें- पटना में विपक्षी नेताओं की बैठक, BJP के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी, क्या नीतीश दे पाएंगे NDA को टेंशन?

कांग्रेस को अपने राज्यों से बाहर रखने की कवायद

बैठक की सफलता में सबसे बड़ा सवाल उन दलों को मनाने का है, जो कांग्रेस के साथ इस 'महाविपक्ष गठबंधन' का हिस्सा तो बनना चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस को अपने राज्य में एंट्री नहीं देना चाहते हैं. तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी साफ कह चुकी हैं कि कांग्रेस यदि पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ेगी तो भाजपा की मदद करेगी. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी भी कांग्रेस के लिए सीटें छोड़ने को तैयार नहीं हैं. दिल्ली-पंजाब में चुनाव नहीं लड़ने का प्रस्ताव अरविंद केजरीवाल की AAP कांग्रेस को दे ही चुकी है. बदले में आप राजस्थान-मध्य प्रदेश में उम्मीदवार नहीं उतारने को तैयार है. कांग्रेस के साथ तेलंगाना में चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र पार्टी भी सीटें साझा करने को तैयार नहीं हैं. राव तो बैठक में भी शामिल नहीं हो रहे हैं.

क्या कांग्रेस इन दलों की बात मानकर छोड़ेगी 159 सीट?

इन दलों की ये मांग पटना बैठक के दौरान भी उठने की संभावना है. खास बात ये है कि इन पांच राज्यों में से यदि उत्तर प्रदेश को छोड़ दें तो बाकी में कांग्रेस अपनेआप को कमजोर मानने को तैयार नहीं है. पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के पास माकपा नेतृत्व में वामदलों का समर्थन है, जो खुद ममता बनर्जी के साथ विपक्षी गठबंधन में बैठने को तैयार नहीं हैं. पंजाब में कांग्रेस का मजबूत संगठन है. दिल्ली में भी कांग्रेस भले ही पिछले कुछ चुनाव में बढ़िया प्रदर्शन नहीं कर पाई हो, लेकिन यह नहीं भूला जा सकता कि 10 साल पहले तक राज्य में तीन लगातार सरकार कांग्रेस की ही रही हैं. तेलंगाना में भी कांग्रेस अब तक प्रमुख विपक्षी दल रही है. हालांकि अब भाजपा तेजी से उसकी इस स्थिति को छीन रही है. यूपी में 80, पश्चिम बंगाल में 42, पंजाब में 13, तेलंगाना में 17 और दिल्ली में 7 सीटों समेत इन पांच राज्यों में कुल 159 लोकसभा सीट हैं. कर्नाटक चुनाव में मिली सफलता के बाद उत्साह की पींगों पर सवार कांग्रेस दोबारा पूरे देश में छाने का स्वप्न देख रही है. ऐसे में क्या वह इन 159 सीट को छोड़ने पर राजी होगी? इस सवाल का जवाब बैठक में मिल पाना मुश्किल है. 

मोदी बनाम कौन: इसका हल शायद ही बैठक में मिले

अब तक विपक्ष में इस बात पर भी साझा सहमति नहीं है कि लोकसभा चुनाव मे विपक्षी महागठबंधन का चेहरा कौन होगा यानी मोदी बनाम कौन? नीतीश कुमार भले ही प्रधानमंत्री पद की होड़ में खुद को नहीं बता रहे हैं, लेकिन यह सभी को पता है कि उनकी इस विपक्षी एकता की कवायद के पीछे यही मंशा है. कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस खुद को सिंहासक का सबसे बड़ा दावेदार मान रही है. कमोबेश यह स्वप्न विपक्ष में हर दल का नेता देख रहा है. एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक के शब्दों में कहा जाए तो विपक्ष की यह ऐसी बारात है, जिसमें हर कोई दूल्हा है. 

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घिरे हुए हैं सभी दल

विपक्ष के लिए सबसे बड़ी मुसीबत उन पर एक के बाद एक लग रहे भ्रष्टाचार के दाग हैं. भले ही विपक्षी दल प्रवर्तन निदेशालय (ED), आयकर (Income Tax) और सीबीआई (CBI) की कार्रवाइयों को मोदी सरकार की विरोधियों को दबाने की राजनीति बताकर शोर मचाएं, लेकिन जनता पर इसका ज्यादा असर अब तक नहीं दिखा है. 

आपसी बयानबाजी भी आ रही है आड़े

विपक्षी दलों की एक बड़ी समस्या एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी भी है. ममता बनर्जी सीधे तौर पर कांग्रेस पर हमला बोल चुकी हैं. अरविंद केजरीवाल तो साफतौर पर बैठक से एक दिन पहले ही दिल्ली सरकार की सेवाओं के संबंध में केंद्र के अध्यादेश के विरोधी को ही अपना दोस्त मानने की बात कह चुके हैं. उन्होंने कांग्रेस को इस मुद्दे पर अल्टीमेटम भी दे दिया है. अन्य दलों से भी एक-दूसरे के खिलाफ 'बयान बहादुर' बन चुके हैं.

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